चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ) : माँ का प्यार
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ), जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था, याद आते हैं […]
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ), जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था, याद आते हैं […]
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या, मुझको सब-कुछ है पता, मैं चला था उस पिता को
माँ के नाम ना होते यदि खेत-खलिहान, क्या हम फिर ना रखते माँ का ध्यान, माँ है एक अनमोल धरोहर,
मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर, मेरी आँखों के आगे काले घेरे देखकर, माँ मेरे मन की बेचैनी जान लेती है,
बेटी बनकर आए या बहन , या पत्नी बनकर फर्ज निभाना, एक औरत के हैं किरदार अनेक, सबसे मुश्किल है
शाही पकवान मिले या नमक के साथ, रोटी अपने ही घर की खानी है, इस घर में मात-पिता के हैं
मै क्यों ना करूं गर्व से सीना चौड़ा, मेरा बेटा श्रवण के जैसे दिखता है थोड़ा-थोड़ा उसकी जुबां से बहती
चमकते चाँद-सितारे हों उसकी झोली में सारे, बेटी कहे तो पिता बिक जाए, उसे पाला है,बनाकर फूलों की माला (phoolon
तुम ने क्या किया है मेरे लिए, सौ बार सोचो ये बोलने से पहले, हम चुका ना पाएंगे उनके, एहसानों
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर, वो चलेगी जब रूक-रूककर, मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी, वो गुजरेगी जिन राहों से, मैं