माँ का किरदार (maa ka kirdar ) : कठिन और महान
बेटी बनकर आए या बहन , या पत्नी बनकर फर्ज निभाना, एक औरत के हैं किरदार अनेक, सबसे मुश्किल है […]
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बेटी बनकर आए या बहन , या पत्नी बनकर फर्ज निभाना, एक औरत के हैं किरदार अनेक, सबसे मुश्किल है […]
शाही पकवान मिले या नमक के साथ, रोटी अपने ही घर की खानी है, इस घर में मात-पिता के हैं
मै क्यों ना करूं गर्व से सीना चौड़ा, मेरा बेटा श्रवण के जैसे दिखता है थोड़ा-थोड़ा उसकी जुबां से बहती
चमकते चाँद-सितारे हों उसकी झोली में सारे, बेटी कहे तो पिता बिक जाए, उसे पाला है,बनाकर फूलों की माला (phoolon
तुम ने क्या किया है मेरे लिए, सौ बार सोचो ये बोलने से पहले, हम चुका ना पाएंगे उनके, एहसानों
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर, वो चलेगी जब रूक-रूककर, मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी, वो गुजरेगी जिन राहों से, मैं
माँ कौन कहे मैं बदल गया हूँ मैने एक और जिम्मेदारी (ek aur jimmedari) उठाई है, मुझे रखना पड़ता है
मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है, नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है, क्यों हर पिता का
ऐ काली घटा जरा धीरे से बरस, माँ सो रही है कहीं जाग ना जाए, ऐ ठण्डी हवा ज्यादा शोर
पहली रोटी हो माँ के नाम (maa ke naam), पहला निवाला जाए माँ के मुख में, हम क्यों भूल जाते