माँ का साया (maa ka saaya ) |
वो तड़पती रही घर के एक कोने में,
माँ को छोड़ कर अकेला,
मैं लगा रहा अपने परिवार की,
खुशियों की माला पिरोने में, जिस माँ को खुश करना था,
उसे छोड़ दिया ईश्वर के हवाले,
उस जन्मदाती को मैं भूल बैठा,
जिस माँ ने अपने मुंह के निवाले, सबसे पहले मेरे मुंह में डाले भूल बैठा मैं उस माँ का प्यार -दुलार, भूल बैठा उसके संस्कारों का कायदा , तस्वीर छू कर माँ की, आंसू बहाने का क्या फायदा, जीते जी अगर निभा लेता , माँ की सेवा करने का वादा, * * * *
माँ का साया (maa ka saaya ) है जिस सर पर , माँ का पहरा है जिस घर पर , वो घर में खुशियों का खजाना , माँ मुझ पर लुटाती गई जान अपनी,
मैं उसको बात-बात पर नीचा दिखाना, तेरे मुख पर नहीं देखा मैंने , कोई शिकवे -गीले के निशान , सब रिश्तों से ऊपर माँ का रिश्ता है महान ,
समझता रहा शान अपनी,
मेरी खुशियों को अपना मानकर,जीती थी माँ,
हर पल गम के आंसू पीती थी माँ,
मैं जीता रहा जीवन एशो-आराम का,
माँ जीती थी जीवन बिल्कुल सादा,
तस्वीर छू कर माँ की,
आंसू बहाने का क्या फायदा,
जीते जी अगर निभा लेता , माँ की सेवा करने का वादा,
माँ की सेवा करने का वादा,
माँ का साया (maa ka saaya ) : एक शीतल छाया
मैं बन जाता तुम्हारे जख्मों का मरहम,