चाँद-सितारे (chand-sitare ) : बेटी की आवाज
छूने चली थी मैं चाँद-सितारे(chand-sitare ),बिखर गए मेरे सपने सारे,ये सदियोंं पुराना दस्तूर था,मैंने बेटी बनकर जन्म लियाशायद ये ही मेरा कसूर था,* * * *बदला जरूर ज़माना है,पर अभी भी दस्तूर वो ही पूराना है,बेटी के लिए है एक अलग दायरा ,उस दायरे में ही जीवन बिताना है ,देखें थे जो सपने मैंने,पूरा करने का उन्हें चाव था,मेरे सपने थे थोडे बड़े,मुझे अपने सपनों से बड़ा लगाव था,बचपन में थी जो आजादी,मैं बनकर रहती थी शहजादी,सब और चलता था राज अपना ,हर छोटी-छोटी बात पर जताते थे एतराज अपना ,कभी ना किसी बात का कोई गरूर था ,बिखर गए मेरे सपने सारे,ये सदियोंं पुराना दस्तूर था,मैंने बेटी बनकर जन्म लियाशायद ये ही मेरा कसूर था,* * * *मुझे भी मिलेगा खुला आसमान ,
मैं रहूंगी सदा आसमान का बनकर परींदा ,रेत की तरह एक -एक करके फिसल ना जाएं,इसलिए मैंने अपने सपनों को,दिल में अभी भी रखा है ज़िंदा,दोष किस्मत का समझूं या अपना,क्यों बेरंग हुआ मेरा हर सपना,उतर गया सर से मेरे,जो चडा था ऊँचा उड़ने का सरूर था,छूने चली थी मैं चाँद-सितारे(chand-sitare ),बिखर गए मेरे सपने सारे,ये सदियोंं पुराना दस्तूर था,मैंने बेटी बनकर जन्म लिया,शायद ये ही मेरा कसूर था,* * * *मुझे इस जग में ही रहना है,परिवार की जिम्मेदारीयों को भी निभाना है,जितनी मिली आजादी मुझे,सिर्फ उतने ही पंख फैलाना है,क्यों बेटी को मिले हैं,बस गिनती के अधिकार यहाँ,एक बेटी के लिए क्यों खिंचीं जाती है,लक्ष्मण रेखा हर बार यहाँ,आजादी की बातें करते हैं,सिर्फ दिल बहलाने के लिए,बेटा-बेटी एक समान,बोलते हैं अपने को बड़ा कहलाने के लिए,जो मिले हैं गिने-चुने अधिकार उसे ,हर अधिकार उसका सच्चाई से कोसों दूर था ,बिखर गए मेरे सपने सारे,ये सदियोंं पुराना दस्तूर था,मैंने बेटी बनकर जन्म लियाशायद ये ही मेरा कसूर था,* * * *चाँद-सितारे (chand-sitare ) : सच्चाई की तलाश
स्व्भाव में है एक मीठापन ,मात -पिता के सिवा कोई नहीं ,पढ़ पाता बेटी का मन ,बचपन से ही डाल देते हैं,बेड़ियां हर बेटी के पाँव में,उसको रहना है सदा,अपनों से बड़ों की छाँव में,अनजानी नज़रों से हर पल,बचकर रहना है उसे,माता-पिता की आँखों का ,काजल बनकर रहना है उसे,बेटी है बेगाना धन ये आज भी है,ये कल भी बड़ा मशहूर था,बिखर गए मेरे सपने सारे,ये सदियोंं पुराना दस्तूर था,मैंने बेटी बनकर जन्म लिया,शायद ये ही मेरा कसूर था,* * * *माना के बेटी को रखना चाहिए,हर कदम संभालकर,थोड़ी नज़रों में शर्म हो बाकी,रहे सर पर दुपट्टा डालकर,माता-पिता भी रखते हैं,उसको प्राणों में बसाकर,उन्होंने ही सिखाया है,एक बेटी को रहना सर झुकाकर,बेटी के सर कुछ ज्यादा ही होती है,घर के सम्मान की जिम्मेदारी, हैपढ़-लिखने के साथ -साथ,सिखती है ये दुनियादारी,बेटी बिन अधूरा है ये संसार ,बेटी बनकर रहती है खुद्दार,याद रहेंगे बचपन के दिन सदा ,वो भी क्या सुनहरा दौर था ,छूने चली थी मैं चाँद-सितारे(chand-sitare ),बिखर गए मेरे सपने सारे,ये सदियोंं पुराना दस्तूर था,मैंने बेटी बनकर जन्म लियाशायद ये ही मेरा कसूर था,* * * *काश बचपन से ही बनाया होता,
एक तीखी तलवार मुझे,बेटों की राहों जैसे मिलते,मेरी राहों में भी तपते अंगार मुझे,तपते अंगारों पर चलती,कभी गिरती कभी संभलती,माता-पिता बनाकर रखतें हैं बेटी को,एक हीरा कोहीनूर -सा,छूने चली थी मैं चाँद-सितारे(chand-sitare ),बिखर गए मेरे सपने सारे,ये सदियोंं पुराना दस्तूर था,मैंने बेटी बनकर जन्म लिया,शायद ये ही मेरा कसूर था,* * * *creater -राम सैणीmust read : परिवार का पहरेदार (parivar ka pahredar )
