maa ka dusara bachpan

माँ का दूसरा बचपन ( maa ka dusara bachpan ) : माँ की ज़िद

 

आज फिर से लौट आया है,
माँ का दुसरा बचपन (maa ka dusara bachpan ),
अब बच्चों के जैसे हो गया है माँ का मन,
बचपन में हम करते थे मनमानी,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
बचपन में किया है परेशान माँ को,
आज माँ करती है तो कोई बात नहीं,
कल तक रुठ जाते थे छोटी-छोटी बातों पर,
आज माँ रूठे तो कोई बात नहीं,
मान लेना की माँ का बचपन,
आज फिर से लौट आया है,
बचपन में माँ ने सर झुकाया था,
क्या हुआ जो आज तुम ने सर झुकाया है,
बचपन में खाई है रोटी माँ के हाथों से,
आज माँ खाना चाहे तो कोई बात नहीं,
बचपन में किया है परेशान माँ को,
आज माँ करती है तो कोई बात नहीं,
कल तक रुठ जाते थे छोटी-छोटी बातों पर,
आज माँ रूठे तो कोई बात नहीं,
* * * * *
माँ के हाथों से खाकर ही आज बलवान बने हो,
उसके दिखाए रास्ते पर चल कर ही,
आज तुम एक नेक इंसान बने हो,
वो हर ग़लती को छोटा समझकर,
हमें बार-बार माफ कर देती थी,
हमारे चेहरे के पसीने को माँ,
अपने कीमती दुपट्टे से साफ कर देती थी,
कभी माँ को पसंद था हमारा शोर-शराबा,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
आज फिर से लौट आया है,
माँ का दुसरा बचपन (maa ka dusara bachpan ),
अब बच्चों के जैसे हो गया है माँ का मन,
बचपन में हम करते थे मनमानी,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
* * * * *
तुम्हारी आँखों की ये जो चमक है,
ये सब माँ की वजह से है,
तुम्हारे चेहरे पर ये जो आभा छाईं रहती है,
ये सब माँ की वजह से है,
माँ मीठे जल की तरह है,
माँ आने वाले चमकते कल की तरह है,
वो चमकते आइने की तरह,
हमें चमकाकर रखती है,
सही क्या है गलत क्या है,
माँ हमें बताकर रखती है,
हमारे लिए माँ गुजारती थी,
सारी-सारी रात बैठकर,
कोई और नहीं दिखा सकता है,
माँ के जैसा अपनापन,
आज फिर से लौट आया है,
माँ का दुसरा बचपन (maa ka dusara bachpan ),
अब बच्चों के जैसे हो गया है माँ का मन,
बचपन में हम करते थे मनमानी,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
* * * * *
माँ दिल समंदर-सा रखती है,
अपने आंचल में सदा छूपा रखती है,
महानता ही माँ की निशानी है,
माँ ना रहे खपा होकर हमारी वजह से,
माँ सदा रहे मुस्कराकर हमारी वजह से,
सच में वो सबसे बड़ी ज्ञानी है,
हमारी लाखो गलतियां माफ करने वाली माँ की,
बुढ़ापे में कुछ गलतियां सिखिए माफ करना,
बच्चों में भी आए सेवा के संस्कार,
इसलिए शुरुआत आप करना,
बचपन में माँ हमारी पसंद का,
प्यार से खिलाती थी खाना,
आज माँ खाएं तो कोई बात नहीं,
आज फिर से लौट आया है,
माँ का दुसरा बचपन (maa ka dusara bachpan ),
अब बच्चों के जैसे हो गया है माँ का मन,
बचपन में हम करते थे मनमानी,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
* * * * *

माँ का दूसरा बचपन ( maa ka dusara bachpan ) : माँ की मासूमियत फिर से

 

maa ka dusara bachpan
maa ka dusara bachpan

दौलत से चाहे अमीर ना हो,
लेकिन माँ को देखकर हमारे चेहरे पर,
हमेशा एक खुशी की लकीर हो,
आंगन में उड़ती रंग-बिरंगी तितलियों के जैसे,
पानी में तैरती चमकती मछलियों के जैसे,
माँ के कदमों की आहट सदा सुनाई दे,
बचपन में चलते थे जिस माँ की उंगली पकड़कर,
आज माँ चलना चाहे तो कोई बात नहीं,
आज फिर से लौट आया है,
माँ का दुसरा बचपन (maa ka dusara bachpan ),
अब बच्चों के जैसे हो गया है माँ का मन,
बचपन में हम करते थे मनमानी,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
* * * * *
कल तक टुटते थे ना जाने,
हमसे कितने ही फूलदान,
आज माँ से टूट ग‌ए तो नाराज़ मत हो,
कल तक माँ ने अपने जीवन के अनमोल पल,
हमारे लिए छोड़ दिए थे,
आज आपसे छूट जाएं तो नाराज़ मत हो,
कल तक माँ‌ ऊँचा बोलती थी,
हम चुपचाप सुनते थे,
आज माँ ऊँचा बोले तो सुन लेना,
कल तक माँ हमारे सुख के लिए कांटों से भरा,
रास्ता हंसते-हंसते चुन लेती थी,
आज आपको चुनना पडे तो चुन लेना,
कभी माँ पड़ लेती थी लकीरें हमारे माथे की,
आज आपको पडना पडे तो कोई बात नहीं,
आज फिर से लौट आया है,
माँ का दुसरा बचपन (maa ka dusara bachpan ),
अब बच्चों के जैसे हो गया है माँ का मन,
बचपन में हम करते थे मनमानी,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
* * * * *
कभी माँ हमारा पेट भरती थी खुद भुखा रहकर,
आज आपको माँ का पेट भरना पड़े तो,
अपने कदय पीछे मत हटाना,
कल तक सुनती थी माँ छोटी-छोटी बातों को,
आज आपकों सुनना पडे तो नजरें मत घूमाना,
कल तक हम जिद्द किया करते थे,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
आज फिर से लौट आया है,
माँ का दुसरा बचपन (maa ka dusara bachpan ),
अब बच्चों के जैसे हो गया है माँ का मन,
बचपन में हम करते थे मनमानी,
आज माँ करें तो कोई बात नहीं,
* * * * *
creation — राम सैणी
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