मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी,
यदि बहू भी मुझे माँ मान लें,
हर घर में बहेगा सुख का सागर,
यदि सास-बहू भी अपने -अपने,
रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) जान लें,
* * * * * *
मैं अब तक थी माँ एक बेटे की,
आज एक बहू मेरे घर में,
मेरी बेटी बनकर आई है,
उसकी हर उम्मीद करुंगी पूरी,
वो जो भी उम्मीदें साथ लेकर आईं हैं,
घर करेगा मेरा जगमग-जगमग,
जब बहू घूमेगी सज-धजकर,
उस दिन जमीं पर नहीं पड़ेंगे मेरे ये पग,
मानो सावन बरसेगा उस दिन जमकर,
यदि तन-मन से हम जुड़ जाएं,
एक-दुजे को मन को मन से बांध लें
मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी,
यदि बहू भी मुझे माँ मान लें,
हर घर में बहेगा सुख का सागर,
यदि सास-बहू भी अपने -अपने,
रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) जान लें,
* * * * * *
जब पाँव छूकर दिखाएगी,
मेरे बहू अपने संस्कार,
मेरे मुख से निकलेंगें उसके लिए,
दुआओं के अनमोल भण्डार,
मैं उस दिन फूली नहीं समाऊंगी,
मैं सबको हंस-हंसकर बतलाऊंगी,
मेरी बहू भी मेरी बेटी है,
उसकी आँखों में काजल की धार स्लेटी है,
मैं ना लूंगी उसका कोई इम्तिहान,
ना वो मेरा कोई इम्तिहान ले,
मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी,
यदि बहू भी मुझे माँ मान लें,
हर घर में बहेगा सुख का सागर,
यदि सास-बहू भी अपने -अपने,
रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) जान लें,
* * * * * *
मैं इससे ज्यादा और क्या कहूं,
मुझे सास में दिखती है माँ की परछाई,
जिस घर में मैं बनकर आई बहू,
जैसे देखें थे मैंने सपने,
मेरे अपनों के जैसे मुझे मिलें हैं अपने,
यहाँ मेरे संस्कारों के जैसे संस्कार हैं,
घर में सब पलकों पर बिठाकर करते प्यार हैं,
सास-बहू के बीच की जो कड़ी है,
मैं उसको बूंद -बूंद करके ना रिसने दूंगी,
हमारा कभी-कभी हो सकता मन-मुटाव,
पर उस बीच की कड़ी को,
दो चक्की के पाटों के बीच ना पिसने दूंगी,
सास-बहू के इस रिश्ते को ,
चलो हम एक नई पहचान दें,
मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी,
यदि बहू भी मुझे माँ मान लें,
हर घर में बहेगा सुख का सागर,
यदि सास-बहू भी अपने -अपने,
रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) जान लें,
* * * * * *रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) : सुखद रिश्ते
थोड़ा प्यार थोड़ा तकरार,
ये ही जीवन का आधार,
घर को कैसे हैं मंदिर बनाना,
माँ ने मुझे सिखाया है,
मीठी जुबान सबका सम्मान,
ये माँ ने मुझे बताया है,
मैंने मान लिया है सास को माँ,
यदि सास भी बेटी मुझे मान लें,
मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी,
यदि बहू भी मुझे माँ मान लें,
हर घर में बहेगा सुख का सागर,
यदि सास-बहू भी अपने -अपने,
रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) जान लें,
* * * * * *
रिश्तों की मर्यादा रखना,
ये सास-बहू दोनों का काम है,
घर में प्यारा माहोल बनाकर रखना,
ये हम दोनों का काम है,
कुछ खामियां मुझ में भी होंगी
कुछ खामियां तुझ में भी,
आओ हम दोनों नजरअंदाज करें,
एक -दुजे की खामियां छूपाकर,
खूबियां बताकर हम दिन की शुरुआत करें,
आओ सास-बहू के रिश्ते को,
आज से हम माँ-बेटी का नाम दें,
मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी,
यदि बहू भी मुझे माँ मान लें,
हर घर में बहेगा सुख का सागर,
यदि सास-बहू भी अपने -अपने,
रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) जान लें,
* * * * * *
मैं प्यार करुं तुम्हें माँ बनकर,
तुम मेरी बेटी बनकर रहना,
कभी ऊँच-नीच गलती से हो जाए तो,
तुम बेटी बनकर सहना,
दिल को तुम्हारे कभी ना पहूँचे ठेस,
मैं इतना ख्याल रखूंगी,
मैं दिल में ना रखूंगी कभी अपने द्वेष,
मैं इतना ख्याल रखूंगी,
एक-दुजे की भावनाओं को,
हम दिल से सम्मान दें,
मैंने मान लिया है अपनी बहू को बेटी,
यदि बहू भी मुझे माँ मान लें,
हर घर में बहेगा सुख का सागर,
यदि सास-बहू भी अपने -अपने,
रिश्तों की मर्यादा (rishton ki maryada ) जान लें,
* * * * * *
creater-राम सैणी
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