google.com, pub-4922214074353243 DIRECT, f08c47fec0942fa0
पहली उड़ान (pahli udan )

साहस की पहली उड़ान (pahli udan ) : खुद से मुलाकात

थोड़ा डर था थोड़ी बेचैनी,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
थोड़ा डर थोड़ी मुस्कान,
ये थी मेरे साहस की,
पहली उड़ान (pahli udan ),
ना साथ थी कोई सखी-सहेली,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
*       *       *       *       *
मात-पिता के साये में जीया है अब तक,
उनकी सहमति से हर फैंसला लिया है अब तक,
जहाँ चाहा वहाँ कदम रखा,
ना कोई परेशानी थी उनके के साये में,
ना कोई सर पर वजन रखा,
मन चाहा मैंने खाया है अब तक,
मन चाहा ही पहना है,
वो एक राजकुमारी के जैसे रखते हैं,
मेरे मात-पिता का क्या कहना है,
कभी किसी दुख से पड़ा ना पाला,
ना ही कभी कोई मुशिबत झेली,
थोड़ा डर था थोड़ी बेचैनी,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
थोड़ा डर थोड़ी मुस्कान,
ये थी मेरे साहस की,
पहली उड़ान (pahli udan ),
ना साथ थी कोई सखी-सहेली,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
*        *       *       *           *
ना कभी रोका ना कभी टोका,
ना आँखों से कभी डराया है,
मुझे पाला है एक बेटे के जैसे,
मात-पिता ने बचपन से ही,
मुझको नीडर बनाया है,
ना बहने दिया कभी आँखों से पानी,
ना चेहरे पर उदासी कभी छाने दी,
कदम कदम पर मेरे साथ खड़े,
दूख-तकलीफ ना पास कभी मेरे आने दी,
मात-पिता के प्यार के आगे,
फीके सब ऊँची महल-हवेली,
थोड़ा डर था थोड़ी बेचैनी,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
थोड़ा डर थोड़ी मुस्कान,
ये थी मेरे साहस की,
पहली उड़ान (pahli udan ),
ना साथ थी कोई सखी-सहेली,
जब पहली बार मैं चली अकेली
*      *       *       *         *
घर से बाहर मेरा पहला कदम,
दिल में डर था मेरे हरदम,
सब की नजरें जैसे देख रही हों मुझको,
चेहरे पर छाई थी थोड़ी शर्म,
मात-पिता का जब मिला सहारा,
मैंने पलटकर देखा जब दोबारा,
थोड़ी मिली मेरे मन को राहत,
देखकर उनका अपनापन,
धीरे-धीरे जब बढ रही थी आगे,
मेरे मन को ऐसे लग रहा था,
जैसे हवा में शोर कर रहे हों धागे,
न‌ई उड़ान थी ये मेरे लिए,
जब मैं घर से निकली अकेली,
थोड़ा डर था थोड़ी बेचैनी,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
थोड़ा डर थोड़ी मुस्कान,
ये थी मेरे साहस की,
पहली उड़ान (pahli udan ),
ना साथ थी कोई सखी-सहेली,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
*      *       *       *          *

साहस की पहली उड़ान (pahli udan ) : डर और साहस की कहानी

 

पहली उड़ान (pahli udan )
पहली उड़ान (pahli udan )

घर से स्कूल जाना स्कूल से घर आना,
अब तक तो सिर्फ ये ही चलता था,
देर से सोना देर से उठना,
जब सूरज सर पर चढ़ता था ,
संस्कार चलेंगे साथ हमारे,
हम जब तक रहेंगे कायदे में,
याद रहेगा मात-पिता का बलिदान जब तक,
हम सदा रहेंगे फायदे में,
वो हटा देते थे सब कंकड़-पत्थर,
मैं जब जब भी आंगन में खेली,
थोड़ा डर था थोड़ी बेचैनी,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
थोड़ा डर थोड़ी मुस्कान,
ये थी मेरे साहस की,
पहली उड़ान (pahli udan ),
ना साथ थी कोई सखी-सहेली,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
*        *       *       *           *
स्कूल के बाद मेरा कालेज में पहला दिन,
मेरे लिए था सब-कुछ नया-नया,
न‌ई सखियां नया माहोल,
सब-कुछ था नया-नया,
ना थी कोई रोक-टोक
नीचे जमीं उपर खुला आसमान,
मुझे याद रहता है हर घड़ी,
मात-पिता का फरमान,
मैं आज के जमाने में जीती हूँ,
मेरे कंधों पर बोझ है,
घर की मान-मर्यादा का,
मैं दिल में रखती हूँ सदा,
मात-पिता की सूरत भोली,
थोड़ा डर था थोड़ी बेचैनी,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
थोड़ा डर थोड़ी मुस्कान,
ये थी मेरे साहस की,
पहली उड़ान (pahli udan ),
ना साथ थी कोई सखी-सहेली,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
*          *       *       *           *
याद है मुझको परवरिश पिता की,
माँ के दूध की भी लाज निभानी है,
अपने माता-पिता का सर रखना है ऊँचा,
आज ये एक कसम और उठानी है,
खून नया है संस्कार पुराने,
सब रिश्ते हैं मुझे निभाने,
मात-पिता का मुझ पर भरोसा,
ये भरोसा हद से ज्यादा हैं,
आपके भरोसे पर खरी उतरेगी,
ये आपकी बेटी का वादा है,
मेरा जीवन है सीधा-साधा,
बिल्कुल सीधी -साधी है पहेली,
थोड़ा डर था थोड़ी बेचैनी,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
थोड़ा डर थोड़ी मुस्कान,
ये थी मेरे साहस की,
पहली उड़ान (pahli udan ),
ना साथ थी कोई सखी-सहेली,
जब पहली बार मैं चली अकेली,
*        *       *       *          *

creater -राम  सैनी

must read :  बेटी का दर्द (beti ka dard ) : पिता की आँखों से

must read : माँ की आँखों के तारे (maa ki aankhon ke tare ) : माँ का प्रेम

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top