मेरे व्यहवार में मिलती हैं ,
उनके संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ),
मैं तारीफ करूं अपनी बातों में,
मात-पिता का पूरा हक मेरे जीवन पर ,
जो खुद ना सोकर जागे हैं मेरे लिए,
काली अंधेरी रातों में ,
* * * *
जो मात-पिता को कर किनारे,
खुद लेने लगते हैं जीवन के फैसले,
मुझे उनकी सोच पर आता है तरस,
मात-पिता वो बादल हैं
जो बच्चों पर बिन गरजे जातें हैं बरस,
मैं बेटी अभिमानी हूँ,मैं बेटी खानदानी हूँ,
थोड़ी चंचल थोड़ी जिद्दी,
मेरे सपने आसमानी हैं,
मुझे जिद्द है नाम चमकाने की,
मात-पिता के दिल में अपना घर बनाने की,
अभिमान से गर्दन है मेरी तनी,
मैं काम करूं सदा ऐसे,
मुझ पर अभिमान करें मेरी जननी,
मैं हर घड़ी माँ की ममता की महिमा गाऊं,
उनका प्यार झलकता है मेरी बातों में,
मेरे व्यहवार में मिलती हैं ,
उनके संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ),
मैं तारीफ करूं अपनी बातों में,
मात-पिता का पूरा हक मेरे जीवन पर ,
जो खुद ना सोकर जागे हैं मेरे लिए,
काली अंधेरी रातों में ,
* * * *
मुझे नहीं चाहिए कोई नदियां, समंदर,
एक बूंद पानी मेरी प्यास है,
जहाँ मैं पाँव रखूं वो हाथ रखतें हैं,
मेरे जीवन में मात-पिता ही सबसे खास हैं,
मैं चलती हूँ जब सड़क किनारे,
वो मेरी उंगली थामकर चलते हैं,
मैं बोलूं जब मुस्कराकर,
उनके दिलों में फूल सुगंधित खिलते हैं,
मैं रहती हूँ उनकी धड़कन बनकर,
मात-पिता बसें हैं मेरी सांसों में,
मेरे व्यहवार में मिलती हैं ,
उनके संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ),
मैं तारीफ करूं अपनी बातों में,
मात-पिता का पूरा हक मेरे जीवन पर ,
जो खुद ना सोकर जागे हैं मेरे लिए,
काली अंधेरी रातों में ,
* * * *
जीवन के दिन चार हों या बेशुमार हों
मैं उनके ही दिखाए रास्ते पर चलूं,
मेरे चेहरे पर नाराज़गी रहे या बहार,
मैं उनके दिल के सदा पास रहूं,
लोग क्या बात करतें हैं,
मैंने की नहीं इसकी परवाह कभी,
मुझे एक बेटे के जैसे रखती है,
मुझसे ऊँची आवाज में भी बात ना करे
मेरी प्यारी माँ कभी,
मात-पिता के दिल में मैं रहती हूँ फूल बनकर,
मुझे आता नहीं है रहना तीखी शूल बनकर,
मैं ईश्वर के जैसे मानती हूँ मात-पिता को,
मैं भरोसा करती हूँ रिश्ते-नातों में,
मेरे व्यहवार में मिलती हैं ,
उनके संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ),
मैं तारीफ करूं अपनी बातों में,
मात-पिता का पूरा हक मेरे जीवन पर ,
जो खुद ना सोकर जागे हैं मेरे लिए,
काली अंधेरी रातों में ,
* * * *
संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ) : मेरे सांसों में है
पिता बोलता है मुझको प्यार से कोयल काली,
तेरे पड़े हैं शुभ कदम घर मे जब से,
हम मिट्टी को छूएं तो वो भी सोना बन जाए,
तूम हो इतनी नशीबों वाली,
मैं मानती हूँ खुद को खुशनसीब ,
जो मुझको इतना प्यारा परिवार मिला,
हर कदम हर पल मेरे माता-पिता का,
मुझको भरपूर प्यार मिला,
मेरे मात-पिता हैं इतने प्यारे,
सबको अपना बना लेते हैं,
दो-चार मुलाकातों में,
मेरे व्यहवार में मिलती हैं ,
उनके संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ),
मैं तारीफ करूं अपनी बातों में,
मात-पिता का पूरा हक मेरे जीवन पर ,
जो खुद ना सोकर जागे हैं मेरे लिए,
काली अंधेरी रातों में ,
* * * *
वो बात-बात पर मुझ में जोश भरे,
तारीफ करें मेरे छोटे से छोटे काम की,
हर दिन मेरे हौसलों में नई उड़ान भरें,
मैंने अपने मात-पिता के हाथों में,
सौंप दी है चाबी अपने जीवन तमाम की,
मैं एक तितली के जैसे दौड़ती फिरती हूँ,
अपने घर के हर कोने में,
मैंने देखा है वो बेचैन से हो उठते हैं,
मेरे घर में ना होने से,
मैं बसी हूँ उनकी रग-रग में
वो बसे हैं मेरी सांसों में,
मेरे व्यहवार में मिलती हैं ,
उनके संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ),
मैं तारीफ करूं अपनी बातों में,
मात-पिता का पूरा हक मेरे जीवन पर ,
जो खुद ना सोकर जागे हैं मेरे लिए,
काली अंधेरी रातों में ,
* * * *
वो भण्डार हैं प्यार के,
वो जान हैं हमारे परिवार की,
मात-पिता के आंचल में वो सुख मिले,
जो नशीब ना हो ऊँची हवेलियों में,
हर वक्त मेरी जुबान पर उनका जिक्र रहता है,
मैं जब भी बैठती हूँ अपनी सखी-सहेलियों में,
मैं बेटी हूँ नहीं कमजोर,
मात-पिता के हाथों में है मेरे जीवन की डोर,
मुझे बनाया है वज्र के जैसे,
मैं डरती नहीं अच्छे-बुरे हालातों से,
मेरे व्यहवार में मिलती हैं ,
उनके संस्कारों की झलक (sanskaron ki jhalak ),
मैं तारीफ करूं अपनी बातों में,
मात-पिता का पूरा हक मेरे जीवन पर ,
जो खुद ना सोकर जागे हैं मेरे लिए,
काली अंधेरी रातों में ,
creater -राम सैनी
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