बेटियां ( betiyan )

बेटियां ( betiyan ) : कर्ज और मोहब्बत का संगम

पिछले जन्म का जिसका कर्ज है बाकी,
उस मात-पिता को ही बेटियां मिलती हैं,
जागना पड़ता है रात-रात भर,
ऐसे ही नहीं बेटियां ( betiyan ) पलतीं हैं,
*        *         *          *           *
ये वो कलियां हैं जो फूल बनकर,
खुशबू बिखेरे चारों ओर,
घर के आंगन में सुनाई पड़ता है
इनके शुभ कदमों का मनभावन शोर ,
आंगन में गूंजे प्यारी किलकारियां,
कभी रुठे तो कभी मान जाए,
मात-पिता के लिए हरदम तैयार खड़ी,हैं,
धूप आए चाहे छांव आए,
प्यारी लगती है इनके पायल की झनकार,

बेटियां जब चलती हैं
पिछले जन्म का जिसका कर्ज है बाकी,
उस मात-पिता को ही बेटियां मिलती हैं,
जागना पड़ता है रात-रात भर,
ऐसे ही नहीं बेटियां ( betiyan ) पलतीं हैं,                                          
*        *         *          *            *
बेटी के लिए हर फर्ज निभाना,
ये भी है एक कर्ज पुराना,
एक सहेली के जैसा रिश्ता है अपना,
माँ चाहती है उसकी प्यारी बेटी को,
कोई भी गम छू पाए कभी ना,
वो उजाला बनकर रहती है,
मेरे दिल में बसे एक दीये की तरह,
वो खिलती रहे फूलों के जैसे,
फूलों बिखेरे खुशबू जैसे,
वो जिए रंग -बिरंगे फूलों की तरह,
शोर मचाए कभी अपने पीछे दौडाए,
कभी कान पकड़कर मांगे माफी,
पिछले जन्म का जिसका कर्ज है बाकी,
उस मात-पिता को ही बेटियां मिलती हैं,
जागना पड़ता है रात-रात भर,
ऐसे ही नहीं बेटियां ( betiyan ) पलतीं हैं,                                          
*        *         *          *         *
बेटियां पल जाती हैं बिन देखभाल,
कोई करें ना करें चाहे उनका ख्याल,
ये बोलते हैं बेटी नहीं जिस मात-पिता के घर,
बेटियां भी उसी कोख की जायी हैं,
जिस कोख से बेटे हैं जन्म लेते,
बेटियां भी उसी कोख से आई हैं,
जान से ज्यादा करनी पड़ती है रखवाली,
अपने लहू से रंगी है मैंने उसकी एक-एक डाली,
पाला नहीं है कभी उसे बेगाना धन समझकर,
मैं जान छिड़कती हूँ अपनी बेटी पर,
बिन बेटी के सूना-सूना सा लगता है घर,
स्वभाव से हैं मिलनसार,
छू लेती हैं दिल के तार,
मात-पिता के सीने में बेटियां,
धड़कन बनकर धड़कती हैं,
पिछले जन्म का जिसका कर्ज है बाकी,
उस मात-पिता को ही बेटियां मिलती हैं,
जागना पड़ता है रात-रात भर,
ऐसे ही नहीं बेटियां ( betiyan ) पलतीं हैं,
*        *         *          *          *

  बेटियां ( betiyan )  : प्रेम का प्रतीक 

 

बेटियां ( betiyan )
बेटियां ( betiyan )

 

मैं हर परेशानी जान लेती हूँ,
अपनी बेटी का निर्मल मन पडकर,
माँ-बेटी का रिश्ता है अनमोल,
उसके मुख से निकलते हैं मीठे बोल,
बिल्कुल मेरी परछाई लगती है,
गोल-मटोल-सा उसका चेहरा,
आँखों का रंग है नीला गहरा,
जैसे कोई परी आसमान से आई लगती है,
मुझको बांहों में बांहे डालकर,
हर रोज़ गले मिलती है,
पिछले जन्म का जिसका कर्ज है बाकी,
उस मात-पिता को ही बेटियां मिलती हैं,
जागना पड़ता है रात-रात भर,
ऐसे ही नहीं बेटियां ( betiyan ) पलतीं हैं,
*        *         *          *          *
मैं हूँ बेटी हिंदुस्तान की,
परी हूँ इस नीले आसमान की,
मेरे पिता के दिल में घर मेरा,
मेरे पाँव के नीचे फूल बिछाए,
मुझको परी कहकर सीने से लगाए,
उसके आगे झूकता है सर मेरा,
मैं नाजों से पलकर बड़ी हुई हूँ,
धीरे-धीरे चलकर खड़ी हुई हूँ,
दिल एक दम साफ़ है मेरा,
मुझे दिल में बिठाने वाला बाप है मेरा,
नफ़रत, नींदा नहीं पास है मेरे,
मात-पिता ही खास हैं मेरे,
दिल में नहीं है कडवापन,
ना चेहरे पर है चालाकी ,
पिछले जन्म का जिसका कर्ज है बाकी,
उस मात-पिता को ही बेटियां मिलती हैं,
जागना पड़ता है रात-रात भर,
ऐसे ही नहीं बेटियां ( betiyan ) पलतीं हैं,
*        *         *          *           *
मुझे बेटी होने पर अभिमान है
मात-पिता की लाडली भी,
सूरत से भोली-भाली भी,
हाथ जोड़कर करूं मै आदर-सत्कार,
जब घर में आता कोई मेहमान है,
ये घर की हमारे परम्परा है,
सर झुकाकर अभिवादन करना,
घर में हर कोई इस रंग में रंगा है,
बेटी के लिए घर के द्वार खुले हैं,
सब प्यार से मुझको लगाते गले हैं,
हमारे लहू में शामिल नहीं देना दगा है,
जहाँ प्रार्थनाओं में बेटी को मांगा जाता है,
ये कलियां उस घर में कहाँ खिलती हैं,
पिछले जन्म का जिसका कर्ज है बाकी,
उस मात-पिता को ही बेटियां मिलती हैं,
जागना पड़ता है रात-रात भर,
ऐसे ही नहीं बेटियां ( betiyan ) पलतीं हैं,
*        *         *          *          *
creater -राम सैणी
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