मैंने माथा रगडा हर चौखट पर,मात-पिता के चरणों को छोड़कर,वो तड़पते रहे पर मैं खुश था,मात-पिता से नाता (maat-pita se nata ) तोड़कर,* * * * *मैंने कहते सुना था बचपन में की,बेटियां ही पराई होती हैं,जो लोग जाते हैं तोड़कर नाता मात-पिता से,उन लोगों की जग-हंसाई होती है,मात-पिता को तड़फाना,एक बार जाकर मुख ना दिखाना,ऐसे वक्त में वो हजार बार जीते-मरते है,उनके प्यार को एक पल में ठुकराना,जब हों जरूरत हो मात-पिता को ना अपनाना,छलकता है समंदर उनकी आँखों से,वो जब भी याद करते हैं,एक झलक मेरी पाने के,वो दिन -रात कोशिश करते थे,मैं क्यों भूल गया उनका अपनापन,सच में वो दिलो-जान से मुझ पर मरते थे,दिल में एक विश्वास मात -पिता के ,मैं आऊंगा एक दिन पास उनके लौटकर ,मैंने माथा रगडा हर चौखट पर,
मात-पिता के चरणों को छोड़कर,वो तड़पते रहे पर मैं खुश था,* * * * *बेगानों के जैसे व्यहवार था मेराबहुत मतलबी प्यार था मेरा,जो मुझे पर सच्चा प्यार लुटाते थे,उनकी जुबान से झड़ते थे सुगंधित फूल,जिन्होंने मेरी राहों के सदा हटाए हैं शूल,जो मेरी सलामती के लिए,उस ईश्वर के आगे सदा सर झुकाते थे,जिन पेड़ों का कोई रखवाला नहीं,सूख जाती है उन पेड़ों की डाली,स्वर्ण यही मिल जाता है उनको,जिन्होंने मात-पिता के चरणों में,दुनिया अपनी बसाली,सबको खिलाया भरपेट मैंने,मात-पिता को छोड़कर,मैंने माथा रगडा हर चौखट पर,मात-पिता के चरणों को छोड़कर,वो तड़पते रहे पर मैं खुश था,मात-पिता से नाता (maat-pita se nata ) तोड़कर,* * * * *मात-पिता से नाता (maat-pita se nata ) : एक बेटे का प्राश्चित
माँ के लिए तो इतना ही बोलूंगा,वो दिल की है एक दम नरम,वो बच्चों की खुशी में ढूंढ लेती है अपनी खुशी,बच्चों की परवरिश ही को माने अपना धर्म,आज भी पूछ रही है जैसे माँ की आँखें,कितना तरसना लिखा है,एक झलक तुम्हारी पाने को,कब से तरस रही है ये बांहें,तुम को गले लगाने को,तड़फती माँ के मन की पीड़ा,उससे ज्यादा और कौन जाने,मेरे मन में था तुफान उठा,वो मेरी रग-रग को पहचाने,मैं बाहर ढूंढ रहा था सुख जीवन का,मात-पिता का दिल दूखाकर,ना खुश थे मात-पिता ना ही मैं खुश था,उन दोनों को भूलाकर,आज तक कौन सुखी हो पाया है ,अपने मात-पिता से नाता तोड़कर ,मैंने माथा रगडा हर चौखट पर,मात-पिता के चरणों को छोड़कर,वो तड़पते रहे पर मैं खुश था,* * * * *मेरे ख्वाबों में मेरे दिल में,माँ हर पल छाई रहती है,मैं तलाशता रहा खुशियां बेगानों में,भूल गया था की खुशियां तो ,माँ के चरणों में ही रहती है,वो पालनहार मैं गुनाहगार,वो नीला आसमान मैं बिलकुल नादान,मैंने बिखेर दिए सब रिश्ते -नाते,माँ रखती थी सब रिश्तों को जोड़कर,मैंने माथा रगडा हर चौखट पर,मात-पिता के चरणों को छोड़कर,वो तड़पते रहे पर मैं खुश था,* * * * * *माँ के बाद पिता का रिश्ता,ये रिश्ता भी है महान,वो अपनी परेशानी भूल कर,मुझको रहने ना दिया कभी परेशान,लाल आँखें गर्म स्वभाव,वो आँखों से बातें करता है,मेरे हर सवाल का जवाब वो जाने,रंग मेरे चेहरे का पहचाने,पता नहीं वो कब सोता कब जागता है,उगते सूरज के जैसे,वो घर में उजाला लेकर आए,उसके आने से ही घर हमारा महका जाए,पिता है एक मसीहा रब का ,जो पूरे परिवार को जोड़कर रखता है ,मैंने माथा रगडा हर चौखट पर,मात-पिता के चरणों को छोड़कर,वो तड़पते रहे पर मैं खुश था,* * * * *पिता है उपहार प्यारा,पिता है जग में सबसे न्यारा,मात-पिता को रूलाकर,कोई भी हंस नहीं पाया है,मात-पिता को भूलाकर,कोई खुश नहीं हो पाया है,हाथ फैलाकर रखिए सदा,ये रंग-बिरंगे मोती हैं,इन्हें दिल में बसाकर रखिए सदा,मात-पिता ही सच्चे हितैषी हैं,छोड़कर अपना अंहकार,कीजिए इन का सत्कार,वो जब भी फैलाएं बांहें अपनी,सीने से लग जाएं इनके दौड़कर,मैंने माथा रगडा हर चौखट पर,मात-पिता के चरणों को छोड़कर,वो तड़पते रहे पर मैं खुश था,* * * * * *creater -राम सैणीmust read : सांसों की डोरी (sanson ki dori )must read : जान हथेली पर रखकर (jaan hatheli par rakhakar )
