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पाँव की माटी ( paanv ki mati)

प्यारे दो पाँव की माटी ( paanv ki mati) : माथे पर तिलक

माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर,
वो चलेगी जब रूक-रूककर,
मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी,
वो गुजरेगी जिन राहों से,
मैं अपने माथे पर लगाऊंगा,
प्यारे दो पाँव की माटी (paanv ki mati) उसकी,
*      *        *       *       *        *         *          *
जब माँ के नयनों की चमक थोड़ी कम होगी,
उसकी आँखें भी जब कभी नम होंगी,
वो मेरी आँखों से देखेगी रंग सारे,
जिस माँ ने अपनी खुशियों के पल भी,
मुझ पर पर वारें,
जब कभी मन ललचाएगा,
माँ का कुछ खाने को,
वो मांग करेगी कुछ अलग ले आने को,
मैं बिन सवाल किए कोई,
मन में डाल सेवा का भाव,
माँ की हर ख्वाहिश पूरी करूं,
वो ख़्वाहिश जब भी करें कोई,
मैं हर सुबह देखूं चेहरा माँ का उठकर,
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर,
वो चलेगी जब रूक-रूककर,
मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी,
वो गुजरेगी जिन राहों से,
मैं अपने माथे पर लगाऊंगा,
प्यारे दो पाँव की माटी (paanv ki mati) उसकी,

*      *        *       *       *        *         *          *
जब बच्चों के जैसा हो जाएगा माँ का व्यवहार,
मैं बच्चों के जैसे करूंगा अपनी माँ को प्यार ,
वो हाथ थामकर रखती थी,
मैं जब पीछे -पीछे चलता था,
वो बाज के जैसे रखतीं थीं नजरें मुझ पर,
मैं जब भी घर से बाहर निकलता था,
जहाँ भी मिले जिस हाल में भी मिले,
हर माँ का कीजिए सम्मान सदा,
ना पुछिए धर्म उसका ना पुछिए जाती उसकी,
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर,
वो चलेगी जब रूक-रूककर,
मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी,
वो गुजरेगी जिन राहों से,
मैं अपने माथे पर लगाऊंगा,
प्यारे दो पाँव की माटी (paanv ki mati) उसकी,
*      *        *       *       *        *         *          *
मीठी वाणी है कोयल की,
फिर सूरत क्यों काली है,
माँ लगे महकते फूलों के जैसे,
माँ फूलों की डाली है,
माँ चाहेगी जब भी खुली हवा संग बातें करना,
उड़ते परींदों संग मुलाकातें करना,
मैं हाथ पकड़ छत पर ले जाऊं,
उड़ते परींदों का शोर सुनाऊं,
अगर वो कभी छूना चाहेगी,
बरसते बारिश की बूंदों को,
गरजते बादलों को माँ अगर देखना चाहेगी
मैं माँ को घर के आंगन में घूमाऊंगा,
गरजते बादलों को इधर-उधर भागते दिखाऊंगा,
मेरे बेचैन दिल को सुकून देने के लिए,
एक झलक ही है काफी उसकी,
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर,
वो चलेगी जब रूक-रूककर,
मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी,
वो गुजरेगी जिन राहों से,
मैं अपने माथे पर लगाऊंगा,
प्यारे दो पाँव की माटी (paanv ki mati) उसकी,
*      *        *       *       *        *         *          *

प्यारे दो पाँव की माटी ( paanv ki mati) :  सबको नसीब नहीं
पाँव की माटी ( paanv ki mati)
पाँव की माटी ( paanv ki mati)

जब कभी लगेगा माँ का उदास चेहरा,
गायब चेहरे से मुस्कान होगी,
उसका मन में होगी कोई बेचैनी,
शरीर माँ का लगेगा रोगी,
मैं सब काम -धंधे छोड़कर,
जिम्मेदारी का चोला ओढ़कर,
मैं उसके चेहरे पर लाऊंगा वापिस,
फिर से वो ही मुस्कान,
रब करे सब इच्छाएं हों पूरी माँ की,
कोई भी इच्छा रहे ना बाकी उसकी,
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर,
वो चलेगी जब रूक-रूककर,
मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी,
वो गुजरेगी जिन राहों से,
मैं अपने माथे पर लगाऊंगा,
प्यारे दो पाँव की माटी ( paanv ki mati) उसकी,
*      *        *       *       *        *         *          *
माँ के प्यार की गंगा बहती रहे,
हर आंगन चौबारे में,
हर घर आबाद रहे रौशन,
माँ के प्यार के उजियारे में,
वो माफ करें मेरे सब गुनाह,
ये जीवन शुन्य है उसके बिना,
जब तक जीए वो मेरे लिए,
मेरे सुख-दुख की गवाह माँ है,
मेरा सहारा भी माँ चमकता सितारा भी माँ,
मेरे सब रोगों की दवा माँ है,
इस मतलबी दुनिया में,
कोई भी नहीं है उससे बढ़कर,
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर,
वो चलेगी जब रूक-रूककर,
मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी,
वो गुजरेगी जिन राहों से,
मैं अपने माथे पर लगाऊंगा,
प्यारे दो पाँव की माटी (paanv ki mati) उसकी,
*      *        *       *       *        *         *          *
कोई माँ जैसा खुद्दार भी,
सात समंदर पार भी,
ढूंढे से भी नहीं मिलेगा,
कोई माँ जैसा पहरेदार ही,
दे मेरा जीवन संवार भी,
क्या ऐसा पहरेदार कहीं मिलेगा,
रूठ जाए तो मना लेना,
सर माँ के आगे झूका लेना,
माफ़ करें माँ गले लगाए,
बहुत अहमियत रखती है माफी उसकी,
माँ चलेगी जब थोड़ा झूककर,
वो चलेगी जब रूक-रूककर,
मैं बन जाऊंगा लाठी उसकी,
वो गुजरेगी जिन राहों से,
मैं अपने माथे पर लगाऊंगा,
प्यारे दो पाँव की माटी (paanv ki mati) उसकी,
*      *        *       *       *        *         *          *

creater – राम सैनी

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