roti ka role

रोटी का रोल ( roti ka role ) और माँ की गोद : दिल भर दे

 

फिर से दे मुझे माँ रोटी का रोल ( roti ka role ) बनाकर,
मिट्टी के चुल्हे पर गोल-गोल बनाकर,
जिस रोटी में तेरा प्यार मिला हो,
वो यादें आज भी बसा रखी है,
मैंने अपने दिल में अनमोल बनाकर,
* * * * *
मुझे कितनी खुशी मिलती थी माँ,
रोटी खाकर तुम्हारी झूठी भी,
मेरे चेहरे पर बाहर छा जाती थी,
तुम्हारे हाथ से बनी रोटी खाकर रूखी-सूखी भी,
माँ पेट की भूख-प्यास मिट जाती थी,
तुम्हारे हाथों से पीकर ठंडा जल ,
वो कच्ची मिट्टी का घड़ा,
जिस पर होता था लाल मिट्टी का घोल चढ़ा,
आज भी याद आता है हर पल,
भूख होती थी दो रोटी की ,
माँ चार रोटी खिला देती थी,
मेरी आँखोँ में गहरी नींद देखकर,
मुझे अपने सीने पर सुला देती थी,
मेरे चेहरे पर मुस्कान के बादल छा जाते थे,
माँ जब रखती थी मुझे अपनी बांहों में उठाकर,
फिर से दे मुझे माँ रोटी का रोल ( roti ka role ) बनाकर,         
मिट्टी के चुल्हे पर गोल-गोल बनाकर,
जिस रोटी में तेरा प्यार मिला हो,
वो यादें आज भी बसा रखी है,
मैंने अपने दिल में अनमोल बनाकर,
* * * *
माँ तुम्हारे हाथों के जैसी,
शायद ही किसी दूसरे हाथों में ये कला हो,
काश मुझे आज भी मिल जाए ,
वो रोटी जिस पर तुम्हारा हाथ लगा हो,
पेट की भूख जब शांत हो,
मेरे चारों ओर एकांत हो,
मेरे पैर थिरकने लगते हैं ,
मैं जब बजाता हूँ जोर-जोर से,
लकड़ी के मेज का ढोल बनाकर,
फिर से दे मुझे माँ रोटी का रोल ( roti ka role ) बनाकर,       
मिट्टी के चुल्हे पर गोल-गोल बनाकर,
जिस रोटी में तेरा प्यार मिला हो,
वो यादें आज भी बसा रखी है,
मैंने अपने दिल में अनमोल बनाकर,
* * * * *
मैं जब देखता हूँ आइने में अपना मुख,
वो आईना मुझे बार-बार पूछता है,
आज क्यों दिखाई दे रहे हो इतने खुश,
फिर मैं छेड़ बैठता हूँ अपने दिल के तार,
काश माँ के प्यारे हाथों की बनाई,
रोटी मिल फिर से मिल जाए एक बार,
माँ के हाथों से बनाई रोटी को देखकर,
मेरे पेट की भूख भाग जाती है,
मैं खुद ही मुस्कराने लगता हूँ,
माँ को गहरी नींद में सोती देखकर,
मैं इस रोटी को रखूंगा अपने सीने से लगाकर,
उस रब का शुक्रिया करुंगा दो हाथ उठाकर,
कुछ फल के लिए चिंता-परेशानियों से,
मुझे सुकून मिलता है,
जो हर पल मेरे चारों ओर रखती हैं शोर मचाकर,
फिर से दे मुझे माँ रोटी का रोल ( roti ka role ) बनाकर,
मिट्टी के चुल्हे पर गोल-गोल बनाकर,
जिस रोटी में तेरा प्यार मिला हो,
वो यादें आज भी बसा रखी है,
मैंने अपने दिल में अनमोल बनाकर,
* * * *

रोटी का रोल ( roti ka role ) और माँ की गोद : माँ का आशीर्वाद

 

roti ka role
roti ka role

ये माँ के हाथों की रोटी की ही करामात है ,
आज कामयाबी जो मेरे साथ है,
वो मिट्टी के चुल्हे की खुशबू,
तेरी हाथ की बनाई रोटियों में दिखतीं है,
माँ मुझे बता दो एक बार,
तेरे हाथ की बनाई खुशबूदार रोटियां,
बाजार के किसी कोने में मिलती हैं,
माँ का हर बार ये ही कहना,
हम सबको हमेशा रहना है,
एक-दुसरे से मेल-जोल बढ़ाकर,
फिर से दे मुझे माँ रोटी का रोल ( roti ka role ) बनाकर,
मिट्टी के चुल्हे पर गोल-गोल बनाकर,
भूख मिट जाती है पर मन नहीं भरता माँ,
जिस रोटी में तेरा प्यार मिला हो,
वो यादें आज भी बसा रखी है,
मैंने अपने दिल में अनमोल बनाकर,
* * * * *
हर दिन माँ के हाथ की रोटी खाना,
ये सब किस्मत की बात है,
माँ का प्यारा चेहरा देखकर,
मिट्टी के चुल्हे पर बनी रोटी खाना,
ये सब रब की एक प्यारी सौगात है,
ढोल सुरीले बजने लगते हैं,
बोल सुरीले लगने लगते हैं,
ये भोला-भाला चेहरा देखकर,
वो रोटी,रोटी है कैसी,
जिसमें माँ तुम्हारा प्यार नहीं,
वो बेटा,बेटा है कैसा,
जो माँ के प्रति वफादार नहीं,
चमकते हीरे की तरह रखतीं है,
माँ हमें अनमोल बनाकर,
फिर से दे मुझे माँ रोटी का रोल ( roti ka role ) बनाकर,
मिट्टी के चुल्हे पर गोल-गोल बनाकर,
जिस रोटी में तेरा प्यार मिला हो,
वो यादें आज भी बसा रखी है,
मैंने अपने दिल में अनमोल बनाकर,
* * * * *
वो हर पल उडी-उडी रहती है,
मेरे चेहरे पर खुशियों की बहार देखकर,
मेरे दिल में लाखों फूल खिल उठते हैं,
जब मैं देखता हूँ माँ का चेहरा चमकता,
सूरज जैसी चमक के साथ,
मुझे आज भी छप्पन भोग से अच्छी लगती है,
माँ के हाथों की रोटी हरे नमक के साथ,
मैं टकटकी लगाकर देखता रहता हूँ,
जब तुम बोलती हो चेहरे पर,
मीठे-मीठे बोल सजाकर,
फिर से दे मुझे माँ रोटी का रोल ( roti ka role ) बनाकर,
मिट्टी के चुल्हे पर गोल-गोल बनाकर,
भूख मिट जाती है पर मन नहीं भरता माँ,
जिस रोटी में तेरा प्यार मिला हो,
वो यादें आज भी बसा रखी है,
मैंने अपने दिल में अनमोल बनाकर,
* * * * *
creation -राम सैणी
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