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संजीवनी बूटी (sanjivini booti)

संजीवनी बूटी (sanjivini booti) : माँ की ममता

अगले महीने आऊंगा मैं,
एक लंबी लेकर छुट्टी माँ,
तुम्हारी जादुई सूरत देखकर यूं लगे,
*      *        *        *         *
हम सरहद पर तैनात खड़े हैं,
बिना थके बिना रूके दिन-रात खड़े हैं,
जन्मदात्री माँ और भारत माँ के,
हमारे जीवन पर एहसान बड़े हैं,
माँ घर से जब तुमने मुझे,
पहली बार रवाना किया था,
भारत माँ की गोद में जब से,
मेरा ठिकाना किया था,
मेरी यादें मेरे सपने,
सब इस मिट्टी से जुड़े हैं,
सरहद की मिट्टी मुस्कराती है सदा,
जब भी हम सीना तानकर,
इस मिट्टी को छूकर मुड़े हैं,
हम दिन की शुरुआत करते हैं ,
माथे से लगाकर ये मिट्टी माँ,
अगले महीने आऊंगा मैं,
एक लंबी लेकर छुट्टी माँ,
तुम्हारी जादुई सूरत देखकर यूं लगे,
जैसे तुम हो मेरी संजीवनी बूटी (sanjivini booti) माँ,
*      *        *        *         *

ये सरहद की मिट्टी भी,

हमको एक माँ के जैसा प्यार जताती है,
कभी -कभी तो माँ तुम्हारी,
बहुत याद सताती है,
यूं लगता है तुम दे रही हो आशिर्वाद जैसे,
जब सर से हमारे उड़ती है ,
इस सरहद की मिट्टी माँ,
अगले महीने आऊंगा मैं,
एक लंबी लेकर छुट्टी माँ,
तुम्हारी जादुई सूरत देखकर यूं लगे,
जैसे तुम हो मेरी संजीवनी बूटी (sanjivini booti) माँ,
*।      *।        *।         *।         *,
मैं चिठ्ठी पड़कर जान लेता हूँ,
हाल-चाल तुम्हारे दिल का माँ,
मैं बहती हवा की सुगंध से पहचान लेता हूँ,
हाल-चाल अपने घर का माँ,
माँ तुम्हारी चिठ्ठी को रखता हूँ,
मैं सदा अपने दिल से लगाकर,
मैंने तुम्हारी सब चिंठियों को रखा है,
अपने बिस्तर के नीचे संभालकर,
घर की याद सताए जब,
ये तुम्हारी चिठ्ठी ही मन बहलाए तब,
कुछ यूं लगता है इन चिठ्ठियों से ,
माँ की ममता जुड़ी है माँ ,
अगले महीने आऊंगा मैं,
एक लंबी लेकर छुट्टी माँ,
तुम्हारी जादुई सूरत देखकर यूं लगे,
*      *        *        *         *
संजीवनी बूटी (sanjivini booti) : एक अमृत अनुभव

संजीवनी बूटी (sanjivini booti)

 

जब यहाँ पड़ती है दिन-रात घनघोर सर्दी,

तब माँ के जैसे गर्माहट देती है,
हमारे सीने पर ये वर्दी,
याद आता है उस वक्त,
माँ आँचल वो तुम्हारा,
जब अपने सीने से लगाकर रखती थी मुझे,
क्या खूब था वो नजारा,
मैं देख लेता हूँ तस्वीर तुम्हारी,
अपने पर्स से निकालकर,
जब दिल में तुम से मिलने की ,
तड़फ उठी है माँ,
अगले महीने आऊंगा मैं,
एक लंबी लेकर छुट्टी माँ,
तुम्हारी जादुई सूरत देखकर यूं लगे,
जैसे तुम हो मेरी संजीवनी बूटी (sanjivini booti) माँ,
*      *        *        *         *
माँ मैं एक-एक दिन गिनता रहता हूँ,
जब घर जाने की तारीख करीब आती है,
जब माँ के हाथ का घर का खाना मिले,
ऐसी तारीख बड़े नशीब से आती है,
एक मिट्टी हमारी सरहद की,
दुजी मिट्टी माँ मेरे खेत-खलिहान की,
एक मिट्टी जो तुम्हारे पाँव को छूकर,
रौनक बनती है माँ इस ऊँचे आसमान की,
जब भी बजता है बिगुल सुबह उठने का,
मुझे वो सूरज का उजाला याद आता है,
जब करता हूँ मैं सुबह का नाश्ता ,
मुझे वो घर का चाय का प्याला याद आता है,
याद आता है वो सर्दी का मौसम ,
जब बैठा करते थे चारोंओर मिलकर ,
बीच में होती थी जलती हुई अंगीठी माँ ,
अगले महीने आऊंगा मैं,
एक लंबी लेकर छुट्टी माँ,
तुम्हारी जादुई सूरत देखकर यूं लगे,
*      *        *        *         *                                                                                                                                                                                                                                            

मैं निकल कल रहा हूँ माँ यहाँ से,   

सरहद की छूकर पावन मिट्टी को,
मैं कब से देख रहा था राह,
कब मिलेगी स्वीकृति मेरी इस छुट्टी को,
मैं सुन रहा हूँ चहचहाते,
परींदों का शोर यहाँ,
मेरे कानों में रस घोल रहे हैं,
गीत गाती काली कोयल और ये जो,
पंख फैलाकर नाच रहे हैं मोर यहाँ,
मैं वहाँ सुख से रह पाता हूँ,
जब तुम भी यहां सुखी हो माँ,
अगले महीने आऊंगा मैं,
एक लंबी लेकर छुट्टी माँ,
तुम्हारी जादुई सूरत देखकर यूं लगे,
जैसे तुम हो मेरी संजीवनी बूटी (sanjivini booti) माँ,
*      *        *        *         *
creater राम सैनी

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