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दुनिया के रंग (Duniya ke rang)

दुनिया के रंग (Duniya ke rang) : बलिदानी माँ

दुनिया के रंग (Duniya ke rang)
दुनिया के रंग (Duniya ke rang)

एक आँख से देखा करती थी,

माँ को देखकर सब ताने देते थे,
जब वो चलती थी एक छड़ी के सहारे,
*       *        *        *         *
जब भी आता था चलकर कोई,
घर में मेहमान हमारे,
माँ को बिठाकर एक कमरे में,
दरवाज़े बंद कर देते सारे,
एक आँख नहीं थी माँ की,
वो थोड़ा झूककर भी चलती थी,
मेहमानों के आगे कहीं इज्जत,
कम ना हो जाए हमारी,
इसलिए माँ मेहमानों के जाने के बाद,
घर से बाहर निकलती थी,
रौशनी से जगमगाते घर में,
माँ के लिए थे अंधियारे,
एक आँख से देखा करती थी,
माँ इस दुनिया के रंग (Duniya ke rang) सारे,
माँ को देखकर सब ताने देते थे,
जब वो चलती थी एक छड़ी के सहारे,
*       *        *        *         *
माँ एक आंख से बहुत डरावनी लगती थी,
मुझे और भी शर्म महसूस होती थी,
जब वो छड़ी लेकर चलती थी,
खुद को ऊँचा दिखाने के लिए,
हम इस झूठी दुनिया के आगे,
भला-बुरा कहकर हम माँ को,
एक पल में तोड़ देते थे प्यार के अनमोल धागे,
हम बहुत सुनाते थे माँ को,
वो चूपचाप सहन लिया करती थी,
हम फटा-पुराना जैसे भी देते थे,
माँ चूपचाप पहन लिया करती थी,
हम अनसूना कर देते थे माँ को ,
वो जब भी हमें पुकारे,
एक आँख से देखा करती थी,
माँ को देखकर सब ताने देते थे,
जब वो चलती थी एक छड़ी के सहारे,
*।       *।        *।        *,         *
हर दिन देख- देखकर,
माँ का ये करूप चेहरा,
घरवालों के साथ-साथ अब तो,
हौंसला जवाब दे रहा था मेरा,
अब तो मैंने भी ये सोच लिया था,
कल से वृद्ध-आश्रम में ही होगा,
माँ का हर दिन डेरा,
फिर एक दिन बिन बताए माँ को,
हम अपने साथ लेकर चल दिए,
मैं भूल गया था कैसे माँ ने मुझ पर न्योछावर,
अपने जीवन के कीमती पल किए,
मेरे जीवन को ऐसे चमकाया,
जैसे अम्बर के तारे,
एक आँख से देखा करती थी,
माँ को देखकर सब ताने देते थे,
जब वो चलती थी एक छड़ी के सहारे,
*       *        *        *         *
दुनिया के रंग (Duniya ke rang) :एक और कर्ज

वृद-आश्रम छोड़ माँ को,
हम घर में हंसते -मुसकराते रहने लगे,
देखकर अपना यूं तिरस्कार,
माँ की आंखों से हर रोज आंसू बहाने लगे,
कभी मुड़कर नहीं देखा हम ने एक बार,
कैसे दिन गुजरते होंगे उसके,
वो माँ जो मुझे प्यार करती थी बेशुमार,
माँ तरस रहे हैं कान मेरे,
दो मीठे बोल सूनने को तुम्हारे,
एक आँख से देखा करती थी,
माँ इस दुनिया के रंग (Duniya ke rang) सारे,
माँ को देखकर सब ताने देते थे,
जब वो चलती थी एक छड़ी के सहारे,
*।       *।        *।        *,         *
एक दिन घर आई हमारे,
जो रिश्ते में लगती थी मौसी,
जब माँ के लिए पूछा हम सबसे,
हम सबके चेहरे पर थी खामोशी,
बहुत जोर देकर जब पूछा,
मैंने सूना दिया किस्सा सारा,
कुछ पल खामोशी थी मौसी,
देख रही थी चेहरा हमारा,
सुना रही थी एक एक करके,
मौसी किस्सा सारा,
एक आँख दान में दे दी जिस माँ ने तुम्हें,
साथ में रीड की हड्डी,
उस माँ की वजय से ही,
तुम देख रहे हो दुनिया के रंग न्यारे,
एक आँख से देखा करती थी,
माँ को देखकर सब ताने देते थे,
जब वो चलती थी एक छड़ी के सहारे,
*       *        *        *         *
खेल रहे थे जब तुम बचपन में,
तुम्हारी चली गई थी,
एक आँख और रीड की हड्डी,
बिन सोचे तुम्हे दान में दे दी,
आँख और रीड की हड्डी,
खुद के जीवन में कर लिया अंधेरा,
उसकी कुर्बानी है कितनी बड़ी,
सुनकर ‌मौसी की जुबानी,
मैं शर्मिन्दा था देखकर अपनी नादानी,
मैं दौड़ गया उल्टे पाँव तभी,
माफी मांगी माँ से मैंने,
उसके पाँव मे सर रखकर बार-बार,
मैं कैसे उतार पांऊगा माँ तेरा ये उपकार,
हाथ पकड़ कर मैं ले आया,
माँ को मैं अपने घर -द्वार,
आज से ये सारा जीवन माँ,
मैं करता हूँ तेरे हवाले,
एक आँख से देखा करती थी,
माँ इस दुनिया के रंग (Duniya ke rang) सारे,
माँ को देखकर सब ताने देते थे,
जब वो चलती थी एक छड़ी के सहारे,
*।       *।        *।        *,         *

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