google.com, pub-4922214074353243 DIRECT, f08c47fec0942fa0
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala)

जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) : पिता और पुत्र

 

जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या,
मुझको सब-कुछ है पता,
मैं चला था उस पिता को सिखाने,
जिस पिता ने मुझे सिखाकर है बड़ा किया,
कैसे चलना है मैं उसको बता रहा था,
जिस पिता ने मुझे दो पाँव पर है खड़ा किया,
*      *        *        *         *        *
मुझे हर बार ऐसा लगता था,
पिता के जैसे हुक्म चलाने में,
क्या कोई पैसा लगता था,
कैसे पिता सारे घर पर अधिकार जमाता था,
मुझे ये देखकर गुस्सा आता था हर बार,
पूरे घर की बागडोर आएगी मेरे हाथों में,
रब जाने कब होगा ये चमत्कार,
मैं सोचता था बार -बार,
पिता हम सब पर हक जमाता है या प्यार,
बढ़ती उम्र के चलते हुए,
उसका शरीर लगता था थका हुआ,
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या,
मुझको सब-कुछ है पता,
मैं चला था उस पिता को सिखाने,
जिस पिता ने मुझे सिखाकर है बड़ा किया,
कैसे चलना है मैं उसको बता रहा था,
जिस पिता ने मुझे दो पाँव पर है खड़ा किया,
*      *        *        *         *       *
मुझे घर से बाहर निकलने से पहले,
वो हर बार टोकता था,
हाथ पकड़ मेरा वो हर बार रोकता था,
ध्यान से जाना देखकर खाना,
हर सुबह मुझे ये ही पाठ पढ़ाता था,
समय से सोना, बेवजह ना बोलना,
हर रात वो मुझे ये ही समझाता था,
मै पिता को बोलने लगा था,
अब मैं इतना बच्चा भी नहीं हूँ,
मैं आसमान के तारे गिनना सिख गया हूँ,
अब मैं इतना कच्चा भी नहीं हूँ,
पिता की सलाह है कीमती हीरे के जैसे,
जैसे हों कोई हीरा जमीन में गढ़ा हुआ,
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या,
मुझको सब-कुछ है पता,
मैं चला था उस पिता को सिखाने,
जिस पिता ने मुझे सिखाकर है बड़ा किया,
कैसे चलना है मैं उसको बता रहा था,
जिस पिता ने मुझे दो पाँव पर है खड़ा किया,
*      *        *        *         *       *
घर चलाने का मिलने लगा था,
अब मुझको थोड़ा-थोडा मौक़ा,
पिता का स्वास्थ्य भी अब देने लगा‌ था धोखा,
पिता चारपाई पर अब करने लगा था आराम,
घर में अब चलने लगा था मेरा नाम,
जब तक पिता का जोड़ा हुआ पैसा चलता रहा,
मेरा चेहरा हर दिन खिलता रहा,
दंग रह गया मैं सुनकर पिता का जवाब,
अब तक बनकर रहा तूं,
पिता की वजह से नवाब,
पैसा मिलता है पसीना बहाकर,
ऐसे ही नहीं मिलता राहों में पड़ा हुआ,
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या,
मुझको सब-कुछ है पता
मैं चला था उस पिता को सिखाने,
जिस पिता ने मुझे सिखाकर है बड़ा किया,
कैसे चलना है मैं उसको बता रहा था,
जिस पिता ने मुझे दो पाँव पर है खड़ा किया,

*      *        *        *         *         *

जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) : सफर की कहानी
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala)
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala)

 

गाड़ी पूरे घर की अब तुम्हें ही चलानी है,
तेल कितना है दीये मे,
रौशनी कहाँ तक जानी है,
ये मुझे बताओ जरा,
आ बैठ मेरे पास कुछ पल जरा,
आ सीख ले मुझ से परेशानियों के हल जरा,
अब तक क्या सीखा है तुम ने मेरे तजुर्बे से,
बैठकर मुझे बताओ जरा,
ज़ख्म कुरेदे जाते हैं यहाँ,
जो अभी न‌ए-न‌ए हैं,
रोते हैं बड़े जोर -जोर से उनके लिए,
दुनिया से जो चले गए हैं
ये दुनिया है पीतल के जैसे,
जिस पर सोने का पानी चढ़ा हुआ है,
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या,
मुझको सब-कुछ है पता
मैं चला था उस पिता को सिखाने,
जिस पिता ने मुझे सिखाकर है बड़ा किया,
कैसे चलना है मैं उसको बता रहा था,
जिस पिता ने मुझे दो पाँव पर है खड़ा किया,
*      *        *        *         *       *
मेरे माथे से चलकर पसीना,
पैरों तक जाने लगा था,
अब वक्त भी अपना असली रंग दिखाने लगा था,
सबके चेहरे मुझे साफ़-साफ़ नजर आने लगे थे,
वो ही सबसे पहले दूर हो ग‌ए,
जो कभी मेरे अपने थे,
मैं चलता रहा अकेले तपती दोपहर में ,
आज इस शहर में तो कल उस शहर में,
जब से मेरे सर पर आ गई है,
पूरे परिवार की जिम्मेदारी,
अब समझ में आने लगी है पिता की वफादारी,
नींद आँखोँ से जाने लगी है,
कल की चिंता अभी से सताने लगी है,
अभी तक दिन गुजर रहे थे आराम से,
जो पिता का खजाना था दबा हुआ,
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या,
मुझको सब-कुछ है पता
मैं चला था उस पिता को सिखाने,
जिस पिता ने मुझे सिखाकर है बड़ा किया,
कैसे चलना है मैं उसको बता रहा था,
जिस पिता ने मुझे दो पाँव पर है खड़ा किया,
*      *        *        *         *        *
स्वभाव से पिता क्यों इतना कठोर होता है,
उसकी आँखों में बेचैनी
दिल में ना सुनाई देने वाला,
एक अजीब सा शोर होता है,
अब थोड़ा-थोड़ा समझ आने लगा है,
सबके दिल की जान लेना,
खुद को नजरंदाज करके,
वो खुद चाहे नाराज रहे पर,
घर में रखता नहीं था किसी को नाराज़ करके
ना रखता था भैर दिल में,
ना कभी किसी से कोई दगा किया है,
जीवन की पाठशाला ( jeevan ki pathshala) है क्या,
मुझको सब-कुछ है पता
मैं चला था उस पिता को सिखाने,
जिस पिता ने मुझे सिखाकर है बड़ा किया,
कैसे चलना है मैं उसको बता रहा था,
जिस पिता ने मुझे दो पाँव पर है खड़ा किया,
*      *        *        *         *        *
creater -राम सैणी
must read:माँ की छाँव में सुकुन (maa ki chhanv me sukun ) : मीठी नींद
must read:बेटी का दर्द (beti ka dard ) : पिता की आँखों से

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top