पिता बांहों में उठा लेता है,
जब भी बादल गरजता है,
हमारे जीवन का अंधकार मिटा देता है, वो सदा सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta ) है,
* * * * * * * * *
आओ चलो मेरे साथ पिता जी,
उंगली मेरी पकड़कर,
अब तक सोया हूँ मैं भी,
आपके सीने से लिपटकर,
कभी आपने सिखाया था मुझको,
हाथ पकड़कर चलना,
मैंने आप से ही सीखा है,
बड़े-बुजुर्गों के आगे ,
सदा सर झुकाकर चलना,
आप चलोगे मेरे साथ,
मेरे मार्गदर्शक बनकर,
आप वंदनीय हो मेरे लिए,
मैं रहूंगा सदा आपका प्रशंसक बनकर,
आपके जैसा जीवन जी कर,
मेरा भी जीवन निखरता है,
पिता बांहों में उठा लेता है,
जब भी बादल गरजता है,
हमारे जीवन का अंधकार मिटा देता है, वो सदा सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta ) है,
* * * * * * * * *
चलो आपको मैं कराता हूँ,
उगते सूरज के दर्शन,
उगते सूरज की किरणों से,
आपका निर्मल हो जाएगा तन-मन,
मैं चलता था बंद आँखों से ,
कभी आपके पीछे -पीछे,
आप भी चलना मेरे पीछे अपनी आँखों को मीचें,
आपके साथ हमारे घर का,
आंगन फूलों -सा महकता है,
पिता बांहों में उठा लेता है,
जब भी बादल गरजता है,
हमारे जीवन का अंधकार मिटा देता है, वो सदा सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta ) है,
* * * * * * * * *
बादलों को गर्जता देखकर,
मैं छिप जाता था घर के अंदर,
बादलों की गर्ज से मैं अब नहीं डरता हूँ,
बिजली को चमकता देखकर,
मैं अपनी आँखें बंद कर लेता था,
लेकिन अब नहीं करता हूँ,
आपने सिखाया है मुझको,
डर को कैसे दूर भगाना है,
आपने सिखाया है मुझको
आँधीं आए या तुफान,
खुद को मजबूत कैसे बनाना है,
अपनों का जब साथ रहे,
ऊपरवाले का सर पर हाथ रहे,
फिर जीवन अच्छा गुजरता है,
पिता बांहों में उठा लेता है,
जब भी बादल गरजता है,
सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta ) पिता : जलता दीपक
सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta )
मैंने आप जैसी शक्ल-सूरत पाई है,
माँ बोलती है मुझको पिता जी,
तूं बिल्कुल अपने पिता की परछाई है,
मैं जब गहरी नींद में सोता हूँ,
मेरी आँखें चमकती हैं,
मैं जब बदलता हूँ करवटें बार-बार,
माँ बोलती है मेरे चेहरे पर,
एक प्यारी सी मुस्कान दिखती है,
आपके दिल के साथ पिता जी,
मेरा दिल भी धडकता है,
पिता बांहों में उठा लेता है,
जब भी बादल गरजता है,
हमारे जीवन का अंधकार मिटा देता है,
वो सदा सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta ) है,
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आज समय फिर घूमकर आया है,
पहले बचपन मैने जीया था ,
आज पिता जी आपका लौट आया है,
आओ पिता जी घर के आंगन में,
हम दोनों शतरंज का खेल खेलते हैं,
चलो आज फिर एक बार,
हम दोनों वो ही बचपन जीते हैं,
जैसे बचपन में कपड़े गिराते थे इधर उधर,
आओ आज फिर गिरा देते हैं,
माँ एक -एक कपड़ा उठाएगी,
हर बार आँख दिखाएगी,
वो ऐसे बरसेगी हम दोनों पर,
जैसे बादल बरसता है,
पिता बांहों में उठा लेता है,
जब भी बादल गरजता है,
हमारे जीवन का अंधकार मिटा देता है, वो सदा सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta ) है,
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आओ माँ को परेशान करतें हैं फिर,
माँ पहले के जैसे आज भी करती है गिर-गिर,
चलो पिता जी आज श्याम को,
पीपल वाला कुआं देखकर आते है,
कुएं के किनारे पर फिर से,
हम दोनों पाँव लटकाकर बैठ जाते हैं,
आपकी मीठी वाणी मुझे सुकून देती है,
लोग बोलते हैं आज भी आपकी वाणी से,
पहले की भांति शहद टपकता है,
पिता बांहों में उठा लेता है,
जब भी बादल गरजता है,
हमारे जीवन का अंधकार मिटा देता है,
वो सदा सूरज की भांति चमकता (sooraj ki bhanti chamkta ) है,
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creater-राम सैणी
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