bete hone ka huq

बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) : एक सहारा

 

जब हम बढ़ने ल‌गें बुढ़ापे की ओर,
हमारी नजर भी जब हो जाए कमजोर,
तुम हाथ हमारा थामकर चला करना,
कभी बैठना फुर्सत के दो पल निकालकर,
तुम अपना बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) अदा करना,
* * * *
बुढ़ापे में बचपन फिर से लौट आता है,
बच्चों की तरह जीना फिर से लौट आता है,
हमारी कुछ बातों को अनसुना कर देना,
कुछ को हवा में उठा देना,
क्योंकि ब‌च्चों की बातों का बुरा नहीं मानते हैं,
जब भी अपना मुंह खोलें,
अगर हम ज्यादा बोलें,
हंसकर टाल दिया करो,
खाने के लिए समय से पूछना,
जब भी हम दोनो में से कोई एक रूठे ना,
तुम हंसकर मना लिया करो,
मात-पिता के जैसा हमदर्द,
दुसरा कोई नहीं होता है,
चाहे कोई भी हो दौर,
जब हम बढ़ने ल‌गें बुढ़ापे की ओर,
हमारी नजर भी जब हो जाए कमजोर,
तुम हाथ हमारा थामकर चला करना,
कभी बैठना फुर्सत के दो पल निकालकर,
तुम अपना बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) अदा करना,
* * * * *
हमारी कुछ बातों को अनसुना कर देना,
कुछ को हवा में उठा देना,
क्योंकि ब‌च्चों की बातों का बुरा नहीं मानते हैं,
हम दोनों को सुबह-शाम आंगन में घूमाना,
एक बेटे होने का फर्ज निभाना,
जब तक चलती रहे हमारी सांसों की डोर,
जब भी बच्चों की तरह,
कुछ खाने का हमारा मन करे दिला देना,
याद रहे हमारा मन हर पल प्रसन्न रहें,
जब तक चलती रहे हमारी सांसों की डोर,
जब हम बढ़ने ल‌गें बुढ़ापे की ओर,
हमारी नजर भी जब हो जाए कमजोर,
तुम हाथ हमारा थामकर चला करना,
कभी बैठना फुर्सत के दो पल निकालकर,
तुम अपना बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) अदा करना,
* * * * *
तुम्हारी माँ को मीठा पसंद है,
उसे रूक-रूक कर खाना पसंद है,
अपनी माँ के दिल का हाल,
बातों-बातों में पूछ लेना
तुम सदा करना अपने मन की,
फ़िक्र मत करना इस दुनिया के चलन की,
लेकिन कभी-कभी उसकी राय भी ले लेना,
वो कोमल दिल की हैं,
उस पर ना दिखाना कभी अपने गुस्से का जोर,
जब हम बढ़ने ल‌गें बुढ़ापे की ओर,
हमारी नजर भी जब हो जाए कमजोर,
तुम हाथ हमारा थामकर चला करना,
कभी बैठना फुर्सत के दो पल निकालकर,
तुम अपना बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) अदा करना,
* * * * *

बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) : बुढ़ापे का साथी

 

 

bete hone ka huq
bete hone ka huq

छूते रहना अपनी माँ के हाथों को,
अपने कोमल हाथों से,
तुम उसकी हर बात का जवाब देना,
झूकाकर अपनी आँखों से,
मुझे अपनी फिक्र नहीं है,
कभी ठेस ना पहुंचे तुम्हारी माँ के दिल को,
तुम्हें हंसकर पार करना है हर मुश्किल को,
वो चेहरा तुम्हारा देखकर
खुशी से झूम उठती है,
जब भी आंगन में तुम्हारे पैरों से धूल उड़ती है,
वो फूलों के जैसे खिल उठती है,
सुनकर तुम्हारे कदमों का शोर,
जब हम बढ़ने ल‌गे बुढ़ापे की ओर,
हमारी नजर भी जब हो जाए कमजोर,
तुम हाथ हमारा थामकर चला करना,
कभी बैठना फुर्सत के दो पल निकालकर,
तुम अपना बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) अदा करना,
* * * * *
याद है पापा,मुझे बेटे का फर्ज निभाना है,
माँ के दूध का और आपके प्यार का,
मुझको कर्ज चुकाना है,
मैंने आपसे ही सीखा है रिश्तों को निभाना,
अपने प्यार से रिश्तों को चमकाना,
मुझे एक अच्छा बेटा बनकर दिखाना है,
आपने दिया है मुझको जो संस्कारों का पिटारा,
मैं एक-एक संस्कार को दिल से निभाऊंगा,
अपनी मेहनत के उजाले से दूर किया है
आपने पापा,परिवार का अंधियारा,
मुझे आपके प्यार की कसम ,
आप दोनों का ख्याल रखूंगा हरदम,
यूं ही क़ायम रहेगी सदा पापा,
हमारे बीच प्यार की डोर,
जब हम बढ़ने ल‌गें बुढ़ापे की ओर,
हमारी नजर भी जब हो जाए कमजोर,
तुम हाथ हमारा थामकर चला करना,
कभी बैठना फुर्सत के दो पल निकालकर,
तुम अपना बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) अदा करना,
* * * * *
मेरी रगों में बहता है जो आपका लहू,
मैं अपने मुख से जो भी कहूं,
उसे पत्थर पर लकीर समझना,
मुझे माँ के दूध की कसम,
मेरी वजह से ना होंगी,
कभी आप दोनों की आँखें नम,
मेरे जीवन को तुम अपनी जागीर समझना,
पापा मैं सपनों में नहीं अपनों में जीता हूँ,
आपका नाम चमकाने के लिए,
भलाई की ओर कदम बढ़ाने के लिए,
में लगाऊंगा एड़ी-चोटी का ज़ोर,
जब हम बढ़ने ल‌गें बुढ़ापे की ओर,
हमारी नजर भी जब हो जाए कमजोर,
तुम हाथ हमारा थामकर चला करना,
कभी बैठना फुर्सत के दो पल निकालकर,
तुम अपना बेटे होने का हक़ ( bete hone ka huq ) अदा करना,
* * * * *
creation -राम सैणी
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