चाँद की रौशनी भी शर्माए,
सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए
मेरी बेटी गुड़िया (beti gudiya ) के जैसे लगती है,
जब सर पर दूपट्टा लहराए,
* * * *
दूपट्टे की कीमत क्या होती है ,
ये बचपन से उसे समझाया है,
दूपट्टा है शान परिवार की,
हर घड़ी उसे सिखाया है,
किमती हो चाहे सस्ता,
सर पर रहे हर पल जंचता,
बेटी का अभिमान दुपट्टा
बेटी का सम्मान दुपट्टा,
बार-बार एक माँ के जैसे,
बेटी का रखता है ध्यान दुपट्टा,
हर घर में मिले बेटी को प्यारा माहोल,
मीठे हों जुबां के बोल,
बेटी के पाँव पड़े जिस घर में,
वो देती है बंद किस्मत के दरवाज़े खोल,
वो घर चमकता रहेगा हमेशा ,
जिस घर में बेटी मुस्काए ,
चाँद की रौशनी भी शर्माए,
सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए
जब सर पर दूपट्टा लहराए,
* * * *
बिन दुपट्टा सर रहे ना खाली,
बेटी है फूलों की डाली,
उसके चेहरे पर तेज है ऐसा,।
जैसे हो सूरज की लाली,
बेटी संग रौशन परिवार,
मात-पिता के आज्ञा पालन के लिए,
बेटी रहे हरदम तैयार,
बेटी है कागज की नांव,
सर पर है मात-पिता की छाँव,
घर में ऐसे उड़ती फिरती है,
जैसे आसमान में उड़ता है ,
कोई परिंदा पंख फैलाए,
चाँद की रौशनी भी शर्माए,
सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए
जब सर पर दूपट्टा लहराए,
* * * *
सर पर दुपट्टा लेकर यूं लगे,
जैसे चांद चमकता हो अम्बर में,
हंसती है जब मेरी बेटी यूं लगे,
जैसे उठती हों लहरें किसी समंदर में,
हम गुड्डे-गुड़ियों के सर पर भी,
दुपट्टा सजाकर रखतें हैं,
बेटी है एक हीरा अनमोल,
इसलिए उसे आँचल में छूपाकर रखते हैं,
सर पर दुपट्टा हमारी परम्परा है वर्षों पुरानी,
ये परम्परा हम सब को है निभानी,
जब सर पर रखती है वो सादा दुपट्टा,
वो एक जिम्मेदार बेटी कहलाए,
उठाकर अपने कंधों पर जिम्मेदारी,
वो अपना फर्ज बाखुबी निभाए,
चाँद की रौशनी भी शर्माए,
सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए
जब सर पर दूपट्टा लहराए,
* * * *
बेटी गुड़िया (beti gudiya ) :एक माँ की परवरिस
इस दुपट्टे से जुड़े हैं माँ के पवित्र संस्कार,
सर पर हो दुपट्टा बेटी के,
जिस पर गर्व करे सारा परिवार,
एक दुपट्टा है लाल रंग का,
जिसे पहनकर बेटी परी बन जाए,
लाल रंग का पहन दूपट्टा,
वो एक प्यारी दूलहन बन जाए,
लाल दुपट्टा है शगुन की निशानी,
बेटी की शुरू होती है एक नई जिंदगानी,
दुपट्टा है हर बेटी का गुरूर,
हर बेटी इसे पहने जरूर,
ये दुपट्टा मात-पिता के,
संस्कारों की पहचान कराए ,
चाँद की रौशनी भी शर्माए,
सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए
मेरी बेटी गुड़िया (beti gudiya ) के जैसे लगती है,
जब सर पर दूपट्टा लहराए,
* * * *
भागती -दौडती इस संसार में,
बदल रहा दुपट्टे का चलन,
जिन बेटियों के सर लहराए दुपट्टा आज भी,
उन सबको मेरा नमन,
मेरे वतन की मिट्टी में,
आज भी बेटियां पूजी जाती हैं,
इनके चरणों की पावन मिट्टी,
आज भी माथे पर लगाई जाती है,
पूजा के काबिल है बेटी,
हर घर में आँखों का काजल है बेटी,
उस दुपट्टे का मैं शुक्रगुजार,
जिसे पहनकर बेटी लगे खुशगवार,
दुपट्टा हो जाता है अनमोल,
जब बेटी के सर लहराए,
चाँद की रौशनी भी शर्माए,
सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए
जब सर पर दूपट्टा लहराए,
* * * *
इसका हर धागा लगता झूमने,
जब बेटी पावन हाथ इसे छू जाए,
ये रेशम का धागा खिल जाता है,
जब बेटी के सर लहराए,
मानो उसको एक हक मिल गया हो,
वो एक बेटी का कद बढ़ाए,
सर पर दुपट्टा आँखों में चमक,
चेहरे पर मुस्कान रहती है,
मात-पिता हों या छोटे -बडे,
घर में वो सब की शान बनकर रहती है,
दुपट्टे और बेटी का साथ,
जैसे मात-पिता का हो सर पर हाथ,
बिना दुपट्टे के बेटी एक कदम भी ना बढ़ाए,
चाँद की रौशनी भी शर्माए,
सूरज का उजाला भी फीका पड़ जाए
मेरी बेटी गुड़िया (beti gudiya ) के जैसे लगती है,
जब सर पर दूपट्टा लहराए,
* * * *
creater -राम सैणी