बादलों के पार (badlon ke paar)

बादलों के पार (badlon ke paar) : माँ की याद में

माँ चली गई कहीं बादलों के पार (badlon ke paar)
वो सूना हो गया घर का मंदिर,
सूना हो गया सारा परिवार,
*       *        *         *       *
हमारी आँखें तो बस आँखें होती है,
पर माँ की आंखें होती है दूरबीन के जैसे,
बहन के हाथ की घड़ी दादा जी की छड़ी,
माँ एक पल में ढूंढ कर दे देती थी,
पिता जी का खाना,
काम के लिए समय पर जाना,
सब काम माँ चुटकी बजाकर कर देती थी,
हम सबकी फरमाइश माँ कर देती थी साकार,
माँ को मालूम था कैसे चलाना है परिवार,
वो सूना हो गया घर का मंदिर,
सूना हो गया सारा परिवार,
*       *        *         *       *
पिता जी हर सुबह निकल जाते थे,
हाथ में खाने का डिब्बा और,
कांधों पर परिवार का बोझ लिए,
माँ करती थी हर शाम इंतजार,
पिता जी के आने का,
कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत नहीं,
माँ घूमती रहती थी घर में,
चेहरे पर झूठी मुस्कान हर रोज लिए,
माँ हम सब पर जान छिड़कती थी,
हम सबको ही मानती थी,
अपना सारा संसार,
वो सूना हो गया घर का मंदिर,
सूना हो गया सारा परिवार,
*       *        *         *       *
मैं देखता हूँ जब बहन का उतरा हुआ चेहरा,
उसकी आंखों में तड़फ माँ के लिए,
वो मुख से तो कुछ नहीं बोलती पर,
मैं जानता हूँ वो भी तड़फती है,
माँ की पनाह के लिए,
मुरझा ग‌ई वो फूलों की क्यारियां,
जिन में माँ हर रोज पानी दिया करती थी,
माँ बहुत खुश होती थीं हल करके,
मेरी बहन जब भी माँ को,
छोटी-मोटी परेशानी दिया करती थी,
उस घर में हो गया एकदम सूनापन ,
जिस घर में होती थी कभी,
खुशियों की बोछार,
माँ चली गई कहीं बादलों के पार (badlon ke paar),
वो सूना हो गया घर का मंदिर,
सूना हो गया सारा परिवार,
*       *        *         *       *
बादलों के पार (badlon ke paar) : मेरे जीवन का आधार माँ
माँ बातों ही बातों में जान लेती थी,
हाले दिल हमारा,
यूं लगता है जैसे एक माँ के चले जाने से,
जीवन में फ़ैल गया हो अंधियारा,
वो तस्वीर अधूरी है,
जिसमें माँ की सूरत ना हो,
वो दिल है खाली -खाली,
जिस दिल में बसी माँ की मूरत ना हो,
आज भी घर की चौखट राह देखती है,
शायद माँ आ जाए एक बार,
वो सूना हो गया घर का मंदिर,
सूना हो गया सारा परिवार,
*       *        *         *       *
आज भी याद है मुझे वो मंजर,
जब माँ हर सुबह हिला-हिलाकर उठाती थी,
चुपके से चूमकर मेरा माथा,
मेरी सारी सुस्ती भगाती थी,
माँ के आंचल में सब बराबर,
माँ ही बनाती है मकान को घर,
माँ नहीं जैसे कोई जादू की पुड़िया हो,
ऐसे लगता था जैसे घर में,
कोई चहचहाती चिड़िया हो,
माँ की जादू की जफ्फी,
मुझ में एक नया जोश भर देती थी,
माँ जब गुस्से में होती थी तो,
वो सबको खामोश कर देती थी,
वो एक पल में भूल जाती थी,
छोटी-मोटी तकरार,
माँ चली गई कहीं बादलों के पार (badlon ke paar)
वो सूना हो गया घर का मंदिर,
सूना हो गया सारा परिवार,
*       *        *         *       *
बच्चों का चेहरा देखकर,
माँ की परवरिश का पता चलता है,
सबको पता है की माँ की दुआओं से ही,
कामयाबी का रास्ता खुलता है,
सारे घर की जिम्मेदारी,
एक अकेली जान उठाए,
इसलिए माँ की बराबरी,
इस संसार में कोई नहीं कर पाए,
वो मेरे ख्वाबों में आती है,
आज भी वैसा ही प्यार जताती है,
मुझको यूं लगे जैसे आज भी मेरे पास खडी है,
मेरी सच्ची पालनहार,
माँ चली गई कहीं बादलों के पार (badlon ke paar),
वो सूना हो गया घर का मंदिर,
सूना हो गया सारा परिवार,
*       *        *         *       *
creater -राम सैणी

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