वो बेटी का दर्द (beti ka dard ) क्या जाने ,
बेटी नहीं है जिस पिता के घर,
कैसे पलतीं हैं बेटियां पूछो कभी,
बेटियां पल रही हैं जिस पिता के घर,
* * * * * * *
एक बेटी का पिता ही जाने,
कैसे पलतीं हैं बेटियां,
एक पिता का सीना चौड़ा हो जाता है,
जब हाथ पकड़ कर चलती हैं बेटियां,
बेटी को रखता है पिता,
अपनी जान से भी ज्यादा संभालकर,
उसके दिल को मिलता है सकून,
मुस्करा रही है बेटी ये जानकर,
बेटियां भी हर घड़ी दौडती रहतीं हैं,
पिता के आगे -पीछे,
पिता भी हर घड़ी बेटियो को,
अपने प्यार से सींचें,
जब खड़ा हो साथ पिता तो,
फिर बेटियों को कैसा है डर,
वो बेटी का दर्द (beti ka dard ) क्या जाने ,
बेटी नहीं है जिस पिता के घर,
कैसे पलतीं हैं बेटियां पूछो कभी,
बेटियां पल रही हैं जिस पिता के घर,
* * * * * * * *
पिछले जन्म का कर्ज है बाकी,
जिस पिता के सर,
बेटी के दो पाँव पड़े उस पिता के घर,
जहाँ हर दिन धूम मचाती रहती हैं बेटियां,
वो घर जग में सबसे निराला है,
जो पिता बेटियो को बनाकर रखता है,
अपने गले का हार,
सच में वो पिता कितना दिलवाला है,
बेचैन हो जाती है बेटियां एक पल में,
घर में नजर ना आए पिता अगर,
वो बेटी का दर्द (beti ka dard ) क्या जाने ,
बेटी नहीं है जिस पिता के घर,
कैसे पलतीं हैं बेटियां पूछो कभी,
बेटियां पल रही हैं जिस पिता के घर,
* * * * * * * *
बेटियां होती है कोमल मन की,
कभी करती नहीं कोई शिकवा,
बेटी है हर घर में सबसे खास,
वो बेटी की कीमत क्या जाने,
बेटी नहीं जिस पिता के पास,
बेटी की चंचल बातें,
कितनी खास होती है उसके बचपन की यादें
इन सब कीमती पलों का आनंद,
फिर वो कैसे ले पाएगा,
पीठ पर चढ़कर करें सवारी,
बातें करें वो प्यारी-प्यारी,
दिनभर की थकान हो जाती है दूर,
बेटी देख ले अगर मुस्कराकर,
वो बेटी का दर्द (beti ka dard ) क्या जाने ,
बेटी नहीं है जिस पिता के घर,
कैसे पलतीं हैं बेटियां पूछो कभी,
बेटियां पल रही हैं जिस पिता के घर,
* * * * * * *बेटी का दर्द (beti ka dard ) : पिता की जुबानी
इन सब कीमती पलों का आनंद,
फिर वो कैसे ले पाएगा,
बेटी के दर्द से वो अन्जान,
मुफ्त में बांटे हर पिता को ज्ञान,
बेटी संग सच्ची प्रीत कहाँ,
बेटी को पराया मानने की रीत यहाँ,
बेटी है धड़कनों में बसी,
फिर क्यों ये बेटी संग दूरी है,
एक बेटी को समझने के लिए,
घर में एक बेटी का होना जरूरी है,
हर तीज-त्योहार पर
सुनसान-सा रहता है उस पिता का घर,
वो बेटी का दर्द (beti ka dard ) क्या जाने ,
बेटी नहीं है जिस पिता के घर,
कैसे पलतीं हैं बेटियां पूछो कभी,
बेटियां पल रही हैं जिस पिता के घर,
* * * * * * * *
एक बेटी का पिता कहलाना आसान नहीं होता,
उस पिता के लिए बेटी से बढ़कर,
कोई और सम्मान नहीं होता,
सब -कुछ सह जाती हैं बेटियां,
कंई बार चाहकर भी,
कुछ बोल नहीं पाती हैं बेटियां,
हंसते -हंसते उठा लेता है पिता,
बेटियों के नाज-नखरे,
वो बाज के जैसे रखता है निगाहें बेटियो पर,
जब भांप लेता है वो अन्जान खतरे,
एक पिता खुश होता है,
बेटियों की परेशानी अपने सर लेकर,
वो बेटी का दर्द (beti ka dard ) क्या जाने ,
बेटी नहीं है जिस पिता के घर,
कैसे पलतीं हैं बेटियां पूछो कभी,
बेटियां पल रही हैं जिस पिता के घर, ,
* * * * * * * *उसकी परेशानियां भी बड़ी होने लगती हैं,
ज्यों-ज्यों बेटी बड़ी होती है,
सबकी निगाहों को पड़ता है परखना,
जब बेटी साथ खड़ी होती है,
काँच के जैसे होता है एक बेटी का जीवन,
माँ गंगा के जैसे पवित्र होता है,
एक बेटी का कोमल मन,
वो छोटी-छोटी बात को दिल से लगा लेती है,
जिस घर में भी पड़ते हैं बेटियो के शुभ कदम,
बेटियां उस घर को स्वर्ग बना देती हैं,
एक डर-सा लगा रहता है,
जिस घर जाएगी बेटी दुल्हन बनकर,
राम जाने कैसा होगा वो बेगाना घर,वो बेटी का दर्द (beti ka dard ) क्या जाने ,
बेटी नहीं है जिस पिता के घर,
कैसे पलतीं हैं बेटियां पूछो कभी,
बेटियां पल रही हैं जिस पिता के घर,
* * * * * * * *creater-राम सैणी
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