माँ की लोरी (maa ki lori ) : मीठी नींद
अब वो मीठी नींद कहाँ है, जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी, अब वो किस्से-कहानियां […]
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मुझे सौगंध माँ दुनिया बनाने वाले की, सूरज के चमकते उजाले की, ये तेरी परवरिश का है कमाल, तुम जान
अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना, माँ इतना भी आसान नहीं है, इस प्यारे-से आँगन में ,
पढ़ने-लिखने का एक मौका दे माँ, मेरे मुख पर हंसी (mukh par hansi ) लौटा दे माँ, ऐसा कोई चमत्कार
सूरज की तपिश (sooraj ki tapish ) और पिता का प्यार, दोनों हैं एक समान, क्या जमीं क्या आसमान, पिता
बादलों का सीना चीरकर किरणें, हमारे आंगन में आ रही थी, प्यारा लग रहा था जगमगाता आंगन (jagmgata aangan), क्योंकी
पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार, बड़ा किया अपने आंगन का द्वार, हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा
माँ तेरे हाथों की बनाई रोटी, अब कहाँ मिलती है, खा लेते हैं भूख मिटाने करने के लिए, पर पेट
सुनकर खाने की बुराई, एक पिता की आँख है भर आई, आज मेरी बेटी की विदाई है, ये मेरी उम्रभर
मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी, यदि बहू भी मुझे माँ मान लें, हर घर में बहेगा सुख