एक अलबेला शायर (albela shayar ) -सा,
वो हर एक बस्ती में रहता है,
खोया-खोया-सा रहे,
पता नहीं वो कौन-सी मस्ती में रहता है,
* * * * * *
मेरे सपनों को जिस ने,
अपने ही सपने माना है,
उसके सामने सदा एक लक्ष्य,
उन्हें पूरा करने का ठाना है,
वो आँखों से बातें करता है,
एक पल में कुछ भी कर गुजरता है,
वो सबसे हटकर है कौन भला,
एक पिता से बढ़कर है कौन भला,
वो सादा ही जीवन जीता है,
हर घड़ी घूट सब्र के पीता है,
पिता है शीतल जल के जैसे ,
जो हर पल बहता रहता है ,
वो हर एक बस्ती में रहता है,
खोया-खोया-सा रहे,
पता नहीं वो कौन-सी मस्ती में रहता है,
* * * * * *
थोड़ा भोला थोड़ा जिद्दी,
कुछ सख्त स्वभाव लगता है,
आंखें रहती है लाल सदा,
वो सोता कम जागता ज्यादा है,
मेहनत को अपना गहना माने,
हर ग़म को अकेला सहना जाने,
फर्ज निभाने की कला,
एक पिता से बेहतर और कौन जाने,
हम सब के जीवन की गाड़ी,
एक पिता अकेला खींचता है,
हम सबके जीवन को,
पिता अपनी मेहनत से सींचता है,
अपने दिल के जज्बातों को,
पिता होंठों मे दबाकर रखता है,
एक झूठी नकली -सी मुस्कान,
अपने चेहरे पर सजाकर रखता है,
परिवार का हर छोटा-बड़ा,
उसकी दिल की कश्ती में रहता है,
एक अलबेला शायर (albela shayar )-सा,
वो हर एक बस्ती में रहता है,
खोया-खोया-सा रहे,
पता नहीं वो कौन-सी मस्ती में रहता है,
* * * * * *
राज दबे हैं जो दिल में,
पिता इतनी जल्दी खोलता नहीं,
सब ठीक है मजे में हूँ,
बस इससे ज्यादा कुछ बोलता नहीं,
पंख फैलाकर हम सब को,
खुले आसमान में उड़ने देता है,
ना झुका है खुद कभी,
ना हमको झूकने देता है,
वो परींदा बनकर आसमान का,
हम सब नजरें गड़ाए रखता है,
ठोकर ना लगे हम को राहों में,
वो अपनी बांहें फैलाए रखता है,
सबसे ऊपर परिवार की लाज ,
खोले नहीं वो अपने दिल के राज ,
अकेला ही सहता रहता है ,
वो हर एक बस्ती में रहता है,
खोया-खोया-सा रहे,
पता नहीं वो कौन-सी मस्ती में रहता है,
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अलबेला शायर (albela shayar ) : असली हीरा
शौंक नहीं रखता वो,
कभी हद से ज्यादा पालकर,
हम लोगों यूं रखता है,
जैसे कोई रखता हीरे-मोतियों को संभालकर,
पिता है एक असली हीरा,
जो साथ खड़ा है पर्वत बनकर,
सब सुख ले आता है वो ,
इस जहां से चून-चूनकर,
पिता का होना हम सब के जीवन में,
किसी चमत्कारी वरदान से कम नहीं,
कोई देख ले हमें आँख उठाकर,
इतना तो किसी में दम नहीं,,
बातें करता नहीं वो हवा-हवाई,
पिता जुड़कर धरती से रहता है,
एक अलबेला शायर (albela shayar ) -सा,
वो हर एक बस्ती में रहता है,
खोया-खोया-सा रहे,
पता नहीं वो कौन-सी मस्ती में रहता है,
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कभी फुर्सत मिले तो छेड़ना,
पिता के दिल के कोमल तार,
उन तारों से सुर निकलेंगे,
अकेलेपन के हर बार,
हंसकर बात करें परिवार,
जुड़कर साथ रहे परिवार,
बस इतने में ही खुश हो जाता है,
शाम-सवेर घर के अंदर,
खुशियों का फैला हो मंज़र,
* * * *
फिर वो चैन की नींद सो जाता है,
बच्चों के चेहरे हों हंसते -मुसकराते,
उनके देखे हुए सपने पूरे हो जाते,
फिर पिता के दिल को मिल जाता है सुकून,
भंवरों के जैसे गीत गाएं जब,
फूलों के जैसे महक जाएं सब,
प्रीत के रंग से रंग जाए हर दिन ,
ये हर पिता का है जुनून,
परिवार ही जीने का आधार ,
उसके लिए हर घडी सफलता के ,
रास्ते ढूंढता रहता है ,
वो हर एक बस्ती में रहता है,
खोया-खोया-सा रहे,
पता नहीं वो कौन-सी मस्ती में रहता है,
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वो अपनी खुशियों से बढ़कर,
परिवार की खुशियां चाहता है,
वो अपने खून-पसीने से,
सफलता के फूल खिलाता है,
शोहरत -दौलत परिवार में बरसे,
छोटी-छोटी खुशियों से कोई ना तरसे,
ये अपने दिल में ठान कर रखता है,
तपती धूप हो या गम के काले बादल,
वो परिवार पर अपने,
प्यार की चादर तानकर रखता है,
वो है एक बादल के जैसे,
जो हर पल बरसता रहता है,
एक अलबेला शायर (albela shayar ) -सा,
वो हर एक बस्ती में रहता है,
खोया-खोया-सा रहे,
पता नहीं वो कौन-सी मस्ती में रहता है,
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creater -राम सैणी