परिवार का पहरेदार (Parivar ka Pahredar ) : एक सच्चा मददगार
नींद आँखों से गायब होती है,
पेट भी होता है खाली कंई बार,
जेब में पैसों से ज्यादा फरमाईसें होती है,
* * * * * *
मैंने देखा है अपने पिता को,
गिनते हुए तारे आसमान के,
पहले समझ नहीं पाते थे परेशानी पिता की,
उस वक्त हम नादान थे,
कभी कोई पूछ लेता था आते-जाते,
हाल-चाल परिवार का
सब ठीक है ये ही जवाब होता था,
उस हमारे पहरेदार का,
हम सब की मदद करने को हर पल रहे तैयार ,
जेब में पैसों से ज्यादा फरमाईसें होती है,
* * * * * *
मुझे नहीं लगता इस जहान में कोई,
पिता से बड़ा होता है,
जब घेर लेती है आकर मुश्किलें एक साथ,
पिता तब भी सीना तानकर अकेला खड़ा होता है ,
पिता भी चाहता है उसके सर की जिम्मेदारी,
कोई थोड़ी तो कम कर दें,
देखकर पिता का निस्वार्थ प्यार,
कंई बार हमारी भी आँखें नम कर दे,
सब को चैन से सुलाने वाला,
खुद जागता है काली रातों में,
कोई जान नहीं पाए भेद पिता के दिल का,
एक-दो मुलाकातों में,
उसकी आँखों में होती हैं लाल लकीरें,
गायब होती है चेहरे की लाली भी कंई बार,
नींद आँखों से गायब होती है,
पेट भी होता है खाली कंई बार,
जेब में पैसों से ज्यादा फरमाईसें होती है,
* * * * * *
इस संसार में मुफ्त में कुछ नहीं मिलता,
पिता के प्यार के सिवा,
पिता उस दीपक के जैसे है,
जो अपनी रौशनी से उजाला करें सब के जीवन में,
खुद अपने नीचे अंधेरा किया,
पिता के प्यार की लौ ,
जिस घर में जलती रहेगी ,
उस घर के हर इंसान के चेहरे पर,
खुशियों की कलियां खिलती रहेंगी,
पिता बनकर रहेगा जब तक ढाल हमारी,
तब तक बदली रहेगी चाल हमारी,
पिता निभाता है हर दिन नए -नए किरदार ,
नींद आँखों से गायब होती है,
पेट भी होता है खाली कंई बार,
जेब में पैसों से ज्यादा फरमाईसें होती है,
किस मिट्टी से बना है ये परिवार का पहरेदार(Parivar ka Pahredar ),
* * * * *
मैंने मांग कर देख लिया एक दिन,
पिता से चमकता सितारा,
ईश्वर ही जाने पिता कहाँ से ले आया,
ये चमकते सितारों से भरा आसमान सारा ,
लोग यूं ही नहीं कहते,
जिस इंसान के साथ खड़ा होता है पिता,
वो ही एक दिन संसार की सब ऊंचाईया को है छूता ,
अपने ग़म छूपाकर पिता हंसता है सब के सामने,
पर उसके चेहरे की हंसी भी ,
होती है जाली कंई बार,
नींद आँखों से गायब होती है,
पेट भी होता है खाली कंई बार,
जेब में पैसों से ज्यादा फरमाईसें होती है,
किस मिट्टी से बना है ये परिवार का पहरेदार(Parivar ka Pahredar ),
* * * * *
कौन कहता है की पिता को,
महसूस नहीं होता अपना दर्द कभी,
बड़े से बड़ा दर्द भूल जाता है पिता,
पर भूलता नहीं अपना फर्ज कभी,
पिता है समंदर का बहता पानी,
जो हम सब की प्यास बुझाए,
वो इस कदर मस्त रहता है,
परिवार की खुशियों के लिए,
कंई बार पिता अपने आप को भी भूल जाएं,
मेरा है सरताज पिता,
नहीं किसी का मोहताज पिता,
* * * *
अपनी मेहनत से उगाए पिता ने,
घर में हमारे खुशियों के फूल,
हर रोज मैं अपने सर से वारता हूँ ,
पिता के चरणों कि धूल,
मैं कितना किस्मत वाला हूँ
आज भी पिता का हाथ पकड़ कर चलता हूँ,
छू लेता हूँ मैं उसके चरणों की मिट्टी,
जब भी घर से निकलता हूँ,
मैं भी हाथ बंटाता हूँ जब-जब पिता का,
हंसी झलकने लगती है चेहरे पर उसके,
मैंने चूपके से नजर डाली है कंई बार,
नींद आँखों से गायब होती है,
पेट भी होता है खाली कंई बार,
जेब में पैसों से ज्यादा फरमाईसें होती है,
किस मिट्टी से बना है ये परिवार का पहरेदार(Parivar ka Pahredar ),