कुएं का ठण्डा जल भी,
शहद के जैसे मीठे-मीठे फल भी,
आज भी मिलते हैं मेरे गाँव में,
बेटे मैं शहर नहीं आऊंगा,
ठण्डे पानी से यहाँ का बच्चा-बच्चा नहाता है,
जब सूरज आग बरसाता है,
आज भी लोग बैठते हैं पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) में,
मैं गाँव से नाता तोड ना पाऊंगा,
* * * * *
यहाँ ऊँची-ऊँची ईमारतें हैं,
जो हवा से बातें करती हैं,
पापा एक बार आकर देखो तो जरा,
यहाँ हर मोड़ पर मेला लगा रहता है,
रातों में भी यहाँ दिन निकला रहता है,
पापा एक बार आकर देखो तो जरा,
यहाँ के रास्ते बिल्कुल साफ मिलते हैं,
रास्तों के किनारे रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं,
शहर में ना कहीं कांटेदार झाड़ियां मिलेंगी,
जिस ओर भी देखो चमचमाती गाडियां मिलेंगी,
घर छोटा हैं पर सारी मिलती हैं सुविधाएं,
पलक झपकते ही पूरी होती हैं,
मन की सब इच्छाएं,
पापा आकर यहीं बस जाओ ना,
मैं तुम्हें हर पल सुख पहुंचाऊंगा,
कुएं का ठण्डा जल भी,
शहद के जैसे मीठे-मीठे फल भी,
आज भी मिलते हैं मेरे गाँव में,
बेटे मैं शहर नहीं आऊंगा,
ठण्डे पानी से यहाँ का बच्चा-बच्चा नहाता है,
जब सूरज आग बरसाता है,
आज भी लोग बैठते हैं पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) में,
मैं गाँव से नाता तोड ना पाऊंगा,
* * * * *
पापा यहाँ बड़े -बडे समंदर हैं,
जिसकी ऊँची-ऊँची लहरें,
हर पल दिल को छूने वाला शोर करती हैं,
मेहनत करने वालों लोगों की किस्मत,
हर पल इशारा कामयाबी की ओर करती है,
मैंने तो सोच लिया है पापा,
मैं अपने सपनों की दुनिया यहीँ बसाऊंगा,
कुएं का ठण्डा जल भी,
शहद के जैसे मीठे-मीठे फल भी,
आज भी मिलते हैं मेरे गाँव में,
बेटे मैं शहर नहीं आऊंगा,
ठण्डे पानी से यहाँ का बच्चा-बच्चा नहाता है,
जब सूरज आग बरसाता है,
आज भी लोग बैठते हैं पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) में,
मैं गाँव से नाता तोड ना पाऊंगा,
* * * * *
मेरे गाँव से हटती नहीं,
एक पल भी मेरी नजर,
जगह -जगह हर चौपाल में,
यहाँ भी मेला लगा रहता है तीनों पहर,
तुम ही बताओ मैं गाँव को छोड़कर,
कैसे आ जाऊं तुम्हारे बेगाने शहर,
मेरे गाँव में आज भी अमृत वेले में,
मुर्गा बांग देता है,
आज भी कितना प्यारा माहोल है,
मेरे गाँव के लोगों में इतना प्यार है,
एक -दुसरे पर इतना एतबार है,
बिन शर्माए कोई भी किसी से,
कुछ भी मांग लेता है,
इतना भाईचारा, इतना अपनापन,
इन सब को छोड़कर मैं आ नहीं पाऊंगा,
कुएं का ठण्डा जल भी,
शहद के जैसे मीठे-मीठे फल भी,
आज भी मिलते हैं मेरे गाँव में,
बेटे मैं शहर नहीं आऊंगा,
ठण्डे पानी से यहाँ का बच्चा-बच्चा नहाता है,
जब सूरज आग बरसाता है,
आज भी लोग बैठते हैं पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) में,
मैं गाँव से नाता तोड ना पाऊंगा,
* * * * *पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) : मेरे पापा की सोच
भाईचारा यहाँ के लहू में बसता है,
एक को हंसता देखकर,
पूरा परिवार हंसता है,
हर आदमी यहाँ सब के दूख में दूंगी,
सब के सुख में सुखी रहता है,
सबके दिलों में प्यार का समंदर बहता है,
मैं अपने बचपन के साथियों का साथ,
चाहकर भी ना छोड़ पाऊंगा,
कुएं का ठण्डा जल भी,
शहद के जैसे मीठे-मीठे फल भी,
आज भी मिलते हैं मेरे गाँव में,
बेटे मैं शहर नहीं आऊंगा,
ठण्डे पानी से यहाँ का बच्चा-बच्चा नहाता है,
जब सूरज आग बरसाता है,
आज भी लोग बैठते हैं पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) में,
मैं गाँव से नाता तोड ना पाऊंगा,
* * * * *
यहाँ भाई -भाई का रिश्ता,
लोग आज भी निभाते हैं,
यहाँ अपनी कमाई का दसवां हिस्सा,
लोग आज भी दान में लगाते हैं,
गाँव के हैं लोग सीधे -साधे,
ना उनके घरों में लगते ताले हैं,
सब मिल-बांटकर खाते हैं,
सभी बड़े दिल वाले हैं,
जिस मिट्टी में जन्म लिया है,
मैं उसे भूल ना पाऊंगा,
कुएं का ठण्डा जल भी,
शहद के जैसे मीठे-मीठे फल भी,
आज भी मिलते हैं मेरे गाँव में,
बेटे मैं शहर नहीं आऊंगा,
ठण्डे पानी से यहाँ का बच्चा-बच्चा नहाता है,
जब सूरज आग बरसाता है,
आज भी लोग बैठते हैं पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) में,
मैं गाँव से नाता तोड ना पाऊंगा,
* * * * *
झूठ-फरेब, नफ़रत से ,
वो आज भी कोसों दूर हैं,
उनके जो मुख पर है वो ही दिल में है,
सब लोग दिल के कोहिनूर हैं,
मैं उन भोले लोगो का दिल तोड़कर,
शहर से नाता जोड़ ना पाऊंगा,
कुएं का ठण्डा जल भी,
शहद के जैसे मीठे-मीठे फल भी,
आज भी मिलते हैं मेरे गाँव में,
बेटे मैं शहर नहीं आऊंगा,
ठण्डे पानी से यहाँ का बच्चा-बच्चा नहाता है,
जब सूरज आग बरसाता है,
आज भी लोग बैठते हैं पीपल की घनी छाँव (ghani chhanv) में,
मैं गाँव से नाता तोड ना पाऊंगा,
* * * * *creater – राम सैनी
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