समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) : बेटी
समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) है, प्यार का सरोवर है , दिल का टुकड़ा बना लेती है […]
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समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) है, प्यार का सरोवर है , दिल का टुकड़ा बना लेती है […]
चाँद की रौशनी भी शर्माए, सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए मेरी बेटी गुड़िया (beti gudiya ) के जैसे
मैंने माथा रगडा हर चौखट पर, मात-पिता के चरणों को छोड़कर, वो तड़पते रहे पर मैं खुश था, मात-पिता से
जान हथेली पर रखकर (jaan hatheli par rakhkar ) , मुझको ये जीवन दान दिया, पहली प्रार्थना उस माँ के लिए,
जब तक चले माँ तेरे सांसों की डोरी (saanson ki dori ), तूं मन्द-मन्द मुस्काए, तेरे पाँव फिसलने से पहले
एक अलबेला शायर (albela shayar ) -सा, वो हर एक बस्ती में रहता है, खोया-खोया-सा रहे, पता नहीं वो कौन-सी
दान-दहेज (Daan-Dahej ) भी चाहिए, बहु संस्कारी भी, बिन बोले सब लेकर आएगी, बहु हमारी भी, *
मात-पिता करते हैं प्यार हमें, दीवानों की तरह, फिर कुछ लोग क्यों करते हैं व्यहवार, उनसे बेगानों की तरह (beganon
मै उड़ाता रहा धन-दौलत, पिता के खजाने से (pita ke khajane se ), पिता हर बार समझाता था, मुझे किसी
जब किसी की सूनी कोख (sooni kokh ) देखकर , कोई उसे बांझ बोलता है औलाद से तरसती उस माँ