दान-दहेज (Daan-Dahej ) भी चाहिए,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * * *हमारे बेटे ने पड-लिखने में,लुटाई है जितनी दौलत,दिन-रात मेहनत कर-करके,बेशुमार पाई है शोहरत,,अब इस नीले आसमान को भी ,एक दिन उसने छूना है,बेटे को बनाया है लंम्बी रेश का घोड़ा,अब उस पर ऊँचा दांव लगाना है,सीख लिए हैं सब दांव -पेंच उसने ,सीख ली है ये दुनियादारी भी ,दान-दहेज (Daan-Dahej ) भी चाहिए,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * * * *
जितनी लुटाई है दौलत हम ने उस पर,वो दौलत वापिस पा नी है,वर्षों बाद ये मौका आया है,हमने भी करनी अपनी मनमानी है,जोड़कर बैठे हैं हम दोनों,पाई-पाई का हिसाब,किसी बाप के दिल की रौनक करेगी,हमारे चमचमाते घर को आबाद,घर की हमारे जिम्मेदारी ,अपने सर ले ले सारी ही ,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * *दान-दहेज थोड़ा भी मिले पर,बहु चाहिए संस्कारी,खाली हाथ तो नहीं भेजेगा,एक बाप अपनी बेटी प्यारी,थोड़े कपड़े कुछ बंद लिफाफे में गहने हों,थोड़ा नगद ईनाम कुछ गहने हाथों में पहने हों,ये विश्वास है मुझको इतना तो लेकर आएगी,हमारी हर उंगली में हो ,चमचमाता रंग पीला,हमारे घर का एक भी कोना रहे ना ढीला,पूरी हो जाएँ इच्छाएं सब ,हमारी सारी की सारी ही,दान-दहेज (Daan-Dahej ) भी चाहिए,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * * * * *
उस ईश्वर का दिया बहुत है,हमें और कुछ नहीं अब चाहिए,बहु भी तो बेटी के समान,मांग लेंगे सर उठाकर,हमको जब भी चाहिए,लालच है एक बुरी बला,लालच एक बिमारी भी,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * * *दान-दहेज (Daan-Dahej ) : दान और दहेज का रंग
रूठे ना कोई सगा-संबंधी,रुठे ना परिवार में कोई,अच्छा घर अच्छा परिवार,मिलता है हजारों में कोई,राज करेगी घर में हमारे,जो भी लड़की बहु बनकर आएगी,बेटी बनाकर रखेंगे उसको,अगर वो बहु बनकर दिखलाएगी,बेटा है हमारा हीरे के जैसे,अगर बहु भी मिल जाएं हीरों के साथ,इतना दान-दहेज हम से कैसे संभलेगा,काबू में नहीं है हमारे जज्बात,संस्कारों से भरी होगी बहु नई-नवेली,एक दिन आकर वो चमकाएंगी,हमारी आसमान को छूती हवेली,लालच से हुमको नफरत है,थोड़ा -बहुत तो चलता है,ज्यादा नहीं थोड़ा सही,ये हर इंसान के अंदर पलता है,हर इंसान के अंदर पाई जाती है ये महामारी भी ,दान-दहेज (Daan-Dahej ) भी चाहिए,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी ,* * * * * *
बिन मांगे अगर मिल जाएगा,फिर दहेज का लालची कौन कहलाएगा,दिल खोलकर देता है,एक बाप अगर अपनी बेटी को,वो आपनी ही बेटी का घर सजायेगा ,एक बहु के बिना लगता है ये घर खाली,अब वो ही करेंगी पूरे घर की रखवाली,हर बहू का फर्ज है सास-ससुर की सेवा,वो करेगी सेवा हमारी भी,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * * *एक बाप के दिल की रौनक हूँ ,मैं सदा मान उसका बढ़ाऊंगी,दो जोड़ी कपड़े होंगे साथ मेरे,मैं जिस घर में भी बहू बनकर जाऊंगी,लालच से है नफरत मुझे आप बहुत,मैं बचपन से हूँ दहेज के खिलाफ बहुत,मां-बाप ने दिए संस्कार मुझे,मेरे पास है विद्या रूपी धन ,इस रूप में जिसको स्वीकार हूँ मैं,उस घर में जानें को तैयार हूँ मैं,जो भूख दिखाए किसी बाप के धन -दौलत की,रौब दिखए अपनी ऊंची शोहरत की,जो भीख लेते हैं एक बेटी के बाप से,वो मुझे रानी बनाकर क्या रख पाएंगे,छोटी-छोटी बातों पर मुझको,फिर वो आँखें दिखाएंगे,बाप ने बनाया है संस्कारी मुझे ,दयावान भी सदाचारी भी ,दान-दहेज (Daan-Dahej ) भी चाहिए,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * * *
दान-दहेज पल दो पल की रौनक है ,एक बाप की बेटी ही पार लगाएगी,नए-नए रंगों से वो ,एक नया संसार बसाएगी,मेरा दहेज मेरे संस्कार,इस रूप में अगर मैं हूँ स्वीकार,नहीं तो मेरा है इनकार,बड़ा घर नहीं मुझे बड़े दिल वाले चाहिएं,जहाँ झुकते हैं सब एक -दुजे की खुशी के लिए,मुझे ऐसे ही खुशियों के उजाले चाहिए,ऐसा घर जो समझता हो ,एक बाप की दिल की पीड़ा,समझें एक बेटी के बाप की लाचारी भी,बहु संस्कारी भी,बिन बोले सब लेकर आएगी,बहु हमारी भी,* * * * *creater -राम सैणीmust read :अनमोल बंधन (anmol bandhan )must read :सूनी कोख (sooni kokh )
