औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
हर रोज एक पिता आते हैं,
वृद आश्रम की शान बढ़ाने,
बिन औलाद के कैसे रहते हैं,
ये तो राम ही जाने,
सब-कुछ होते हुए भी,
ना जाने क्या-क्या सहते हैं,
आज फिर रिश्तों में कड़वाहट ने,
अपने पंख फैलाए है,
औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
* * * *
पिता बनना आसान नहीं है,
राजा की तरह जीने वाला,
बेशुमार खुशियां देने वाला,
छोटी-छोटी चीज के लिए तरस कर,
जीना सच में आसान नहीं है,
औलाद के नाम सारे सुख,
सारी खुशियां करके आए हैं,
औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
* * * * *
रिश्ते-नाते कों पीछे छोड़ आया हूँ,
अनमोल यादें को पीछे छोड़ आया हूँ,
आँखें झुकी हुई थी,सांसे रुकी हुई थी,
शायद घर का मोह छोड़ ना पाया हूँ,
अपने ही घर में अन्जान लगता था,
जैसे कोई मेहमान लगता था,
जिस घर को बनाया था तिनका-तिनका जोड़कर,
बच्चों की नजरें यूं घूरती थी,
जैसे मैं कोई पराया हूँ,
घर से बेघर होने जा रहे हैं
बुझे हुए मन से एक और पिता,
औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
* * * *
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek Aur Pita ) : एक पिता की मौन चीख़

मैंने एक पिता का फर्ज,
दिलो-जान से निभाया है,
मेरी औलाद ने ही मुझको,
पल-पल तड़फाया है,
जिस औलाद पर मैं अभिमान करता था,
मैं हर घड़ी जिनका ध्यान रखता,
आज वो ही बेगाने हो गए हैं,
जो कल तक मेरी हाँ में हाँ मिलाते थे,
शायद आज वो शयाने हो गए हैं,
अपनी दहलीज को छोड़ आए हैं,
सर झुकाए एक और पिता,
औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
* * * *
अब कौन समझेगा पीड़ा मेरे मन की,
मेरी रगों में बसी है खुशबू,
इस आंगन की मिट्टी के कण-कण की,
अब अपना दुख बांटना होगा,
हर रोज नए-नए लोगो के साथ,
अब वक्त गुजारना होगा,
हर रोज नए-नए लोगो के साथ,
मेरी आँख के तारे,
मुझे छोड़ गए हैं ईश्वर के सहारे,
अपनों से ही ठोकर खाकर खाए हैं,
आँखों में आंसू लिए एक और पिता,
औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
* * * *
शायद मेरी परवरिश में कोई कमी थी,
आज मेरी आँखों में फिर से नमी थी,
पड़ाव उम्र का शायद ये आखिरी है,
आज ये कैसी हवा चल पड़ी है,
रिश्तों में खालीपन है,
प्यार में बनावटीपन है,
रिश्तों को बोझ मानकर हम-सब ढो रहे हैं,
रिश्तों का मीठापन, बुजुर्गों से अपनापन,
हम-सब पल-पल खो रहें हैं,
घर की दहलीज को लांघते हुए,
आज फिर घबराएं हैं,
अपनों से दूर जाते हुए एक और पिता,
औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
* * * * *
रेत के जैसे रिश्ते हाथों से छूट जाते हैं,
आज के दौर में सपने,
काँच के जैसे टूट जाते हैं,
बूढ़ापा सबूत है घर से विदा होने का,
एक पिता फर्ज निभाता है,
अपने पिता होने का,
उम्र के इस पड़ाव में,
हर पिता को डर होने लगा है,
क्योंकि आजकल हर पिता,
घर से बेघर होने लगा है,
अपनों से बिछड़कर,
आंसू बहाने आए हैं एक और पिता,
औलाद से हारकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता(ek aur pita ),
मन पर एक बोझ लेकर आए हैं,
वृद्ध-आश्रम में एक और पिता,
* * * *
creation -राम सैणी
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