मै उड़ाता रहा धन-दौलत,
पिता हर बार समझाता था,
मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * *
पिता का काम कमाना है,
बस मेरा काम उडाना था,
एक पिता कमाता है कैसे,
ये मैंने कभी ना जाना था,
मैं सोचता रहा अब तक,
बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करना,
एक पिता का ये फर्ज है,
पिता के बलिदान के किस्से,
इतिहास में दर्ज हैं,
* * * *
जब तक मेरे सर पर आसमान था,
मुझको भी ये अभिमान था,
पिता के पास है एक बड़ा खजाना,
पर मैं सच्चाई से अनजान था,
मैंने जब भी मांगा पिता ने मुझको दिया,
शायद ये उसका प्यार था,
मैं माँगता अगर चमकते सितारे,
वो सारा आसमान लाने को तैयार था,
मैं समझता रहा पिता का खजाना कम नहीं होगा ,
मेरे दौलत लुटाने से ,
मै उड़ाता रहा धन-दौलत,
पिता के खजाने से (pita ke khajane se )
पिता हर बार समझाता था,
मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * *
मैं लूटाता रहा दिल खोलकर,
वो मेरे नखरे उठाता रहा दिल खोलकर,
पिता की जुबान पर,
हाँ रहती थी हरदम,
वो पल कायम रखता था,
मेरे चेहरे पर खुशियों की सरगम,
एक भी दिन ऐसा ना बीता,
जब मेरे चेहरे पर गम की लकीरें हों,
मेरी झोली में डाल देता था ,
सारे जहां की खुशियां,
चाहे डालता धीरे-धीरे हो,
मैं रूठ जाता था जब भी,
वो पीछे नहीं हटता था मुझे मनाने से,
मै उड़ाता रहा धन-दौलत,
पिता हर बार समझाता था,
मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * *
पिता के खजाने से (pita ke khajane se ) : मेरा मशीहा
पिता ने एक दिन मुझे आजमाया,
क्या होती है पैसे की कीमत,
ये मुझको है बताया,
जो लोग रहते हैं सदा,
मात-पिता की छाँव में,
उनके मेहनत की कहानी बताते हैं,
पड़े हुए छाले उनके पाँव में,
एक पिता सब की ख्वाहिशें करता है पूरी,
अपनी ख्वाहिशों को मारकर,
चट्टान के जैसे खड़ा। रहता है,,
हर पल साथ तुम्हारे,
वो बैठता नहीं कभी थक-हारकर,
पिता भी मुस्कराता है ,
घर में सबके मुस्कराने से ,
मै उड़ाता रहा धन-दौलत,
पिता हर बार समझाता था,
मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * * बिन पैसे के कैसे जीते हैं,
कभी देखो एक दिन गुजार कर,
पिता की दौलत दे सकती है,
कुछ पल आराम तुम्हें,
लेकिन तुम को अपना वजूद तलाशना है,
तपकर मेहनत की भट्ठी में,
तुम को हीरे के जैसे तराशना है,
कभी रूक ना जाएं कदम तुम्हारे,
एक छोटी -सी बाधा आ जाने से ,
मै उड़ाता रहा धन-दौलत, पिता के खजाने से (pita ke khajane se ), पिता हर बार समझाता था, मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * * परिवार की छाँव से बाहर निकलकर,
जब देखोगे इस दुनिया के रंग निराले,
मेहनत करोगे जब अपने हाथों से,
तुम्हारे संग चलेंगे खुशियों के उजाले,
अपने हाथों के छालों को ,
जब चूमोगे तुम पहली बार,
चमक उठेगा चेहरा तुम्हारा,
होठों पर होगी हंसी की फुहार,
मिल जाती है मंजिल उनको,
पहचान मिलती है यहाँ,
कुछ कर दिखाने से,
मै उड़ाता रहा धन-दौलत,
पिता हर बार समझाता था,
मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * *
मन में अब ये ठान लिया है,
मेहनत को ही सब+कुछ मान लिया है,
पिता के बताए रास्ते पर,
मैं भी चलूंगा उनके नक्शे-कदम
मैंने लिया है जो ज्ञान उनसे,
मैं अपने जीवन में उतारूंगा हर दम,
पिता के साये में जिया है अब तक,
राज कुमारों के जैसे,
पिता है सागर प्यार का,
वो है एक हज़ारों में जैसे,
मैं अपनी पहली कमाई रखूंगा,
जब अपने पिता के हाथों में,
खुशी से चमक जाएगी आँखें उसकी,
जैसे बिजली चमकती हैं बरसातों में,
वो पल होंगा मेरे जीवन का सबसे यादगार पल,
जब मैं भी काबिल हो जाऊँगा ,
अपने परिवार का नाम चमकाने में ,
मै उड़ाता रहा धन-दौलत,
पिता के खजाने से (pita ke khajane se )
पिता हर बार समझाता था,
मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * * यूं लगेगा जैसे मैंने जीत लिया है,
अपने जान से प्यारे पिता का दिल,
मैंने बचपन गुज़ारा है जिसके,
कांधे पर करके सवारी,
रंग दिखाए हैं इस दुनिया के,
उंगली पकड़कर हमारी,
बचपन का वो दौर,
आज फिर लौटकर आया है,
पहले थामा था हाथ पिता ने,
आज मैंने सर झुकाया है,
वो सबसे अलग है सबसे प्यारा है
पिता माहिर है हर रिश्ते को ,
दिल से निभाने में, मै उड़ाता रहा धन-दौलत, पिता के खजाने से (pita ke khajane se ), पिता हर बार समझाता था, मुझे किसी ना किसी बहाने से,
* * * * *
creater -राम सैणी