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रोटी का आदर (roti ka adar )

रोटी का आदर (roti ka adar ) : स्नेह का प्रसाद

दो रोटी बैलों को डालें,
एक रोटी चिड़ियों को खिलाता है,
रोटी का आदर (roti ka adar ) करे सर झुकाकर,
पिता आकाश को नमस्कार कर,
फिर खुद रोटी खाता है,
*        *        *        *
पिता हल जोतकर आ जाता है,
सूरज चडने से पहले,
वो अपने बैलों को प्यार करता है,
हल जोतने से पहले,
पिता जब भी बाजार जाता है,
पिंजरें में बंद परिंदों का,
एक पिंजरां घर लेकर आता है,
पिता देख नहीं सकता किसी परिंदे को,
गुलामी की जंजीरों में,
वो खोलकर पिंजरा परिंदों का,
उनको खुले आसमान में छोड़ देता है,
उनकी गुलामी की जंजीरों को,
पिता एक पल में तोड़ देता है,
दो रोटी बैलों को डालें,
एक रोटी चिड़ियों को खिलाता है,
रोटी का आदर (roti ka adar ) करे सर झुकाकर,
पिता आकाश को नमस्कार कर,
फिर खुद रोटी खाता है,
*        *        *        *
पिता आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है,
इसलिए उसका चेहरा खिला हुआ है,
शायद दिल में दया का होना,
उनकी खुशियों का राज है,
इसलिए उनके सर पर कामयाबी का ताज है,
मेहनत करता है इसलिए घर चलता है,
पिता अपनी मेहनत का ही सदा खाता है,
दो रोटी बैलों को डालें,
एक रोटी चिड़ियों को खिलाता है,
रोटी का आदर (roti ka adar ) करे सर झुकाकर,
पिता आकाश को नमस्कार कर,
फिर खुद रोटी खाता है,
*        *        *        *
वो आज भी धरती माँ पर,
पालती मारकर ही खाना खाता है,
पिता हाथ जोड़कर सर को झुकाए,
खाना जब सामने आता है,
अपनी जड़ों से जुड़कर रहना,
शायद उसके दिल को भाता है,
अपने परिवार को खुश देखकर,
पिता मन ही मन मुस्कराता है,
दो रोटी बैलों को डालें,
एक रोटी चिड़ियों को खिलाता है,
रोटी का आदर (roti ka adar ) करे सर झुकाकर,
पिता आकाश को नमस्कार कर,
फिर खुद रोटी खाता है,
*        *        *        *

रोटी का आदर (roti ka adar ) : धरती का आशीर्वाद

 

रोटी का आदर (roti ka adar )
रोटी का आदर (roti ka adar )

 

पिता सफ़ेद धोती -कुरता पहनकर,
अपनी मूंछों को ताव देता है,
पिता का जीवन ऐसा है,
जैसे कोई पीपल का पेड़,
सबको घनी छाँव देता है,
समस्याएं कैसी भी हों,
वो सब पर काबू पा लेता है,
समस्याएं हौंसलों से बड़ी नहीं,
पिता सबको ये दिखा देता है,
हम हाथ रखते हैं जिस चीज पर,
पिता एक पल में सबको दिलाता है ,
दो रोटी बैलों को डालें,
एक रोटी चिड़ियों को खिलाता है,
रोटी का आदर (roti ka adar ) करे सर झुकाकर,
पिता आकाश को नमस्कार कर,
फिर खुद रोटी खाता है,
*        *        *        *
चालाकी और झूठ -फरेब से,
वो आज भी नफ़रत करता है,
सूरज चडने से पहले,
वो आज भी कसरत करता है,
मतलबी लोगों को दूर से नमस्कार,
दिल के भोलों को दिल से प्यार,
वो बिन ‌मौसम गरजता भी है,
पर उसकी गरज में भी प्यार छिपा है,
पिता है तो हमारा घर रौशन है,
वो एक जलता दीया है,
पिता दिल का नरम है,
स्वभाव से थोड़ा गर्म है,
वो हर रिश्ते को दिल से निभाता है,
दो रोटी बैलों को डालें,
एक रोटी चिड़ियों को खिलाता है,
रोटी का आदर (roti ka adar ) करे सर झुकाकर,
पिता आकाश को नमस्कार कर,
फिर खुद रोटी खाता है,
*        *        *        *
कभी बारिश का ठंडा पानी,
चेहरे पर गुस्सा खानदानी,
चेहरा शांत दिल में हलचल,
हम सबकी चिंता करता है हर पल,
उसकी ये ही अदा निराली है,
सोच रखता है दूर की,
ना कभी किसी की जी-हजूरी की,
ये उस मसीहे की कहानी है,
इसलिए पिता ईश्वर का रुप कहलाता है,
दो रोटी बैलों को डालें,
एक रोटी चिड़ियों को खिलाता है,
रोटी का आदर (roti ka adar ) करे सर झुकाकर,
पिता आकाश को नमस्कार कर,
फिर खुद रोटी खाता है,
*        *        *        *
creater-राम सैणी

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