घर का बोझ अपने कांधों पर उठाना,क्यों बेटे की जिम्मेदारी है,बोझ उठाऊंगी मैं भी अपने घर का,आज से एक बेटी की बारी है ,* * * * *माता-पिता ने मुझको भी तो,एक बेटे के जैसे पाला है,मेरे जीवन में भी उसके ही जैसे,हर दिन किया उजाला है,मैं भी उसी आंगन में पली-बढ़ी,जिस आंगन में बेटे का बसेरा हैयदि बेटा है चिराग घर का,तो बेटी भी रौशनी बनकर अपने घर का,दूर कर सकती अंधेरा है,एक ही घर में बचपन गुजरा,दोनों एक ही कोख के जाये हैं,खाना -पीना सब एक जैसा,फिर घर के सब काम ना जाने,क्यों एक बेटे के हिस्से आए हैं,बेटी भी है वफ़ा की मूरत ,उसकी रग-रग में वफादारी है ,बोझ उठाऊंगी मैं भी अपने घर का,आज से एक बेटी की बारी है ,* * * * *
बेटा है अगर एक पत्थर के जैसा,तो मैंने भी दूध पिया है उसी सीने का,मैं भी खींचूंगी जिस दिन अपने घर की गाड़ी,उस दिन मजा आएगा मुझे भी जीने का,इस जिम्मेदारी को फर्ज अपना मैंने मान लिया है ,मन में अपने ये ठान लिया है,अपने तन-मन से कर ली मैंने,आज से पूरी तैयारी है,घर का बोझ अपने कांधों पर उठाना,क्यों बेटे की जिम्मेदारी है,बोझ उठाऊंगी मैं भी अपने घर का,आज से एक बेटी की बारी है ,* * * * *एक बेटे के हाथ रहेगी घर की डोर,ये रीत वर्षों पुरानी है,तोड़ना है इस रीत को,अब बेटी नहीं बेगानी है,बेटों के साथ कांधा मिलाकर,बेटियां खडी हैं आज के दौर में,बेटियों की चमक फीकी नहीं है,इन बहती हवाओं के शोर में,ये आंगन वो ही गलियां,वो ही खेत -खलिहान है,इन खेतों में काम करना जैसे हमारी शान है,माता-पिता का हाथ बंटाना,हर बेटी का है अधिकार,पड़ -लिखना है अधिकार हमारा,चुल्हा -चौका करने से हमको नहीं है इनकार,* * * * *बेटी की प्रतिज्ञा (beti ki prtigya ) : घर का बोझ उठाने की
बचपन से सिखाया है माँ ने,कदम से कदम मिलाकर चलना,अपने संस्कारों से है प्यार हमें,जाना है यदि घर से बाहर,सर ढक कर निकलना,छाँव हो या तपती धूप,सबको गले लगाया है,कभी माँ बनकर कभी दोस्त बनकर,माँ ने भी अच्छे से अपना फर्ज निभाया है,माता-पिता है ताक़त मेरी,उन्होंने ही उठाना सिखाया मुझको,हर जिम्मेदारी है,घर का बोझ अपने कांधों पर उठाना,क्यों बेटे की जिम्मेदारी है,बोझ उठाऊंगी मैं भी अपने घर का,आज से एक बेटी की बारी है ,* * * * *बेटी के हाथों में भी ईश्वर की करामात है,जहाँ भी जाए हर पल चलाए,अपने मेहनती प्यारे दो हाथ है,शांत होकर सदा रहना है,मेहनत ही उसका गहना है,खुद भी खाएं सबको खिलाएं,आता नहीं बेटी को किसी पर,बोझ बनकर रहना है,घर में अपने सबकी बनकर रहती है जान वो,पंख फैलाकर छूना चाहती है इस आसमान को,निडर ,साहसी बनाया है माँ ने ,बेटी नहीं रहना चाहती बनकर बेचारी है ,घर का बोझ अपने कांधों पर उठाना,क्यों बेटे की जिम्मेदारी है,ये है माँ तेरी बेटी की प्रतिज्ञा (beti ki prtigya ),बोझ उठाऊंगी मैं भी अपने घर का,आज से एक बेटी की बारी है ,* * * * *
दूर रहतीं हैं सदा वो नफरत बांटने वालों से,नाराज़ भी हो जाती है वो ,हर पल डांटने वालों से,माँ को बताए अपने दिल के राज,रहतीं हैं बनकर खुश मिजाज,बेटी है उजाला घर का,अभिमान है हमारे सर का,किसी भी काम से जी ना चुराए,हर काम में दिखाती ईमानदारी है,घर का बोझ अपने कांधों पर उठाना,क्यों बेटे की जिम्मेदारी है,ये है माँ तेरी बेटी की प्रतिज्ञा (beti ki prtigya ),बोझ उठाऊंगी मैं भी अपने घर का,आज से एक बेटी की बारी है ,* * * * *creater -राम सैणीmust read : धन्य हैं मात-पिता (dhany hain maat-pita )must read : माँ (maa )