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ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)

ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas) : जीवन की दिशा

 

मात-पिता को कर किनारे,
मैं खाक छानता रहा अब तक
ऊँचे पर्वत और घने जंगल की,
मुझे क्या मालूम था ,
ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)है,
मेरे घर के अंदर भी,
* * * *
मैं खोजता रहा ईश्वर को,
ऊँचे पर्वत और घने जंगल के अंदर,
मुझे हर जगह मिले ,
खाली बातों के भंवडर ,
मैं चला था शांत करने अपने अंतर्मन को,
मैं भी चाहता था जल्दी से जल्दी,
मुझे ईश्वर के दर्शन हों,
जो जीते थे देखकर मेरी सूरत,
मेरे दिल में नहीं थी उनकी मूरत,
एक‌ अनजान-सी हलचल रहती थी,
मेरे दिल के बाहर भी,
मेरे दिल के अंदर भी,
मात-पिता को कर किनारे,
मैं खाक छानता रहा अब तक
ऊँचे पर्वत और घने जंगल की,
मुझे क्या मालूम था ,
ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)है,
मेरे घर के अंदर भी,
* * * *
एक ही जुनून सवार था,
सुबह-शाम मेरे सर पर,
ईश्वर को मैं जान नहीं पाऊंगा,
अगर रहूँगा सदा घर पर,
मैं दीवाना था ईश्वर के पीछे,
मात-पिता दीवाने थे मेरे पीछे,
मैं उनको नजर‌अंदाज करता हर पल,
मात-पिता को अपनी दोनों आँखें मिचें,
मैं पार करता गया गहरी नदिया,खाई,
मैंने पार किए गहरे समंदर भी,
मात-पिता को कर किनारे,
मैं खाक छानता रहा अब तक
ऊँचे पर्वत और घने जंगल की,
मुझे क्या मालूम था ,
ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)है,
मेरे घर के अंदर भी,
* * * *
ईश्वर का दूजा रुप है मात-पिता,
ये मैंने बहुत देर से जाना है,
मात-पिता में ही बसता है ईश्वर,
ये मैंने अब पहचाना है,
मेरी सफलता की रफ्तार भी,
मेरे सांसों के तार भी,
सब चलते मात-पिता की दुआओं से,
मेरे जीवन की हार-जीत,
मेरे जीवन में खुशियों का संगीत,
सब चलते हैं मात-पिता के ,
प्यार की शीतल हवाओं से,
मात-पिता के आगे तो झूकते हैं,
संत -फकीर,पैगम्बर भी,
मात-पिता को कर किनारे,
मैं खाक छानता रहा अब तक
ऊँचे पर्वत और घने जंगल की,
मुझे क्या मालूम था ,
ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)है,
मेरे घर के अंदर भी,
* * * *

ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas) : माता-पिता का आशीर्वाद

 

अब तक था मैं अन्जान,
मेरे घर बैठे हैं दो मेहमान,
मात-पिता का है इस जीवन पर ऋण,
सब शुन्य के जैसा है,
इस दुनिया में मात-पिता के बिन,
मेरे जीवन के दो रखवाले
मेरे जीवन में दो हिम्मतवाले,
हर पल रहे वो साथ भी ,
मेरे हाथों में रहे उनके हाथ भी,
मात-पिता है ईश्वर के जैसे,
वों दोनों मेरे मंदिर भी,
मात-पिता को कर किनारे,
मैं खाक छानता रहा अब तक
ऊँचे पर्वत और घने जंगल की,
मुझे क्या मालूम था,
ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)है,
मेरे घर के अंदर भी,
* * * *
खुश हो जाते हैं मात-पिता,
अगर देख लें हम प्यार भरी निगाहों से,
मात-पिता पहचान लेते हैं पैरों के निशान,
हम गुजरते हैं जिन राहों से,
एक आवाज सूनकर हमारी,
उनके चेहरे पर छा जाएं खुशी के बादल,
मात-पिता बनाकर रखते हैं,
हमको अपनी आँखों का काजल,
मात-पिता को अगर पूज लिया,
फिर सफलता भी सर झूकाएगी,
फिर चाहे लाख मुश्किलें घेर ले ,
हमको हरा ना पाएंगी,
हर घर में फिर छाएगी रौनक,
हर घर का होगा मंगल भी,
मुस्कान की लहरें रहेगी चेहरे पर हरदम,
मात-पिता को कर किनारे,
मैं खाक छानता रहा अब तक
ऊँचे पर्वत और घने जंगल की,
मुझे क्या मालूम था ,
ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)है,
मेरे घर के अंदर भी,
* * * *
अपना जोश ना होगा कभी-भी कम,,
ये पेड़ है घनी छाँव के,
इस छाँव बिन गुज़ारा नहीं,
ये वो फूल है जो मुरझा गए एक बार,
फिर खिलेंगे ये दोबारा नहीं,
ये दयाक्षकी मूरत है,
प्रीत का समंदर भी,
मात-पिता को कर किनारे,
मैं खाक छानता रहा अब तक
ऊँचे पर्वत और घने जंगल की,
मुझे क्या मालूम था ,
ईश्वर का निवास (ishvar ka nivas)है,
मेरे घर के अंदर भी,
* * * *

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