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बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan )

बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) : हम-सब की जान

 

छोटे से हमारे गाँव में,
पीपल की घनी छाँव में,
मेरी बड़ी माँ बैठी मिलती है,
हम उसको अपनी जान बनाकर रखतें हैं,
हर पल बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) रखते हैं,
बच्चे डर कर छुप जाते हैं,
जब भी बड़ी माँ छड़ी लेकर चलती है,
*        *      *      *       *
बड़ी माँ की निगाहें बहुत तेज हैं,
वो घूमती हर रोज है बहुत ख्याल रखती है,
अपने खेत-खलिहानों का,
वो हंस-हंसकर मिलती है,
बड़ी माँ दिल से स्वागत करती है,
घर में आने वाले मेहमानों का,
बड़ी माँ फूलों के जैसे हरी-भरी रहती है,
वो सबके मुख पर खरी-खरी कहती हैं,
वो डरती नहीं किसी के बाप से,
वो बोले सोच-विचार कर,
मुझको हर त्योंहार पर,
चमकते सिक्के देती है बड़े चाव से,
जैसे फूल खिलते हैं भंवरों को देखकर,
मुझे देखकर बड़ी माँ ऐसे ही खिलती है,
छोटे से हमारे गाँव में,
पीपल की घनी छाँव में,
मेरी बड़ी माँ बैठी मिलती है,
हम उसको अपनी जान बनाकर रखतें हैं,
हर पल बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) रखते हैं,
बच्चे डर कर छुप जाते हैं,
जब भी बड़ी माँ छड़ी लेकर चलती है,
*       *       *       *       *
निगाहें चारों ओर कड़ी रखती है,
वो चारपाई के पास एक छड़ी रखती है,
अपनी ही मस्ती में रहती हैं झूमकर,
सारा दिन घूम-घूमकर,
बड़ी माँ करती है निगरानी,
हमारे सर पर बड़ी माँ का साया है,
ऐसे लगता है जैसे उस ईश्वर की माया है,
उसके मुख से झड़ते हैं फूल,
जब भी उसकी जुबान हिलती है,
छोटे से हमारे गाँव में,
पीपल की घनी छाँव में,
बड़ी माँ बैठी मिलती है,
हम उसको अपनी जान बनाकर रखतें हैं,
हर पल बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) रखते हैं,
बच्चे डर कर छुप जाते हैं,
जब भी बड़ी माँ छड़ी लेकर चलती है,
*       *       *       *       *
बड़ी माँ का पहरा है घर में,
रेशम से बाल चमकते हैं सर में,
बड़ी माँ अपने रेशमी बालों को,
सप्ताह में एक बार मेंहदी से रंगतीं है,
वो सबसे पहले नहा-धोकर,
फिर मंदिर में आती है जाकर,
सुबह-श्याम बडी माँ मन लगाकर ,
मणकों की माला जपती है,
बड़ी माँ को शोर-शराबा नहीं भाता है,
पर मुझको कभी नहीं रोका है,
मैं बड़ी माँ की हाँ में हाँ मिलाता हूँ,
मैंने कभी छोडा नहीं कोई मौका है,
मेरी बड़ी माँ का मुस्कराता चेहरा है,
वो बड़े साफ दिल की है,
छोटे से हमारे गाँव में,
पीपल की घनी छाँव में,
मेरी बड़ी माँ बैठी मिलती है,
हम उसको अपनी जान बनाकर रखतें हैं,
हर पल बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) रखते हैं,
जब भी बड़ी माँ छड़ी लेकर चलती है,
*       *       *       *       *

बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) : नजरों में सम्मान
बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan )
बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan )

बड़ी माँ खर्राटे लेती हैं जोर-जोर से,
आवाजें आती है चारों ओर से,
जब वो गहरी नींद में सोती है,
बड़ी माँ जब भी मुझे बुलाती है,
मेरे बचपन की बातें सुनाती है,
वो पूरी करे हर रोज चाव से,
मेरी जरूरतें जो छोटी-छोटी हैं,
मेरे माथे पर अपने प्यार की मोहर लगाती हैं,
सुबह -सुबह जब मेरी आँखें खुलती हैं,
छोटे से हमारे गाँव में,
पीपल की घनी छाँव मे,
बड़ी माँ बैठी मिलती है,
हम उसको अपनी जान बनाकर रखतें हैं,
हर पल बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) रखते हैं,
चारपाई के पास एक छड़ी रखती है,
निगाहें चारों ओर कड़ी रखती है,
बच्चे डर कर छुप जाते हैं,
जब भी बड़ी माँ छड़ी लेकर चलती है,
*       *       *        *        *
मुझे किस तरह से चलना है,
अपने पापा के जैसे बनना है,
बड़ी माँ हर पल मुझे समझाती है,
स्वभाव मधुर संस्कारी नजर,
मीठी बोली दिमाग चतुर,
थोड़ा ज्यादा ही जज्बाती है,
बड़ी माँ बोले उसे कला है जोड़कर रखने की,
सबको एक बराबर तोलकर रखने की,
वो मुझ पर जान लुटाता है,
मुझे नंगे पाँव ना चलने दे,
वो मुझे ज्यादा काम ना करने दे,
बचपन से हर काम में हाथ बंटाता था,
मुझे जीना पसंद है खुली हवा में,
ये पीपल का पेड़ है मेरा गवाह ,
अपने काम से काम मैं रखती हूँ,
थोड़ा आराम भी करती हूँ,
तनाव नहीं पालती हूँ बेवजह ,
मैं सुबह-सुबह त्यागती हूँ बिस्तर,
जब चिड़ियां दाना चुगने निकलती हैं,
छोटे से हमारे गाँव में,
पीपल की घनी छाँव में,
बड़ी माँ बैठी मिलती है,
हम उसको अपनी जान बनाकर रखतें हैं,
हर पल बड़ी माँ का ध्यान ( badi maa ka dhyan ) रखते हैं,
चारपाई के पास एक छड़ी रखती है,
निगाहें चारों ओर कड़ी रखती है,
बच्चे डर कर छुप जाते हैं,
जब भी बड़ी माँ छड़ी लेकर चलती है,
*       *        *       *       *
creater- राम सैणी
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