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बेटी को ना बाँधो (beti ko naa baandho )

माँ,मेरे सपनों में पंख लगा दो आज,
मै भी पहनना चाहती हूँ कामयाबी का ताज,
छोड़ दो ये सोचना क्या बोलेगा समाज,
*    *      *       *        *      *
माँ अपनी बेटी को निहारती हुई
बेटी को ना बाँधो (beti ko naa baandho )

मुझे भी दो माँ पड-लिखने का अधिकार,
भरोसा करना माँ मुझ पर भी बेटों के जैसे,
मेरे अंदर भी बोलते हैं तुम्हारे दिए संस्कार,
कौन क्या कहेगा जरा ये सोचना बंद कर दो,
जिन गलियों में होती है बेटी की बुराई,
तुम उनकी ओर से आँखें बंद कर लो,
तुम मेरी चिंता करती हो दिन -रात,
ये तुम्हारा हक है माँ,
इस बात में कोई शक नहीं है माँ,
मुझे तुम्हारी सहमती का है इंतजार,
तुम साथ खड़ी हो हर पल मेरे,
मुझे भी है इतना एतबार,
कमजोर नहीं है माँ बेटी तुम्हारी,
मैं शेरनी के जैसे हूँ जांबाज,
माँ मेरे सपनों में पंख लगा दो आज,
मै भी पहनना चाहती हूँ कामयाबी का ताज,
बेटी समझकर पैरों में ना डालो तुम बेड़ियां,
छोड़ दो ये सोचना क्या बोलेगा समाज,
*      *        *        *         *
मेरे पंखों में उड़ान भरना,
माँ ये तेरा काम है,
एक दिन ऊँचा करना माँ तेरा नाम है,
एक बेटी अगर पढ़-लिख जाए,
वो दो परिवारों को संवारती है,
माँ-बेटी का रिश्ता है कुछ ऐसा की,
बेटी हर पल माँ-माँ पूकारती है,
मेरे सीने में धडकती,
हर सांस को पहचाने तूं,
मेरे दिल में छुपी हर बात को माँ जाने तूं,
मुझे पता है घर की मान-मर्यादा की,
माँ मेरे ऊपर है जिम्मेदारी,
हर पाँव रखुंगी देखभाल कर,
हर काम में दिखाऊंगी समझदारी,
मैं ना कभी अपनी हद से आगे बढ़ूंगी,
मैं सदा तेरे दिखाएं रस्ते पर चलूंगी,
माँ तेरी बेटी तुझसे ये वादा करती हैं आज,
माँ मेरे सपनों में पंख लगा दो आज,
मै भी पहनना चाहती हूँ कामयाबी का ताज,
बेटी समझकर पैरों में ना डालो तुम बेड़ियां,
छोड़ दो ये सोचना क्या बोलेगा समाज,
*     *        *       *       *       *
बेटी जब तक तुम रहोगी घर से बाहर,
मेरी सांसें सीने में अटकी रहेंगी,
इस दुनिया का काम है कहना,
ये कुछ ना कुछ तो कहेगी,
हंस -हंसकर सह लूंगी,
मैं इस दुनिया के ताने,
तुम बसी हो मेरे दिल में धड़कन बनकर,
तेरे लिए तेरी माँ हर दुख -दर्द सहेगी,
ये दुनिया लाख बोले कुछ भी,
तेरी माँ कभी कुछ ना कहेगी,
मैं करूंगी सम्मान तेरा,
तूं भी रखना मान मेरा,
मेरे सर को सदा उठाए रखना,
मन में मात-पिता को बिठाए रखना,
मैं खुद से भी ज्यादा करती हूँ,
बेटी तुझ पर नाज,
माँ मेरे सपनों में पंख लगा दो आज,
मै भी पहनना चाहती हूँ कामयाबी का ताज,
बेटी समझकर पैरों में ना डालो तुम बेड़ियां,
छोड़ दो ये सोचना क्या बोलेगा समाज,
*         *        *        *          *
मैं भी करना चाहती हूँ अपने सपने साकार,
बेटों के जैसे तुम मुझे लाड- लडाती हो,
कोई ये माने या ना माने,
*       *      *       *       *       *

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