google.com, pub-4922214074353243 , DIRECT, f08c47fec0942fa0
कठोर प्रेम (kathor prem)

पिता का कठोर प्रेम (kathor prem) : जीवन संवार दे

मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है,
नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है,
क्यों हर पिता का कठोर प्रेम (kathor prem) होता है,
घर में सबसे ज्यादा उसका ही शोर होता है,
*      *       *      *       *      *        *
गहरी नींद में जब मैं सोया होता हूँ,
सुनहरू ख्वाबों में जब मैं खोया होता हूँ,
मैं दौड़ता फिरता हूँ तारों के,
टिमटिमाते गाँव में,
मेरे कानों में सुनाई पड़ती है कोयल की कू-कू,
पेड़ों की घनी छाँव में,
ऐसे सुनहरे पलों में पिता आकर,
वो घूरता है बार-बार गुस्से वाली,
आँखों से मुझे जगाकर,
मैं दांत पीसकर रह जाता हूँ,
माँ का प्यारा चेहरा देखकर,
मैं सब कुछ चुपचाप सह जाता हूँ,
वो मुझे प्यार करता है या नहीं रब जाने,
शायद वो प्यार सीने में छूपा लेता है,
मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है,
नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है,
क्यों हर पिता का कठोर प्रेम (kathor prem)होता है,
घर में सबसे ज्यादा उसका ही शोर होता है,
*      *       *      *       *      *        *
मेरे साथ पिता का कुछ ज्यादा ही,
कुछ कठोर स्वभाव है,
उनको पता नहीं मुझमें,
किस चीज का दिखता अभाव है,
वो गलतियां निकालता है मेरे हर काम में,
पिता बोलता है मुझ जैसा नहीं मिलेगा,
कामचोर इस पूरे गाँव में,
मुझे उठाकर नींद कच्ची दिनभर के सारे काम,
उंगलियों पर वो गिना देता है,
मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है,
नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है,
क्यों हर पिता का कठोर प्रेम (kathor prem)होता है,
घर में सबसे ज्यादा उसका ही शोर होता है,
*      *       *      *       *      *       *
खेल-कूद में मस्त होते हैं,
जब हमारे सब मित्र -प्यारे,
हम नहाए होते हैं पसीने से सारे,
पिता के मन मे क्या चलता है,
उसके मन का भेद ना जाने कोई,
वो सूरज के जैसे आग उगलता है,
चेहरा देखकर उसका गुस्से वाला,
घर में पानी ना मांगे कोई,
ना कभी सीने से लगाए,
हर घड़ी मुझे आँख दिखाएं,
बात-बात पर पिता मुझको रुला देता है,
मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है,
नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है,
क्यों हर पिता का कठोर प्रेम (kathor prem)होता है,
घर में सबसे ज्यादा उसका ही शोर होता है,
*      *       *      *       *      *       *

 पिता का कठोर प्रेम (kathor prem) : एक कड़ी परिक्षा
कठोर प्रेम (kathor prem)
कठोर प्रेम (kathor prem)

जब भी मुझे पर बरसता है वो,
माँ अपने प्यार की शीतल हवा चलाए,
उसका बोला लकीर है पत्थर की,
घर में उसके आगे हम-सब सर झुकाए,
मुझे बहुत चुभता है जब वो,
खरी-खरी सुनाता है,
मैं हूँ जैसे कोई बेगाना,
एक पल तो यूं लगता है,
ना दिल से करें वो मुझको प्यार,
ना अपने दिल में जगह देता है,
मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है,
नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है,
क्यों हर पिता का कठोर प्रेम (kathor prem)होता है,
घर में सबसे ज्यादा उसका ही शोर होता है,
*      *       *      *       *      *        *
मैं जानती हूँ उसकी रग-रग को,
वो तुम पर प्यार लुटाता है,
तुम मान जाते हो बुरा,
वो जब भी तूमको समझाता है,
एक माँ का है ये एतबार,
दीवानों के जैसे करता है वो तुमको प्यार,
पिता को तुम से कोई भैर नहीं,
तुम्हें अपना समझकर वो बोलता है,
वो सुनता है जब आवाज तुम्हारी,
मानो उसके कानों में कोई रस घोलता है,
वो सच्चा पहरेदार हमारा,
एक पल में ही राह की सब मुश्किलें हटा देता है,
मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है,
नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है,
क्यों हर पिता का कठोर प्रेम (kathor prem)होता है,
घर में सबसे ज्यादा उसका ही शोर होता है,
*      *       *      *       *      *      *
शक मत करना कभी उसके प्यार पर,
जिसका कद आसमान से ऊँचा है,
पिता होता है एक चमकता सूरज,
जिसके बिन ये सारा जग फीका है,
उसकी वजह से मेरी मांग में सजा है रंग लाल,
वो मेरी खुशियों की चाबी है,
उसकी वजह से ही रहता है,
हम सबके चेहरों का रंग गुलाबी है,
जब साथ खड़ा हो परिवार उसके,
हर ग़म को वो हरा देता है,
मुझे हर सुबह जल्दी वो जगा देता है,
नींद आँखो से मेरी वो भगा देता है,
क्यों हर पिता का कठोर प्रेम (kathor prem)होता है,
घर में सबसे ज्यादा उसका ही शोर होता है,
*      *       *      *       *      *        *

creater – राम सैनी

must read : माँ के नाम (maa ke naam )

must read : माँ की मीठी नींद (maa ki meethi neend )

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top