पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार,
बड़ा किया अपने आंगन का द्वार,
हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) ,
फूल लगाए कांटेदार,
* * * *
बेटा बोला आँखों में आँखें डालकर,
अब तक क्यों रखी हैं घर में,
मेरे बचपन की यादें संभालकर,
सबको फेंक दिया एक -एक करके,
एक कचरे के ढेर में,
बेटे का बदला हुआ व्यहवार ,
मैं देख रही थी बड़े गौर से,
मैं सोच रही थी मन ही मन,
कहाँ गए मेरे दिए संस्कार,
पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार,
बड़ा किया अपने आंगन का द्वार,
हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) ,
फूल लगाए कांटेदार,* * * *
घर में पूजा -पाठ होता देखकर वो,
सूनकर आरती के मधूर स्वर को,
भक्तिमय होता देखकर पूरे घर को,
बेटे को लग रहा था जैसे ये उसका अपमान हो,
माथे पर तिलक हाथ में धागा,
ये लगतीं थी बेटे को बाधा,
सर झुकाकर अभिवादन करना,
अपने से बड़ों का आदर करना,
ये सब लगते थे उसको एक मिथ्या विचार,
पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार,
बड़ा किया अपने आंगन का द्वार,
हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) ,
फूल लगाए कांटेदार,* * * *
पढ़-लिखकर सबसे पहले,
अपनी ही जड़ें काटना,
ये कुल्हाड़ी की लकड़ी के जैसा है,
कोमल मन में भरा है विषैला जहर,
ये एक जहरीली मकड़ी के जैसा है,
संस्कारों से दूर हटकर,
हम नहीं रह सकते अपनी परछाई से कटकर,
ये कैसा ज्ञान है इस नए दौर का,
दिमाग तेज है संस्कारों से परहेज है,
हर दिल में जलन है ये कैसा चलन है,
जहाँ मोल बिकती है माँ की ममता,
ऐसा कहाँ है वो बाज़ार,
पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार,
बड़ा किया अपने आंगन का द्वार,
हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) ,
फूल लगाए कांटेदार,* * * *
तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) : एक परम्परा
सब अपनेपन में जीते हैं,
बच्चों की जुबान में मिठास कहाँ,
हर रिशते में गांठ यहाँ,
झूठे सपनों में यहाँ जीते हैं,
मेरा बेटा है मेरी परछाई,
कितने शान से एक माँ बोलती थी,
आज का पड-लिखना एक भेड़ चाल है,
अपने संस्कारों का आज क्या हाल है,
बच्चों की कड़वी बोली,
कानों में कडवापन घोलती है,
भाग रहा है कोई धीरे -धीरे,
कोई भाग रहा है तेज रफ्तार,
पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार,
बड़ा किया अपने आंगन का द्वार,
हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) ,
फूल लगाए कांटेदार,* * * *
मेरी माँ को अब कौन समझाए,
सच्चाई उसे कौन बताए,
इस नए दौर है की चमक निराली,
दौलत -शोहरत से भरी है सबकी झोली,
संस्कारों का यहाँ कोई मोल नहीं,
यहाँ महफीलें सजती है हर दिन,
जगमग-जगमग चमकती रातें है,
रीति-रिवाज, पुराने संस्कार,
ये सब पुरानी बातें हैं,
मेरी रगों में दौड़ता खून नया है,
पैसे के पीछे भागना सबका जुनून यहाँ है,
सर झूकाकर अभिवादन करना,
मुझे लगता है बेकार,
पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार,
बड़ा किया अपने आंगन का द्वार,
हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) ,
फूल लगाए कांटेदार,* * * *
माँ तुम्हारे आँचल से बंधकर नहीं रहना है,
मुझे नहीं चाहिए कोई कायदा -कानून,
मैं परिंदा हूँ खुले आसमान का,
पैसा सिर्फ पैसा है मेरा जुनून,
खुशियों के फूल खिलते हैं दौलत से यहाँ,
मात-पिता भी मिलते हैं दौलत से यहाँ,
एक माँ के रखना तुम बोल ये याद,
मात-पिता से कोई प्यारा नहीं,
आसमान चाहे जितना भी ऊँचा हो,
बिन धरती के गुज़ारा नहीं,
जितनी ज़रूरी है शिक्षा-दीक्षा,
उतने जरूरी हैं संस्कार,
पढ़-लिखकर जब आया बेटा पहली बार,
बड़ा किया अपने आंगन का द्वार,
हटाकर माँ का लगाया तुलसी का पौधा (tulsi ka paudha ) ,
फूल लगाए कांटेदार,* * * *
creater-राम सैणी
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