pita ka kirdar

पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) : एक अदृश्य रक्षक

जीवनकी की गाड़ी कैसे चलती है,
कभी अकेले चलाकर तो दिखा,
पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) निभाना बडा मुश्किल है,
कभी उसकी जिम्मेदारियां उठाकर तो दिखा,
* * * * * *

अपनी आँखों से हटा चश्मा एशो-आराम का ,
अब सहारा लेना छोड़ पिता के नाम का,
जिस फ़रिश्ते ने त्याग दिए हैं,
एक-एक करके शौक अपने,
तेरे सपने पुरे करने के लिए,
जिस पिता ने त्याग दिए हैं खुद के सपने,
तेरे सपने पुरे करने के लिए,
कभी उसका कोई शौक पूरा करके तो दिखा,
जीवनकी की गाड़ी कैसे चलती है,
कभी अकेले चलाकर तो दिखा,
पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) निभाना बडा मुश्किल है,
कभी उसकी जिम्मेदारियां उठाकर तो दिखा,
* * * * * *
कब तक चलेगा पिता के पीछे -पीछे,
कब तक रखेगा अपनी आँखें मीचें,
उसके कदमों से क़दम मिलाकर चल,
अब थोडा उससे आगे निकल,
जो बचपन ज़िया है अब तक ,
वो सब पिता की हैं मेहरबानी ,
हवाई घोड़े दौड़ाना छोड़ जरा,
दुनिया के रंग देख जरा,
अब छोड करना अपनी मनमानी,
जिस पिता के साये में सोया है नींद गहरी,
अब उनको भी चैन की नींद सुलाकर तो दिखा,
जीवनकी की गाड़ी कैसे चलती है,
कभी अकेले चलाकर तो दिखा,
पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) निभाना बडा मुश्किल है,
कभी उसकी जिम्मेदारियां उठाकर तो दिखा,
* * * * * *
जिस पिता ने रखा था हाध कांधे पर,
अब उसका हाथ अपने कांधे पर रखकर,
चलकर तो देख एक बार,
जो जागा तुम्हारे लिए सारी-सारी रात,
कभी उसके लिए रातभर,
जागकर तो देख एक बार,
पिता प्यार करता है दीवानों की तरह,
जो कभी व्यहवार ना करें बेगानों की तरह,
तुम चले थे जिसकी उंगली पकड़कर,
कभी उसका हाथ थामकर चलकर तो दिखा,
जीवनकी की गाड़ी कैसे चलती है,
कभी अकेले चलाकर तो दिखा,
पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) निभाना बडा मुश्किल है,
कभी उसकी जिम्मेदारियां उठाकर तो दिखा,
* * * * * *

पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) :  अकेले चलने का सच

 

pita ka kirdar
pita ka kirdar

वो देखना चाहता है तुम्हे मुस्कराते हुए,
उसमें लाखों खुबियां हैं एक नहीं,
कभी मन की आँखों से देख सही,
वो देखना चाहता है तुम्हारी ध्वजा,
आसमान में लहराते हुए,
उसे हर जिम्मेदारी से कर आजाद,
अपनी कामयाबी का तूं कर आगाज़,
पिता की जगह कभी आकर तो देख,
उस जैसा किरदार निभाकर तो देख,
पिता हर बार झुक जाता है,
फलों से भरे पेड़ की तरह,
कभी उसके जैसे सर अपना झूकाकर तो दिखा,
जीवनकी की गाड़ी कैसे चलती है,
कभी अकेले चलाकर तो दिखा,
पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) निभाना बडा मुश्किल है,
कभी उसकी जिम्मेदारियां उठाकर तो दिखा,

*        *           *           *

अब कुछ पल दे उसे सुकून भरे,
अब उसे थोड़ा अभिमान करने दे,
वो चलते-चलते शायद थक चुका है,
थोड़ा उसे अब आराम करने दे,
वो सितारा है आसमान का,
जिसकी चमक से तूं चमकता है,
वो जीता है हर पल तेरे लिए,
तेरी तारीफ करते नहीं थकता है,
जो करता था हर घड़ी तुम्हारी तारीफ,
कभी उसकी तारीफ करके तों दिखा,
जीवनकी की गाड़ी कैसे चलती है,
कभी अकेले चलाकर तो दिखा,
पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) निभाना बडा मुश्किल है,
कभी उसकी जिम्मेदारियां उठाकर तो दिखा,
* * * * * *
जिस मिट्टी पर पड़ते हैं पिता के कदम,
उस मिट्टी को सर से वारना,
जिसकी नजरों से तुम ने देखी है ये दुनिया,
उस पिता को कभी नजरों से ना उतारना,
एक नज़र उसके चेहरे पर डाल,
रख जितना रख सकता है ख्याल,
कभी उसके जख्मों पर मरहम तो लगा,
उसके जैसा भी कोई हो सकता है क्या,
पिता की सलाह लेकर करना काम,
उसके पास है हर समस्या का हल,
उसने दिखाया है हर घड़ी बाप बनकर,
आज तूं भी बेटे का किरदार निभाकर तो दिखा,
जीवनकी की गाड़ी कैसे चलती है,
कभी अकेले चलाकर तो दिखा,
पिता का किरदार ( pita ka kirdar ) निभाना बडा मुश्किल है,
कभी उसकी जिम्मेदारियां उठाकर तो दिखा,
* * * * * *
creation-राम सैणी
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