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तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal)

तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal) : सबसे बड़ा शिक्षक

पिता ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था,
कोई क्या बराबरी करेगा उसकी,
अरे वो तो सच में क़माल था,
*      *        *         *
मैंने उसके तजुर्बे को कंई बार आजमाया है,
वो हार भी जाए अगर कभी -कभी,
वो उस पल में भी मुस्कराया है,
हौंसला था अटूट उसका,
स्वभाव था मिलनसार,
जीवन की राहें बेशक कठिन थी,
ईश्वर पर था पूरा एतबार,
पिता मुझे बोला करता था ,
चिंटियों की क़तार दिखाकर,
मेहनत की कीमत इन से सीखो,
ये चिंटियां भी रखतीं हैं,
अपना एक अलग संसार बसाकर,
मेहनत से ही जीवन के रंग बदल सकते हैं,
ये पिता का ख्याल था,
पिता ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था,
कोई क्या बराबरी करेगा उसकी,
अरे वो तो सच में क़माल था,
*      *        *         *
पैसे की कीमत क्या होती है,
बिन पैसे के यहाँ किस्मत भी सोती है ,
वो जान-बूझकर लेकर जाता था,
मुझे उबड़-खाबड़ राहों में,
पिता बोलता था हमेशा,
तुम दुनिया के रंग देख ना पाओगे,
जब तक रहोगे मेरी बाहों में,
पिता खुश था या परेशान था,
पर वो एक जिंदादिल इंसान था,
पिता ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था,
पर तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal) था,
कोई क्या बराबरी करेगा उसकी,
अरे वो तो सच में क़माल था,
*      *        *         *
परवाह नहीं की कभी मौसम की मार की,
चाहे परेशानियों ने घेर रखा हो सारे संसार की,
वो जिया है अपनी ख्वाहिशों को मारकर,
कभी बैठा नहीं वो किस्मत से हारकर,
मैं भी उठा सकूं जिम्मेदारी परिवार की,
मुझे इस काबिल बना दिया,
मैं सह सकूं तेज धूप और मौसम की मार,
मुझे इस कदर तपा दिया,
पिता हाथ छुड़ाकर चलता था,
मुझे जिद्द थी साथ चलने की,
वो अंधेरों में भी रौशनी ढूंढ लेता था,
पर मुझे जिद्द थी सूरज के जैसे चमकने की,
पिता देता था मुझे हर दिन ,
एक नया इम्तिहान था,
पिता ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था,
कोई क्या बराबरी करेगा उसकी,
अरे वो तो सच में क़माल था,
*      *        *         *
तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal) : अनमोल शिक्षा
जहाँ झुकाया ना सर पिता ने,
ऐसा ना कोई संत-फकीर होगा,
जब भी अमीरों की बात होती है इस जग में,
मेरे पिता के जैसा ना कोई अमीर होंगा,
अपने पिता पर था गुरूर मुझे,

तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal)
तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal)
वो करता नहीं था कभी अपने दिल से दूर मुझे,
मैं बनकर रहता था उसकी आँखों का तारा,
वो बनकर रहता मेरी ढाल था,
पिता ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था,
कोई क्या बराबरी करेगा उसकी,
अरे वो तो सच में क़माल था,
*      *        *         *
जब भी मैंने कुछ मांगा उससे,
पिता नहीं देखता था महंगे-सस्ते,
मेरी झोली में डाल देता था,
एक पल में वो हंसते -हंसते,
हम सब की खुशियों का‌ आधार,
हर दिन झूमता रहता था पूरा परिवार,
पढ़ाई और तजुर्बा जब दोनों साथ चलेंगे,
कामयाबी होगी शिखर पर,
एक -दुजे के दिल में प्यार का रस घोलेंगे,
वो खुद हो जाता था परेशान बहुत,
जब भी मुझे देखता परेशान था,
पिता ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था,
पर तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal) था,
कोई क्या बराबरी करेगा उसकी,
अरे वो तो सच में क़माल था,
*      *        *         *
 वो पड़ लेता है बंद आंखों से,
मेरे माथे की लकीरों को भी,
वो सबको भरपेट खिलाया था,
घर से भुखा ना जाने दें फकीरों को भी,
उसकी नेक सलाह मुझे आगे बढ़ाती है,
जब मिट्टी में मिलता है पसीना,
वो सोना उगाती है,
पिता ही हमारा सच्चा मार्ग दर्शक होता है,
जो दिल से चाहे भला हमारा,
बस वो ही इकलौता है,
मेरे चारों ओर फैलाकर रखता,
अपनी दुआओं का जाल था,
पिता ज्यादा पढ़ा-लिखा तो नहीं था,
पर तजुर्बा बेमिसाल (tajurba bemisal) था,
कोई क्या बराबरी करेगा उसकी,
अरे वो तो सच में क़माल था,
*      *        *         *
creater -राम सैणी

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