बेटियां बिन बुलाए आ जाती है माँ,
बेटे खा लेते हैं मात-पिता से पहले,
पर बेटियां खिलाकर खाती हैं माँ,
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लोग मांगते हैं लाखों दुआएं,
एक बेटा पाने के लिए,
हजारों में कोई एक होता है,
जो मांगता है दुआएं बेटी को बुलाने के लिए,
मात-पिता को दुखी देखकर,
वो बिन बुलाए आ जाती है,
ससुराल से भी ईश्वर के घर से भी,
वो हर पल करीब रहती है,
मात-पिता के दिल के भी इस घर के भी,
बेटियां विदाई पर सबको रूला जाती है माँ ,
समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) है, प्यार का सरोवर है , दिल का टुकड़ा बना लेती है माँ , बेटे आते हैं बुलाने से, बेटियां बिन बुलाए आ जाती है माँ, बेटे खा लेते हैं मात-पिता से पहले, पर बेटियां खिलाकर खाती हैं माँ,
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बेटियां जहाँ भी जाए अपनी मेहनत का खाएं,
मैं बेटी हूँ लाडली मैं बेटी खुशहाल भी,
मैं कली हूँ मात-पिता के बगिया की,
मैं फूलों की डाल भी,
उस ईश्वर का शुक्रिया,
मुझे ऐसे घर में जन्म मिला,
देख-देख कर मेरी सूरत,
मात-पिता का चेहरा खिला,
उगाए जाते हैं बेटे पर,
बेटियां उग जाती हैं,
बेटियां बिन बुलाए आ जाती है माँ,
बेटे खा लेते हैं मात-पिता से पहले,
पर बेटियां खिलाकर खाती हैं माँ,
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बेटियो की परवरिश कुछ ऐसे ही होती है,
बेटे हैं चिराग घर का तो,
बेटी नयनों की ज्योति हैं,
बेटी को मिले सब अधिकार,
बेटी के सर हैं दो परिवार,
जिस मात-पिता का,
पिछले जन्म का कर्ज है बाकी,
उसके ही घर पड़े बेटी के पाँव,
बेटी है निर्मल झरना,
बेटी है पीपल की छांव,
परिवार में छोटे हों या बड़े ,
बेटियां सब के दिल में घर बना लेती है माँ ,
समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) है, प्यार का सरोवर है , दिल का टुकड़ा बना लेती है माँ , बेटे आते हैं बुलाने से, बेटियां बिन बुलाए आ जाती है माँ, बेटे खा लेते हैं मात-पिता से पहले, पर बेटियां खिलाकर खाती हैं माँ,
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समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) : बेटियों का सम्मान
बेटी ही होती है मात-पिता के दिल के पास,
एक माँ का विश्वास है बेटी,
एक पिता का सम्मान है बेटी
बेटियां जन्म से ही श्यानी होती है,
बेटियां कामयाबी की निशानी होती है,
स्वाभिमान भरा हो कूट-कूटकर,
वो बेटियां हिंदूस्तानी होती है,
रिश्ते निभाने का हूनर सिखा है माँ से,
बेटियां दिल से रिश्ते निभाती हैं माँ,
समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) है, प्यार का सरोवर है , दिल का टुकड़ा बना लेती है माँ ,
बेटे आते हैं बुलाने से,
बेटियां बिन बुलाए आ जाती है माँ,
बेटे खा लेते हैं मात-पिता से पहले,
पर बेटियां खिलाकर खाती हैं माँ,
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अंहकार नहीं मुझे सत्कार चाहिए,
सम्मान से जीना अधिकार है मेरा,
मुझको भी ये अधिकार चाहिए,
बेटी हूँ लड़ सकती हूँ,
अपने अधिकार के लिए खड़ सकती हूँ,
अपनी मेहनत से जीत लेती हूँ सबका दिल ,
बेटी है बरसता बादल,
बेटी के सर है जिम्मेदारी ,
बेटियां दर्द में भी मुस्करा लेती हैं माँ ,
समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) है, प्यार का सरोवर है , दिल का टुकड़ा बना लेती है माँ , बेटे आते हैं बुलाने से, बेटियां बिन बुलाए आ जाती है माँ, बेटे खा लेते हैं मात-पिता से पहले, पर बेटियां खिलाकर खाती हैं माँ,
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माँ के संस्कार बसे हैं,
मैं हूँ माँ की परछाई,
जिस माँ से मिला है जीवन मुझको,
वो मेरी रग-रग में है समाई,
पिता का गुरूर हूँ मैं,
पिता की परी के नाम से मशहूर हूँ मैं,
बिन बहन के सूनी है कलाई,
दोनों के संग ही घर में रौनक है छाई,
वहाँ उदासी के बादल छा जातें हैं,
जहाँ आज भी बेटियां रूलाई जाती है
समाज की धरोहर ( samaj ki dharohar ) है, प्यार का सरोवर है , दिल का टुकड़ा बना लेती है माँ ,
बेटे आते हैं बुलाने से,
बेटियां बिन बुलाए आ जाती है माँ,
बेटे खा लेते हैं मात-पिता से पहले,
पर बेटियां खिलाकर खाती हैं माँ,
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creater -राम सैणी