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फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal)

फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) : वक्त की मिठास

 

फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) साथ बिताओ हमारे,
ये वादा तुम्हारा हमें सख्त चाहिए,
मात-पिता नहीं चाहते कोई महल अटारे,
बस बच्चों का थोड़ा वक्त चाहिए,
* * * * *
दौलत -शोहरत का कोई लालच नहीं,
बच्चों से संग गुजरे पल दो पल,
सीने से लगाकर बच्चों को खुश हो जाए,
मात-पिता का मन निर्मल,
एक ही घर में रहते हैं,
हम बेगानों के जैसे,
व्यवहार होता है साथ हमारे,
पराए इन्सानों के जैसे,
सब रहते हमारे पास -पास,
फिर भी ना जाने मन क्यों है उदास,
निस्वार्थ हो सेवा मात-पिता की,
इस सेवा में ना कोई शर्त चाहिए,
फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) साथ बिताओ हमारे,
ये वादा तुम्हारा हमें सख्त चाहिए,
मात-पिता नहीं चाहते कोई महल अटारे,
बस बच्चों का थोड़ा वक्त चाहिए,
* * * * *
कंई बार तो मन करता है,
अकेला बैठकर हम रोएं
नींद नहीं है आँखों में,
हर रात खुली आँखों से हम सोएं,
हमारी तड़फ जानेगा वो,
जिसके अंदर दौड़ता है रक्त हमारा,
हम चाहते हैं बच्चों संग गुजरे,
हंसते -गाते वक्त हमारा,
जो मात-पिता को रखें दिल में,
ऐसे मात-पिता के भक्त चाहिए,
फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) साथ बिताओ हमारे,
ये वादा तुम्हारा हमें सख्त चाहिए,
मात-पिता नहीं चाहते कोई महल अटारे,
बस बच्चों का थोड़ा वक्त चाहिए,
* * * * *
बच्चे होते हैं एक हवा का झोंका,
जो मात-पिता के मन को शीतल कर दें,
मन शांत हो जाता है मात-पिता का
यदि माता-पिता संग बच्चे,
बातें पल दो पल कर लें,
हमें कैसे समझाएं मन है चंचल,
बिन बच्चों के सूना लगता है आँचल,
हमारे कान तरसते रहते हैं,
सूनने को दो मीठे बोल,
सूरत प्यारी देखकर बच्चों की,
मन में बजते हैं खुशियों के ढोल,
बच्चे हाल-चाल रहें पूछते इतना ही काफी है,
चाहे जीवन में वो कितने ही रहें व्यस्थ,
फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) साथ बिताओ हमारे,
ये वादा तुम्हारा हमें सख्त चाहिए,
मात-पिता नहीं चाहते कोई महल अटारे,
बस बच्चों का थोड़ा वक्त चाहिए,
* * * * *

फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) : वक्त की सौगात

जब अंदर-बाहर जाते हैं,
दूर से ही अपने हाथ हिलाते हैं,
छूकर पाँव आशिर्वाद लेने में,
शायद वो शरमाते हैं,
हीरे-मोती ना हार चाहिए,
बस हमें थोड़ा सा प्यार चाहिए,
नाराज़गी ना हो मात-पिता संग,
ऐसा एक प्यारा संसार चाहिए,
बच्चे बने मात-पिता के चेहरे की रौनक,
ऐसा नजारा आखरी सांसों तक चाहिए,
फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) साथ बिताओ हमारे,
ये वादा तुम्हारा हमें सख्त चाहिए,
मात-पिता नहीं चाहते कोई महल अटारे,
बस बच्चों का थोड़ा वक्त चाहिए,
* * * * *
हम दोनों की ये बात नहीं,
ऐसी ही है हर घर की कहानी,
रूखा सा हो गया बच्चों का बर्ताव,
आजकल बच्चे करते हैं अपनी मनमानी,
नेक कमाई ऊँचे मकान,
मात-पिता का भी थोड़ा रखें ध्यान,
सब-कुछ लूटा देते हैं बच्चों पर,
संसार में हैं ये ऐसे धनवान,
सबके अपने -अपने शौक यहाँ,
अपनी -अपनी मजबूरी है,
मात-पिता संग थोड़ा वक्त गुजारे,
ये भी काम ज़रूरी है,
परवाह करें देखभाल करें,
मात-पिता के आगे बच्चे नतमस्तक चाहिए,
फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) साथ बिताओ हमारे,
ये वादा तुम्हारा हमें सख्त चाहिए,
मात-पिता नहीं चाहते कोई महल अटारे,
बस बच्चों का थोड़ा वक्त चाहिए,
* * * * *
बच्चों की प्यारी मुस्कान,
हम में डाल देती है एक न‌ई जान,
सदा हाथ थामकर चलते रहें,
बस इतना सा चाहिए सम्मान,
चलती रहे जीवन गाड़ी,
खुशियों का मेला लगा रहे,
मात-पिता के सम्मान का जज्बा,
हर दिल में ऐसे ही जगा रहे,
मात-पिता को मन में बसा लें,
उनके प्यार की दिल में ज्योत जगा लें,
बच्चों से इतना ही शपथ चाहिए,
फुर्सत के दो पल (fursat ke do pal) साथ बिताओ हमारे,
ये वादा तुम्हारा हमें सख्त चाहिए,
मात-पिता नहीं चाहते कोई महल अटारे,
बस बच्चों का थोड़ा वक्त चाहिए,
* * * * *
creater-राम सैणी
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