badi maa ka pahra

बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) : सुरक्षा का घेरा

 

पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,
एक-एक अक्षर पड़ लेती है बड़ी माँ,
घर में आने वाले अखबार का,
सच में सबसे खूबसूरत तोहफा है बड़ी माँ,
हमारे लिए इस संसार का,
तेज दिमाग नजर पारखी,
जैसे अर्जुन के रथ का माधव हो सारथी,
मेरी बड़ी माँ ईश्वर की सबसे अनमोल खोज है,
पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,    
* * * * *
मेरे साथ-साथ रहती है,
बड़ी माँ हमेशा कहती हैं,
मुझमें दिखती है मेरे पापा की छवि,
मुझे प्यार से बुलाती है बड़ी माँ लवि,
वो पैसे को रखती है कपड़ों में छूपाकर,
मुझे रखती है गले से लगाकर,
बड़ी माँ का ख्याल रखना मेरी भी जिम्मेदारी है,
वो किस्से-कहानियों का समंदर है,
वो रौनक रखती घर के अंदर हैं,
बड़ी माँ हमारे घर की चारदीवारी है,
वो अपने खेत-खलिहान में घूमती हर रोज है,
पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,      
* * * * *
वो सुबह-सुबह शैर को जाती है,
नीम की दांतुन करके वापिस आती है,
हम सब सुबह-सुबह उठ जाते,
बड़ी माँ के कदमों की आहट सुनकर,
वो सुबह-सुबह‌ ईश्वर के चरणों में चडाती है,
बगीचे से प्यारे फूल चुनकर,
फूलों के जैसा व्यवहार है बड़ी माँ का,
चेहरा रौबदार है बड़ी माँ का,
घर के आंगन में बैठी रहती है कुर्सी पर,
उसके सामने रखा होता एक लकड़ी का मेज़ है,
पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,    
* * * * *
बड़ी माँ हर फैंसला लेती है झट-पट,
वो चौकन्नी रहतीं हैं हरदम,
क्योंकि अभी तक उठाई है घर की जिम्मेदारी,
बड़ी माँ ने अपने कांधों पर ,
वो अपनी जुबान पर क़ायम रहती है,
वो खुश-मिजाज हरदम रहती है,
एक बड़ा सा चश्मा लगाकर रखती है,
बड़ी माँ अपनी आँखों पर,
हर सुबह पड़ती है आध्यात्मिक किताब का,
बड़ी माँ एक-एक पेज है,
पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,
* * * * *

बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) : अनुशासन की पाठशाला

 

badi maa ka pahra
badi maa ka pahra

पड़ने-लिखने का शौंक रखती है,

चेहरे से थोड़ी सख्त दिखती है,
नर्म दिल मीठा स्वभाव,
मीठा खाने का बहुत ही चाव,
बड़ी माँ घर को जोड़कर रखती है,
वो रहती है घर की मुखिया बनकर,
घर में बेटियों को रखती है गुड़िया बनाकर,
मेरी मंझली दीदी थोड़ी शैतान है,
बड़ी माँ को करती है हर दिन परेशान हैं,
उसके पहरे में हम-सबको मौज ही मौज है,
पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,
* * * * *
बड़ी माँ अपनी जादुई बातों से,
सबका मन मोह लेती है,
घर में आने वाले मेहमानों को,
अपनी बातों के जाल में बांध लेती है,
मेहमान होते हैं देव समान,
‌उनका हो घर में सम्मान,
ये बड़ी माँ ने हमको सिखाया है,
सेवा का भाव हो मन में,
चेहरे का सच दिखता है दर्पण में,
जब भी चेहरा दर्पण के सामने आया है,
बड़ी माँ को चुगली-नींदा से एकदम परहेज है,
पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,
* * * * *
बड़ी माँ के पाँव को छूकर,
आंगन की मिट्टी भी मुस्काए,
बड़ी माँ के हाथों को छूकर,
मस्त ठंडी पवन भी लहराए,
उसको लगाव है ताजे पकवान से,
वो नफ़रत करती है झूठी जुबान से,
हाथ में छड़ी,चेहरा जैसे दीपों की लडी,
बड़ी माँ की निगाहें सबसे तेज हैं,
पुराने जमाने की पढ़ी-लिखी है,
जुबां की थोड़ी-सी तीखी हैं,
मैले कपड़ों से परहेज़ है,
बड़ी माँ का पहरा ( badi maa ka pahra ) फूलों की सेज है,
* * * * *
राम सैणी
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