चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti )

चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ) : माँ का प्यार

कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ),
जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था,
याद आते हैं वो घर के बर्तन,
जिन पर माँ का नाम लिखा होता था,
*         *         *        *        *
रोटी वो ही स्वाद लगती थी,
जिस पर लगी होती थी चुल्हे की राख,
रोम-रोम खुशी से उछल पडता था,
जिस रोटी पर लगे होते थे माँ के प्यारे हाथ,
याद आते हैं मुझे गर्मी के वो दिन भी,
माँ सबको बड़े प्यार से खिलाती थी,
कुछ कहे बिन भी,
माँ इतने प्यार से रोटी रखती थी थाली में,
जैसे सुगंधित फूल खिलते हैं हरी-भरी डाली में,
मन को आनंद मिलता था,
माँ के हाथों की रोटी खाकर,
जुबां भी बस बोलतीं थी,
माँ का इतना प्यार पाकर,
मैं चूम लेता हूँ उस मिट्टी को बार-बार,
जो माँ के चरणों को छूकर है लौटी,
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ),             
जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था,
याद आते हैं वो घर के बर्तन,
जिन पर माँ का नाम लिखा होता था,
*         *         *        *         *
झट से आ जाती थी नीदियां रानी,
ये माँ की चुल्हे की रोटी का असर था,
ना मन में कोई पीड़ा थी, ना परेशानी,
कितने सुकून वाला वक्त था,
आज कहीं खो -सा गया,
वो माँ के हाथों की रोटी का स्वाद जो कल था,
माँ के दो प्यारे हाथों का स्पर्श पाकर,
मीठा हो जाता था कच्चे घड़े का जल था,
माँ धोती थी हमे पुराने कपड़ों के जैसे,
लकड़ी की सोटी के साथ,
कहाँ गई वो लकड़ी की सोटी,
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ),      
जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था,
याद आते हैं वो घर के बर्तन,
जिन पर माँ का नाम लिखा होता था,
*         *         *        *        *
दिल खुशी से झूम उठता था ये देखकर,
माँ का नाम लिखा होता था,
घर के हर बर्तन पर,
पीकर माँ के हाथों से कच्चे घड़े का जल,
माँ के प्यार की छाप लग जाती थी,
हमारे तन-मन पर,
मिलता था हर पल कच्चे घड़े का जल,
साथ में माँ का मन निर्मल,
सुनाई पड़ता था मिलों दूर से,
माँ के दिल में प्यार का झरना करता कल-कल,
माँ दीये और बाती से बनी स्याही ,
डाल-डाल कर आँखों में ,
आँखें हमारी कर देती थी मोटी,
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ),
जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था,
याद आते हैं वो घर के बर्तन,
जिन पर माँ का नाम लिखा होता था,
*         *         *        *         *

चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ) : माँ के हाथों का स्वाद

 

चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti )
चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti )

 

ऐसी भी क्या मजबूरियां थी,

हम भूलते जा रहे हैं,
चुल्हे पर बनी रोटी का स्वाद,
मिल बैठकर खाना आजकल,
बन गया है एक पूरानी याद,
मंहगा खाना ,ना चाहते हुए भी मुस्कराना,
शायद ये हिस्सा है किसी न‌ए रिवाज का,
आज भी कानों में रस घोलती है,
जादुई सा असर है माँ की आवाज का,
कहाँ गया वो वक्त पुराना,
जब सबकी ख्वाहिशें होती थी छोटी,
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ),
जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था,
याद आते हैं वो घर के बर्तन,
जिन पर माँ का नाम लिखा होता था,
*         *         *        *          *
हर घर में हूकम चलता था सिर्फ माँ का,
हर बर्तन के बाहर हर दिल के अंदर,
नाम लिखा होता था सिर्फ माँ का,
ये नाम है इतना प्यारा,
इस नाम के बिन ना होगा,
किसी का भी गुज़ारा,
हमें करना चाहिए सर झूककर सम्मान,
जिस माँ ने ये जीवन संवारा,
मैं हर रोज सुनता था,
बर्तन साफ करती हुई माँ की चुडियों का संगीत,
माँ काम करती हुई गुनगुनाती रहती थी,
अपनी मीठी जुबान से प्यारे प्यारे गीत,
कहाँ ग‌ए वो सब देशी खाने,
छूट ग‌ए सब रिवाज पुराने,
छूट गया वो पहनना सफ़ेद कुर्ता -धोती,
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ),            
जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था,
याद आते हैं वो घर के बर्तन,
जिन पर माँ का नाम लिखा होता था,
*         *         *        *       *
आज भी खनकते है जब घर के बर्तन
ऐसा लगता है मानो माँ कुछ कह रही हो,
आज भी सुनता जब किसी माँ के मुख से लोरी,
ऐसा लगता है मानो माँ के मुख से,
वहीं रसधार बह रही हो,
डोर माँ के प्यार की,
वो रौनक है हर त्योहार की,
माँ जैसा प्यार मिलता नहीं किसी बाजार में,
माँ की प्रार्थनाओं का असर छूपा होता है,
उसके प्यार से दिए हर उपहार में,
जिस के हिस्से में आए प्यार माँ का,
वो राजा होता है इस जहां का,
माँ का प्यार ना जिसको मिले,
समझो उसकी किस्मत है खोटी,
कहाँ गई वो चुल्हे की रोटी (chulhe ki roti ),
जिसमें माँ का प्यार छिपा होता था,
याद आते हैं वो घर के बर्तन,
जिन पर माँ का नाम लिखा होता था,
*         *         *        *        *

creator- राम सैनी

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