अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
माँ इतना भी आसान नहीं है,
इस प्यारे-से आँगन में ,
क्या बेटी के लिए कोई स्थान नहीं है
* * * * *
जिस घर में गुजरा है बचपन,
जहाँ सीखा है पैरों पर खडना,
पिता ने बिठाया है काँधें पर,
माँ ने सिखाया है उंगली पकड़कर चलना,
हर सुबह उठने की आदत है,
मुझको सूरज चड जाने के बाद,
मेरा दिन गुजरता है अपने छोटे,
भाई-बहन से लडने के बाद,
जब तक ना देखूं उनका चेहरा,
दिल खोया-खोया रहता है मेरा,
ऐसा एक भी पल नहीं है जीवन में,
जब मैं करती उनका ध्यान नहीं,
अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
माँ इतना भी आसान नहीं है,
इस प्यारे-से आँगन में ,
क्या बेटी के लिए कोई स्थान नहीं है
* * * * *
इस आँगन से रिश्ता कुछ ऐसा है,
बिल्कुल डोर-पतंग के जैसा है,
मैं भूलूं तो कैसे भूलूं,
मेरे आँगन की मिट्टी प्यार करे,
मुझको मात-पिता के जैसे ,
यहाँ के फूलों से बातें करती हूँ,
सखी-सहेलियों के जैसे,
तुम्ही बताओ मैं भूलूं तो कैसे भूलूं,
मेरे दिल में धड़कती हैं धड़कन,
मैं कोई गुड़िया बेजान नहीं,
अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
माँ इतना भी आसान नहीं है,
इस प्यारे-से आँगन में ,
क्या बेटी के लिए कोई स्थान नहीं है
* * * * *
ये कितने प्यारे रिश्ते हैं माँ,
जो एकदुजे को जोड़कर रखते हैं माँ,
क्या सब रिश्ते बेगाने हो जाते हैं,
बेटी की विदाई के बाद,
मेरे मन-मंदिर में सब बसते हैं,
जब हम खुले आँगन में बैठकर हंसते हैं,
वो यादें बहुत रूलाएंगीं माँ तेरी बेटी को,
उसकी विदाई के बाद,
ये जमाने की रीत चलती आईं हैं सदा ,
एक दिन बेटी को होना है विदा,
मैं ऋणी हूँ अपने माता-पिता की,
मुझे सीने से लगाया जब भी खता की,
मात-पिता से बढ़कर,
इस दुनिया में कोई भगवान नहीं,
अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
माँ इतना भी आसान नहीं है,
इस प्यारे-से आँगन में ,
क्या बेटी के लिए कोई स्थान नहीं है
* * * * *बचपन का घर (bachpan ka ghar ) : छूटते आँगन की यादें
एक बेटी जब होती है विदा,
बच्चों के जैसे रोते हैं मात-पिता,
ये रीत माँ किसने बनाई है,
अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
अनजाने घर में रिश्ता जोड़ना,
ये रीत माँ किसने बनाई है,
क्या एक बेटी सब पर भारी है,
क्या ये सबसे बड़ी जिम्मेदारी है,
क्यों उड़ जाती है आँखों से नींदें,
जब तक वो कुंवारी है,
जब तक जिएगी अपने दम पर,
बेटी लेती किसी का एहसान नहीं है,
अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
माँ इतना भी आसान नहीं है,
इस प्यारे-से आँगन में ,
क्या बेटी के लिए कोई स्थान नहीं है
* * * * *
बेटी है मात-पिता के दिल का टुकडा,
जिसे देखकर खिल जाता है उनका मुखड़ा,
बेटी का कन्यादान है एक शुभ रस्म,
बेटी के हाथों में मेहंदी लगाना,
हर मात-पिता का सपना है,
बेटी जब हो जाए समझदार,
फूंक-फूंककर रखना पड़ता है हर एक कदम,
चिंता रहती है दिल में एक माँ के,
जब तक बेटी विदा ना हो,
एक प्यारी-प्यारी गुड़िया है,
बड़ी मीठी है उसकी बोली,
थोड़ा डर थोड़ी खुशी मन में लिए,
बैठ जाएगी एक दिन डोली,
बेटी है रिश्तों की डोर,
जो खुशियां बिखेरे चारों ओर,
बेटी के जैसा कोई महान नहीं,
अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
माँ इतना भी आसान नहीं है,
इस प्यारे-से आँगन में ,
क्या बेटी के लिए कोई स्थान नहीं है
* * * * *
माँ बेटी को देती है ऐसी शिक्षा,
ससूराल में कोई उससे ख़फ़ा ना हो,
बचपन की यादों को भी,
हम सबको भूलाना पड़ता है,
हर बेटी को एक दिन,
अपना घर छोड़कर जाना होता है,
ये ही जीवन है ये ही सच है,
ये ही है रश्मों-रिवाज,
हर बेटी को करना होता है,
अपने नए जीवन का आगाज,
आज की बेटी है शिक्षित,
वो किसी बात से अनजान नहीं है,अपने बचपन का घर (bachpan ka ghar ) छोड़ना,
माँ इतना भी आसान नहीं है,
इस प्यारे-से आँगन में ,
क्या बेटी के लिए कोई स्थान नहीं है
* * * * *creater-राम सैनी
must read :चैन की नींद (chain ki neend ) की शुरुआत : सुख की लौ
must read :खाली आंगन (khali aangan ) का दर्द : प्रार्थना और पीड़ा