नया दौर (nya daur) है नया शोर है ,
आँखें दिखाना,जुबान लड़ाना,
अब हर रोज का काम है,
पिता जो बोले वो करना नहीं,
आँखों की घूर से अब डरना नहीं,
मुझे लगता है शायद जीना इसी का नाम है,
* * * * *
मैंने देखा लिया है जी कर पिता के साये में,
हर पल होती थी रोक-टोक मेरी राहों में,
बांध सब्र का मेरा अब टूट गया है,
मैं कब तक चलूंगा पिता की उंगली पकड़कर,
मैं देखना चाहता हूँ अब,
घर से बाहर निकल कर,
ये तीर कमान से अब छूट गया है,
सांस ली है आज पहली बार,
मैंने खुले आसमान में,
आज मैं आजाद परिंदों के जैसे उड़ रहा हूँ,
इस नीले आसमान में,
आज से छोड़ दिए हैं सब पुराने रास्ते,
छोड़ दिया है अपना पुराना गाँव है,
नया दौर (nya daur) है नया शोर है ,
आँखें दिखाना,जुबान लड़ाना,
अब हर रोज का काम है,
पिता जो बोले वो करना नहीं,
आँखों की घूर से अब डरना नहीं,
मुझे लगता है शायद जीना इसी का नाम है,
* * * * *
पता नहीं मुझको क्यों लग रहा है,
जैसे मेरे जैसा नहीं है कोई इस जहान में,
कल-कल करती नदियों का शोर,
मुझे सुनाई दे रहा है साफ़-साफ़,
मैं खुद के जीवन की बागडोर,
संभालूंगा आज से आप,
बोझ नहीं है कोई सर पर मेरे,
अब ज्यादा कोई पूछता नहीं है घर पर मेरे,
अब पहले से ज्यादा मेरे जीवन में आराम है,
नया दौर (nya daur) है नया शोर है ,
आँखें दिखाना,जुबान लड़ाना,
अब हर रोज का काम है,
पिता जो बोले वो करना नहीं,
आँखों की घूर से अब डरना नहीं,
मुझे लगता है शायद जीना इसी का नाम है,
* * * * *
बेटा जब हो जाए जवान,
अपने पिता का ना करता हो सम्मान,
दिल में एक दर्द-सा होता है,
मैं देखा करता था हवा में सिक्के उछालकर,
मन्नतें मांगता था पानी में सिक्कों को डालकर,
मेरी मन्नतों का फल मुझे कैसा मिलेगा,
ईश्वर सुनेगा एक दिन दिल की हमारी,
सौ तारे नहीं एक चाँद झोली में डाल दो हमारी ,
सोच-सोच कर दुखी रहता हूँ,
मुझे मेरा आने वाला कल कैसा मिलेगा,
दीये उम्मीद के सब बुझ गए हैं,
बेटे के व्यवहार से सब उब गए हैं,
मात-पिता है सच्चे रखवाले,
मात-पिता ही घनी छाँव हैं,
नया दौर (nya daur) है नया शोर है ,
आँखें दिखाना,जुबान लड़ाना,
अब हर रोज का काम है,
पिता जो बोले वो करना नहीं,
आँखों की घूर से अब डरना नहीं,
मुझे लगता है शायद जीना इसी का नाम है,
* * * * *नया दौर (nya daur) नया शोर : बदलते रिश्तों की आहट
मासूम सा लगता था जब ये था छोटा,
यूं लगता था जैसे हो मीठे जल का लौटा,
जब रखा उसने जवानी में कदम,
चेहरे पर गुस्सा आँखों में पागलपन,
वो रखता था हरदम,
ना कोई लाज ना कोई शर्म,
अपनी ही धुन में मस्त रहना,
ना देखे सुबह ना देखे श्याम है,
नया दौर (nya daur) है नया शोर है ,
आँखें दिखाना,जुबान लड़ाना,
अब हर रोज का काम है,
पिता जो बोले वो करना नहीं,
आँखों की घूर से अब डरना नहीं,
मुझे लगता है शायद जीना इसी का नाम है,
* * * * *
टूटने लगा है अब भ्रम मेरा,
पहले से थोड़ा कम हुआ अभिमान मेरा,
मैं अब दोबारा सुनना चाहता हूँ,
पिता की वो ही कड़क आवाज,
मुझे फिर से याद आने लगी है,
पिता की बोली हुई हर बात,
एक ठोकर खाने के बाद,
मैं थोड़ा-थोड़ा फिर से संभलने लगा हूँ,
ना जाने क्यों पिता की बातों से,
मैं फिर से पिंगलने लगा हूँ,
जो चुना था रास्ता मैंने अपने लिए,
शायद वो रास्ता गलत था,
मैं सोचता था शायद ये आज-कल का चलन था,
अपना घर महलों से प्यारा,
जहाँ मात-पिता का होता है पहरा,
ये सब बच्चों के लिए एक पैगाम है,
नया दौर (nya daur) है नया शोर है ,
आँखें दिखाना,जुबान लड़ाना,
अब हर रोज का काम है,
पिता जो बोले वो करना नहीं,
आँखों की घूर से अब डरना नहीं,
मुझे लगता है शायद जीना इसी का नाम है,
* * * * *
वो भ्रम दूर हुआ अब आँखों से मेरी,
कैसे कहूं अपनी प्यारी माँ से,
मैं फिर से झूलना चाहता हूँ बांहों में तेरी,
पिता का गुस्सा माँ की डांट,
आज से सर आँखों पर,
जिन राहों पर चलेगा पिता,
मैं भी चलूंगा उन्हीं राहों पर,
मै लाज रखुंगा पिता के नाम की,
माँ मुझे कसम है तुम्हारे पाँव की,
आज से मैं छोड़ दूंगा जो संगत बदनाम है,
नया दौर (nya daur) है नया शोर है ,
आँखें दिखाना,जुबान लड़ाना,
अब हर रोज का काम है,
पिता जो बोले वो करना नहीं,
आँखों की घूर से अब डरना नहीं,
मुझे लगता है शायद जीना इसी का नाम है,
* * * * *creater – राम सैनी
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