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सपनों की निशानी (sapnon ki nishani )

सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) : अपना घर

शाही पकवान मिले या नमक के साथ,
रोटी अपने ही घर की खानी है,
इस घर में मात-पिता के हैं प्राण बसे,
ये घर उनके सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) है,
*       *        *       *         *          *         *         *
सोने की थाली में मिले या,
मिट्टी की थाली में,
दोनों में पेट की भूख मिटानी है,
बस अपने ही हक की मिले दो वक्त,
ये माँ की बात श्यानी है,
मैं शाही पकवानों का आदी नहीं,
हम नमक के साथ भी खा लेते हैं,
माँ ने दिए हैं ऐसे संस्कार की,
हम बड़े-बुजुर्गों के आगे सर को झुका लेते
हम दिल में नहीं रखते भैर,
हाथ जोड़कर उस रब से सबकी मांगे खैर,
थोडा खाकर भी खुश रह लेते हैं,
ये सब उस रब की मेहरबानी है ,                                                                                                                     शाही पकवान मिले या नमक के साथ,
रोटी अपने ही घर की खानी है,
इस घर में मात-पिता के हैं प्राण बसे,
ये घर उनके सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) है,
*        *       *         *          *         *         *         *
इस घर से है माँ को प्यार बहुत,
हर एक कोना सजाया है अपने हाथों से,
उसकी आँखों में तैरते हैं लाल डोरे,
जैसे सोई नहीं है कंई रातों से,
मन मैला नहीं किया है कभी ,
चाहे खाई हो रूखी-सूखी भी,
ना कभी ईश्वर से गिला किया,
चाहे रही हो कभी भूखी भी,
चेहरे पर वास है मुस्कान का,
आँखों में चमक आसमानी है,
शाही पकवान मिले या नमक के साथ,
रोटी अपने ही घर की खानी है,
इस घर में मात-पिता के हैं प्राण बसे,
ये घर उनके सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) है,
*        *       *         *          *         *         *      *
मैं नमक के साथ भी खाता हूँ तो,
मुझे उसमें भी आनंद आता है,
जो दिया है ईश्वर ने सुख के साथ,
वो ही हम-सबको पसंद आता है,
माँ के हाथों का प्यार शामिल है,
चुल्हे की बनी रोटी में,
उसकी मेहनत का पसीना मिला है,
हमारे आंगन की मिट्टी में,
सदा रखुंगा माँ तेरा चेहरा रौशन,
मैं सेवा करूंगा लगाकर‌ अपना तन-मन,
मेरी रगों में बहता माँ लहू खानदानी है,
शाही पकवान मिले या नमक के साथ,
रोटी अपने ही घर की खानी है,
इस घर में मात-पिता के हैं प्राण बसे,
ये घर उनके सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) है,
*        *       *         *          *         *         *      *

सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) : अपनी पहचान 

                                         

आराम ना मिले इस पूरे जहां में भी,
अपने घर को छोड़कर,
आज तक कौन सुखी रह पाया है,
अपने घर से नाता तोड़कर,
अपना घर मंदिर-सा बना दिया,
माँ ने पत्थर के मकान को ,
माँ चाहे तो अपने कदमों में झूका दे,
इस ऊँचे आसमान को,
वो झूके ना किसी गम के आगे,
बड़े पक्के हैं माँ के प्यार के धागे,
मुझे सीख दे माँ की हर बात,
हर बात लगे शयानी है ,
शाही पकवान मिले या नमक के साथ,
रोटी अपने ही घर की खानी है,
इस घर में मात-पिता के हैं प्राण बसे,
ये घर उनके सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) है,
*        *       *         *          *         *         *         *
ईश्वर के सहारे चलता है,
हम-सब का दाना -पानी,
पिता हमको सुनाता है ,
हर रोज ईश्वर की मीठी वाणी,
वो ताकत है वो प्यार है,
सम्मान का वो हकदार हैं,
उसका साथ जैसे दीपों से चमकती रात,
वो हमारे घर का पालनहार हैं,
एक शक्ति छुपी है उसके हाथों में,
सच्चाई झलकतीं है उसकी बातों में,
परिवार का बोझ उठाने की जो खाई है सौगंध,
वो सौगंध उम्रभर निभानी है,
शाही पकवान मिले या नमक के साथ,
रोटी अपने ही घर की खानी है,
इस घर में मात-पिता के हैं प्राण बसे,
ये घर उनके सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) है,
*        *       *         *          *         *         *       *
पिता ज्यादा हवा में उड़ने वाला नहीं,
इस मिट्टी से जुड़े हैं उसके तार ,
लोग दौलत -शोहरत में खुशी ढूंढें,
पिता अपने छोटे से घर को ही माने पूरा संसार,
माँ कहते हुए नहीं थकती है,
एकता ही हमारी शक्ति है,
ये समय है बड़ा बलवान,
इसके आगे क्या अभिमान,
जो मिला है उसमें ही खुश रहना,
सदा प्यार का दरिया बनकर बहना,
कभी खुशी के आंसू कभी ग़म,
सदा हंसते रहेंगे हम,
बस ये ही जिंदगानी है,
शाही पकवान मिले या नमक के साथ,
रोटी अपने ही घर की खानी है,
इस घर में मात-पिता के हैं प्राण बसे,
ये घर उनके सपनों की निशानी (sapnon ki nishani ) ,
*        *       *         *          *         *         *      *

creater – राम सैनी

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