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बचपन की यादें (bachpan ki yaaden )

बचपन की यादें (bachpan ki yaaden ): गवाह माँ की 2 आँखें

 

बचपन की यादें(bachpan ki yaaden ) : एक पुरानी कहानी

 

पालने में माँ ने झूलाया था बचपन में,

वो आज भी रखा है एक कोने में संभालकर,
जो कपड़े माँ ने पहनाए थे पहली बार,
वो आज भी रखें हैं एक थैले में डालकर,
*        *          *        *         *
हर वो चीज जो मैंने छुई है पहली बार,
माँ आज भी करती है उन यादों को प्यार,
जिन खिलोनों को मैं खेलते-खेलते तोड़ देता था,
माँ फिर से एक-एक करके उन्हें जोड देती थी,
हर रोज बनाकर खिलाती थी माँ,
मुझको आटे की चिड़िया,
मेरी जेब में डालकर रखती थी माँ,
मीठे गुढ की बनाकर एक पुड़िया,
ना कोई फिकर ना कोई परेशानी ,
बनकर रहते थे हम माँ के शहजादे ,
ना जाने कहाँ छूट गई हैं वो बचपन की यादें (bachpan ki yaaden )
हर घडी रखता था मै माँ के गले में बांहें डालकर ,
जिस पालने में माँ ने झूलाया था बचपन में,
वो आज भी रखा है एक कोने में संभालकर,
जो कपड़े माँ ने पहनाए थे पहली बार,
वो आज भी रखें हैं एक थैले में डालकर,
*       *        *         *          *
सर्दी के दिनों में जब भी कर देता था,
मैं नाहने से इन्कार ,
माँ झट से पकड़ कर मुझको,
मेरे सर पर डालती थी माँ नर्म पानी की धार,
रगड़-रगड़ कर मेरे बदन को,
माँ कर देती थी लाल,
मैं भागने लगता था जब हाथ छुड़ाकर,
माँ खूब बारिश करती थी थपेड़ों की,
अपने हाथों से पकड़ कर मेरे बाल,,
पकड़ लेती थी जब कभी सर्दी मुझे,
माँ पिलाती थी गर्म पानी को उबालकर,
जिस पालने में माँ ने झूलाया था बचपन में,
वो आज भी रखा है एक कोने में संभालकर,
जो कपड़े माँ ने पहनाए थे पहली बार,
*        *         *         *        *
रंग-बिरंगे चप्पल जब मैंने पाँव में डाले थे पहली बार,
डाल दिए था मेरे गले में माँ ने,
काले दागे का बनाकर हार,
पहली बार जब मैं चलने लगा था,
माँ चलता देखकर मुझको फूली नहीं समा रही थी,
मैं बार-बार गिरता उठता हूँ माँ सबको ये बता रही थी,
मेरे बचपन की यादें प्यारी -प्यारी ,
माँ ने रखी है संभालकर ,
अपने दिल के एक कोने में ,
जिस पालने में माँ ने झूलाया था बचपन में,
वो आज भी रखा है एक कोने में संभालकर,
जो कपड़े माँ ने पहनाए थे पहली बार,
वो आज भी रखें हैं एक थैले में डालकर,
*      *        *        *        *       *
पीछे-पीछे माँ भी चल रही थी मेरी परछाई बनकर,
चलते हुए मुझे देखकर माँ सोच रही थी ,
माँ की नजर से कोई देखे जो मुझको,
उस दिन मैं लग रहा था सबसे हटकर,
माँ देख रही थी बड़े गौर से,
कहीं न‌ए चप्पल से छील ना जाएं मेरे नन्हें पाँव,
मैं चलते-चलते कहीं थक ना जाऊं,
माँ पूरे कर रही थी अपने सारे चाव,
बार बार सहला रही थी मेरे पाँव को,
चप्पल से बाहर निकाल कर,
जिस पालने में माँ ने झूलाया था बचपन में,
वो आज भी रखा है एक कोने में संभालकर,
जो कपड़े माँ ने पहनाए थे पहली बार,
वो आज भी रखें हैं एक थैले में डालकर,
*       *         *        *         *
जिन खिलोनों से खेला हूँ बचपन में,
उन सबको एक कतार में सजाया है,
उनमे यादों के रंग भरकर एक दीवार पर लगाया है,
देखकर उन खिलोनों को,
माँ पुरानी यादों को कर लेती है ताजा,
मुस्कराती रहती है धीरे-धीरे,
देखकर मेरा रंग -बिरंगा बाजा,
मेरा पहली बार स्कूल जाने का किस्सा माँ ने सुनाया है क‌ईं बार,
स्कूल ना जाने की जिद्द करके मुझको सताया है हर बार,
परेशान करता था मैं कितना,
हर रोज बनाकर नया बहाना,
माँ मुझे मना लेती थी सकूल जाने के लिए अपनी बाँहों में उठाकर ,
जिस पालने में माँ ने झूलाया था बचपन में,
वो आज भी रखा है एक कोने में संभालकर,
*       *        *         *         *
भाग जाता था जब मैं छोड़कर खाने की थाली,
माँ मनाकर खिला देती थी मुझको हर रोज खाना,
माँ का यूं प्यार दिखाना मुझको गले से लगाना ,
सच में माँ ही होती है,
सच्चा सारथी हमारे जीवन का,
माँ ही होती है हमारी पालनहार,
अपने हाथों से मेरे मुंह में निवाला डालकर,
जिस पालने में माँ ने झूलाया था बचपन में,
वो आज भी रखा है एक कोने में संभालकर,
जो कपड़े माँ ने पहनाए थे पहली बार,
वो आज भी रखें हैं एक थैले में डालकर,
*      *        *         *       *      *
creater -राम सैणी

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