खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर,
जगमग करते दीपों का उजाला,
जब तक घर की जिम्मेदारी उठा रहा है,
पिता बनकर घर का रखवाला,
जिंदगी जीना आसान लगता है,
पता नहीं क्यों पिता भगवान लगता है,
पिता के मजबूत कांधों पर,
जब तक घर की जिम्मेदारी है,
पिता के नाम से हर दिन गुजर रहा है आराम से,
मुझे तो वैसे भी समझ नहीं आती,
ये जो दूनियादारी है,
पिता हैं राजा मैं राजकुमार,
वो ही मेरा सारा संसार,
मैं जो सोचता हूँ वो ही होता है,
मै हूँ किस्मत का धनी,
पिता का हाथ है मेरे सर पर,
खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है
* * * *
चाँद तारों पर बोलना अच्छा लगता है,
सबको एक ही नज़र से तोलना अच्छा लगता है,
पिता का साथ होना मेरी शक्ति है,
बेखौफ होकर सोना मुझे रास आता है,
जब तक उसके हाथों में है घर की बागडोर,
मुझे पंख लगाकर उडना बहुत भाता है,
हर दिन मस्ती हर घड़ी शैतानी,
एक दिन गुजर जाता है पिता की मेहरबानी,
मैं हर पर बोझ नहीं रखता,
जब तक साथ है मुझे दिल से चाहने वाला,
खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर,
जिंदगी लगती है हर घड़ी,
जगमग करते दीपों का उजाला,
* * * * *
सपने देखता हूँ नए-नए,
मेरे सपनों का रंग है आसमानी,
जीवन में मेहनत का होना,
मेहनत ही है असली सोना,
पिता हर पल मुझे समझाता है,
आलस है एक बुरा विकार,
आलस का त्याग सुखी परिवार,
ये सब मुझे समझ नहीं आता है,
मेरे पैर जमीं पर नहीं लगते,
मैं हूँ परींदा आसमां में उड़ने वाला,
मुझे ऊंचाईयों से नहीं लगता है डर ,
खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर,
जब तक घर की जिम्मेदारी उठा रहा है,
पिता बनकर घर का रखवाला,
* * * * *
मेरी ज़िन्दगी की नांव का मांझी,
वो मेरी ज़िन्दगी का पहरेदार है,
मेरी झोली में है दौलत-शोहरत,
जब तक साथ मेरा पालनहार है,
पिता के जैसा बनने में,
अभी लगेगा थोडा वक्त,
एक दिन रंग दिखाएगा,
मेरी रगों में दौडता उनका रक्त,
मुझे भी बनना होगा एक दिन,
पिता के जैसे दिन-रात दौड़ने वाला,
खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर,
जिंदगी लगती है हर घड़ी,
जगमग करते दीपों का उजाला,
जब तक घर की जिम्मेदारी उठा रहा है,
पिता बनकर घर का रखवाला,
* * * * *
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर : घर का उजाला

पिता के साये में रहते हुए,
सच में स्वर्ग-सा घर लगता है,
बिन पिता के हम कैसे जिएंगे,
ये सोचकर भी डर लगता है,
पिता मेरी परेशानियों को,
अभी तो अपने सर ले लेता है,
जिंदगी के सुख-चैन मेरे नाम,
सब कांटों को अपने नाम कर लेता है,
चारों तरफ से आते हैं ठंडी हवा के झोंके,
मन जो चाहे वो खाना-पीना,
पिता मुझे रोके ना टोके,
सच कहते हैं लोग शयाने,
पिता के रहते लगता है,
जैसे सारा संसार है अपना ही घर ,
खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर,
* * * *
कितना गुणवान है सबसे प्यारा इंसान हैं,
गम्भीर आँखें पर चेहरे पर मुस्कान है,
बडा दिल है चाहे कैसी भी मुश्किल है,
हमारी जिंदगी को बनाकर रखता आसान है,
हौंसलें आसमां के जैसे,
फैंसले पत्थर के जैसे,
हमारे घर में उनकी सरकार है,
वो सोता है खुली आँखों से,
सबका मन जीत लेता है अपनी मोहिनी बातों से,
पिता के रहते हमारे घर में,
हमेशा छाई रहती बहार है,
हमारे लिए अपना दिल खोलकर रख देता है,
सच में वो भोली सुरत वाला,
जिंदगी लगती है हर घड़ी,
जगमग करते दीपों का उजाला,
खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर,
* * * * *
लोहे के जैसे हैं उनके मजबूत कांधे,
हम सबको मोतियों के जैसे,
पिता एक डोर में बांधें,
बारह महीने हर सुबह-शाम,
वो लेता है ईश्वर का नाम,
ईश्वर पर आस्था गहरी है,
हर किसी को खुश रखना,
भविष्य के लिए बचाकर कुछ रखना,
सच में वो हमारा प्रहरी है,
पिता का ही है बोलबाला है,
हमारे अंदर और बाहर,
खुद ही झुक जाता है उनके आगे मेरा सर,
पिता की वजह से (pita ki vajah se ) मुस्कराता है घर,
* * * * *
creation -राम सैणी
read more sweet poetry
click here –>जिनके घर बेटियां हैं ( jinke ghar betiyan hain )
click here –> बेगानी बेटी ( begani beti ) : अपना दर्द