मेरे जीवन के दो पहलू (do pahloo ) हैं,दोनों हैं एक समान,हमसफ़र है मेरा एक मित्र के जैसे,मैंने माँ को माना है भगवान,* * * *माँ के लिए तो क्या बोलूं,जितना बोलूं उतना कम है,उसके बिना ये जीवन है क्या वो है तो हम हैं,माँ का आदर करें हर कोई,वो है हमारी खुशियों का दीया,उपकार किया है तुम ने मुझे जीवन देकर,माँ तुम्हारा शुक्रिया,नींद-चैन सब गंवा दिया,अपने हाथों से छूकर तुम ने,इस पत्थर को पारस बना दिया,मेरे सपनों में रंग भर देती है ,रंग चुराकर आसमान के ,मेरी झोलो में सब सुख डाल दिए ,मैं और क्या माँगूँ उस भगवन से ,मैं उस माँ की वंदना करता हूँ ,जिस माँ ने दिखाया है मुझको ये जहान ,दोनों हैं एक समान,हमसफ़र है मेरा एक मित्र के जैसे,मैंने माँ को माना है भगवान,* * * *किस दिशा में जाना है मुझको,
तुम बनकर रहती हो मेरे जीवन का सारथी,तुम्हारी नजरें टिकी है मेरी रग रग पर,नजरें तुम्हारी हैं सबसे पारखी,दूनिया की इस भीड़ में,माँ है एक ठंडी छाया,मेरे जीवन की डोर है माँ,अपनी महक से माँ ने मुझको भी है महकाया,मेरे सपनों में रंग भरती है,मुझ से बेहिसाब प्यार करतीं हैं,उसके प्यार के आगे छोटा पड़ता है ये आसमान,मेरे जीवन के दो पहलू (do pahloo ) हैं,दोनों हैं एक समान,हमसफ़र है मेरा एक मित्र के जैसे,मैंने माँ को माना है भगवान,* * * *चाँद भी जैसे धरती पर उतरकर आया है,हमारे घर को उसने अपने हाथों से महकाया है,जो सम्मान करें माता-पिता का,मैंने एक ऐसा हमसफ़र पाया है,एक मित्र के जैसे रिश्ता है हमारा,ना बीच हमारे कोई दीवार है,हंसते -गाते गुजर जाता है हर दिन,हमारा एक छोटा सा परिवार है,वो चले मिलाकर मेरे कदम-से-कदम,हर चीज मिल -बांटकर खाती है,अच्छे -बुरे वक्त में मेरे साथ खड़े हरदम,मेरे मात-पिता को रखती है बनाकर वो अपनी जान ,दोनों हैं एक समान,हमसफ़र है मेरा एक मित्र के जैसे,मैंने माँ को माना है भगवान,* * * *दो पहलू (do pahloo ) : प्रेम और समर्थन
मेरे माता-पिता को मुझसे भी ज्यादा,वो हर पल प्यार जतातीं है,मुझे हौंसला मिलता है,उसके हर पल पास होने से,सबके चेहरे उतर जातें हैं,एक उसके उदास होने सेनेक दिल सलोनी सूरत,चेहरे पर रखती है मुस्कान ,हर कोई तारीफ करें उसकी,छोटा-बड़ा हो या कोई हो मेहमान ,मेरे जीवन के दो पहलू (do pahloo ) हैं,दोनों हैं एक समान,हमसफ़र है मेरा एक मित्र के जैसे,मैंने माँ को माना है भगवान,* * * *माँ का हूकम सर आँखों पर,हमसफ़र को भी ना कभी कहना है,मैं कडी हूँ उनके बीच की,एक -दुजे संग हम सबको जुड़कर रहना है,माँ घर की पहचान है,हमसफ़र से घर की शान है,माँ सबको रंग कर रखती है,अपने प्यार के रंग से,हर छोटे-बड़े को हक है बोलने का,सब जीते हैं अपने ढंग से,दोनों हैं हमारे घर की रौनक ,दोनों हैं घर की शान,दोनों हैं एक समान,हमसफ़र है मेरा एक मित्र के जैसे,मैंने माँ को माना है भगवान,* * * *मैं दोनों को बनाकर रखता हूँ,
जैसे अपने दो नयन,उन दोनों की वजह से ही,हमारे घर में छाया है सुख-चैन,पूरे घर की बागडोर हमसफ़र ने,संभाली है अपने हाथों में,जीत लेती है दिल सबका,वो बातों ही बातों में,माँ और हमसफ़र दोनों का,दिल से करता हूँ सम्मान,मेरे जीवन के दो पहलू (do pahloo ) हैं,दोनों हैं एक समान,हमसफ़र है मेरा एक मित्र के जैसे,मैंने माँ को माना है भगवान,* * * *creater -राम सैणीmust read :प्रेम और प्रार्थनाmust read :मात-पिता का प्यार
