आसमान धरती पर आ जाए,
चाहे रात में सूरज उग जाए,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
पानी के झरनों की बंद हो जाए कल-कल भी,
चाहे खारा हो जाए मीठा जल भी,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
* * * *
वो झुठ-मुठ भी रुठ जाए तो,
हमारी सांसें ही रूक जाती है,
हमारा चेहरे पर लाली छा जाती है,
माँ आंगन में घूमती हुई जब भी दिख जाए,
उसका रूठना है दूध के उबाल जैसे,
उसका बात ना करना है कोरा ख्याल जैसे,
ये भी माँ का प्यार जताने का एक तरीका है,
माँ के प्यार के आगे जमाने का हर सुख फीका है
वो जिस दिन खेल खेलती है रुठने-मनाने का,
उस दिन माँ खुब प्यार लुटाती है,
अपने दिल में छिपे प्यार के खजाने का,
माँ सिर्फ माँ ही नहीं होती है,
वो गुरु बनकर हमें जीवन का पाठ पढ़ाए,
माँ सिर्फ माँ ही नहीं होती है,
वो कभी बच्चा बनकर हमारा मन बहलाए,
फूलों का महकना रूक जाए,
चाहे चिड़ियों का चहकना रूक जाए,
आसमान धरती पर आ जाए,
चाहे रात में सूरज उग जाए,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
पानी के झरनों की बंद हो जाए कल-कल भी,
चाहे खारा हो जाए मीठा जल भी,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
* * * *
बच्चों में माँ की जान अटकी रहती है,
माँ चैन की सांस नहीं लेती है,
जब तक उसके बच्चों पर,
मुश्किलों की तलवार लटकी रहती है ,
कोई बराबरी नहीं है माँ के प्यार की,
माँ सबसे खूबसूरत सौगात है इस संसार की,
आप रुठा मत करो माँ भूले से भी,
मेरी भूख-प्यास सब चली जाती है,
आपके इन जादुई हाथों के छूने भर से ही,
मेरे शरीर से जादूई तरंगें निकलने लगती हैं,
चाहे नींद आँखों से गुम हो जाए,
चाहे शहद से मिठास कम हो जाए,
आसमान धरती पर आ जाए,
चाहे रात में सूरज उग जाए,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
पानी के झरनों की बंद हो जाए कल-कल भी,
चाहे खारा हो जाए मीठा जल भी,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
* * * *
आप मुझ पर गुस्सा करो या प्यार,
माँ आपका हर रूप प्यारा है,
मेरे गालों पर हाथ रखो या सर पर,
माँ का हाथ ही बनाता है बच्चों को,
आसमान का चमकता सितारा है,
माँ कब रूठने-मनाने में बीत गया बचपन,
यूं लगता है जैसे हो कल की बात,
वो लम्हे याद आते हैं मुझे आज भी,
मैं जब आपकी बांहों का,
सिरहाना बनाकर सोता था हर रात,
बादलों का गर्जना रुक जाए,
चाहे बिजली का कड़कना रूक जाए,
माँ कभी रुठा नहीं करतीं,
आसमान धरती पर आ जाए,
चाहे रात में सूरज उग जाए,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
पानी के झरनों की बंद हो जाए कल-कल भी,
चाहे खारा हो जाए मीठा जल भी,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
* * * *
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) : माँ,स्नेह का सागर

माँ का एक पल का रुठना फिर गले लगाना,
फिर से नहीं करोंगे शैतानी ,
हर पल ये ही समझाना,
ऐसा बोलना हर दिन का काम हो जैसे,
हर रोज एक नई कहानी,
आगे से हम नहीं करेंगे शैतानी,
ये बोलना हमारा भी हर रोज का काम हो जैसे,
माँ थोड़ा रूठना थोड़ा जिद्द करना,
ये मेरा पैदाइशी हक भी है,
माँ कभी तुम्हारे गले से लिपटना,
कभी तुम्हारी बांहों में सिमटना,
ये मेरा पैदाइशी हक भी है,
चाहे आसमान धरती पर झुक जाए,
चाहे आँखों का झपकना रुक जाए,
आसमान धरती पर आ जाए,
चाहे रात में सूरज उग जाए,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
पानी के झरनों की बंद हो जाए कल-कल भी,
चाहे खारा हो जाए मीठा जल भी,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
* * * *
माँ कभी रूठ भी सकती है,
ये सिर्फ एक खाली ख्याल है,
माँ की वजह से ही हमारे चेहरे का रंग लाल है,
कभी तुम रुठो कभी मैं रूठूं,
ये खेल यूं ही चलता रहे,
कभी तुम आगे कभी मैं पीछे,
इस खेल का सुख यूं ही मिलता रहे,
मोरों का नाचना रूक जाए,
चाहे कोयल का कूकना रूक जाए,
माँ कभी रूठा नहीं करती है,
आसमान धरती पर आ जाए,
चाहे रात में सूरज उग जाए,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
पानी के झरनों की बंद हो जाए कल-कल भी,
चाहे खारा हो जाए मीठा जल भी,
माँ कभी रूठती नहीं ( maa kabhi roothati nahin ) है,
* * * *
creation- राम सैणी
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