माना की सब नहीं हैं एक बराबर,
सबका अलग-अलग व्यहवार यहाँ,
यदि कुछ लोग पूजते हैं, मात-पिता को,
तो कुछ करते हैं दरकिनार यहाँ,
मात-पिता ही वो पालनहार हैं,
जो दिल से हमें प्यार करे,
वो ही इस संसार में सचमुच,
जो हमारे सब दुख-दर्द हरें,
यदि माता-पिता के ना हो सके,
राहों में उनकी महकते फूल ना बो सके,
फिर हमारा जीना है बेकार यहाँ,
वो अपना समझकर हमको डांटेंगे,
हमारा बोया हम ही काटेंगे,
मात-पिता को रखें दिल के हर कोने में बिठाकर ,
घर में ना रहें वो अनजानों की तरह ,
मात-पिता करते हैं प्यार हमें,
दीवानों की तरह,
फिर कुछ लोग क्यों करते हैं व्यहवार,
उनसे बेगानों की तरह (beganon ki tarah ),
* * * * * * *
एक दिन हम-सबका हिसाब करेगी,
ऊपरवाले की सरकार यहाँ,
एक माँ की सांसों का कर्ज,
हमारी सांसों पर हैं उधार,
उस माँ का कर्ज ना उतार पाएंगे,
चाहे जन्म भी मिल जाएं हमको हजार,
मात-पिता की तरसती आँखेँ,
बुढ़ापे में देखें बच्चों की ओर,
कल चले थे हम जिनका हाथ थामकर,
आज क्या वो भी बढ़ाएंगे,
अपना हाथ हमारी ओर,
कभी बार अपने ही घर में रहते हैं,
मात-पिता मेहमानों की तरह,
मात-पिता करते हैं प्यार हमें,
दीवानों की तरह,
फिर कुछ लोग क्यों करते हैं व्यहवार,
* * * * * * *
मात-पिता से मत कीजिए,
आँखें दिखाकर कभी बात,
उस माँ को कैसे भूल गए हम ,
जो हमारे लिए जागी है सारी-सारी रात,
पिता जैसा हमदर्द ढूंढें से भी नहीं मिलेगा,
जिस आंगन में मात-पिता दिल से लगाए जाते हैं,
उस घर मे हर सुबह,
खुशियों का सूरज निकलेगा,
जहाँ ली जाती है दुआएं,
माँ के हाथों को चूम कर,
उस घर का हर सदस्य रहता है,
एक अलग ही मस्ती में झूमकर,
माँ है मेरा अभिमान माँ है एक वरदान ,
माँ का प्यार होता है ना ख़तम होने वाले,
खजाने की तरह ,
मात-पिता करते हैं प्यार हमें,
दीवानों की तरह,
फिर कुछ लोग क्यों करते हैं व्यहवार,
* * * * * * *
बेगानों की तरह (beganon ki tarah ) :मात-पिता एक वरदान
मात-पिता एक वरदान के जैसे,
सबके हिस्से में ये वरदान नहीं,
बिन मात-पिता के बच्चों का ,
यहाँ होता सम्मान नहीं,
बच्चों के लिए माँ ,
एक ढाल के जैसे होती है,
वो बिन सोए गुजार देती है रातें,
जब भी तकलीफ़ हमें होती है,
उस ईश्वर का मैं शुक्रगुजार,
मात-पिता का मुझे मिला है प्यार,
मुस्कराते रहें मात-पिता,
जब तक उनके सांसों की डोरी चलती रहे,
मात-पिता के सम्मान की ज्योति,
हर दिल में यूं ही जलती रहे,
मात-पिता से मिलती हैं शीतलता,
मिट्टी के मकानों की तरह,
मात-पिता करते हैं प्यार हमें,
दीवानों की तरह,
फिर कुछ लोग क्यों करते हैं व्यहवार,
उनसे बेगानों की तरह (beganon ki tarah ),
* * * * * * *
बड़ा मुश्किल होता है,
किरदार पिता का निभाना,,
समझना मुश्किल उस मसीहे की,
बात-बात पर क्या आँखें दिखाना,
सबसे वफादार होता है,
पिता का किरदार ,
मात-पिता की भावनाओं,
कुछ मोल तुम चुका देना,
जो भूले नहीं एक पल भी तुमको,
उन्हें दिल से कभी ना भूला देना,
इन पेड़ों से मिलती रहेगी,
उम्र भर हमें शीतल छाया,
आँखें बंद करके लूटा देते हैं बच्चों पर,
मात-पिता ने उम्र भर जो कमाया,
कुछ लोग करते है नजरअंदाज इन्हे ,
नादानों की तरह ,
मात-पिता करते हैं प्यार हमें,
दीवानों की तरह,
फिर कुछ लोग क्यों करते हैं व्यहवार,
उनसे बेगानों की तरह (beganon ki tarah ),
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वो शीशे के जैसे साफ है दिल के,
ना उनके जैसा कोई जग में महान,
वो फूलों के जैसे सूगंध बांटते,
बस्ती है बच्चों में उनकी जान,
मात-पिता जब हों लाचार,
तुम हाथ थामने को रहना तैयार,
उनकी बूढ़ी आँखों आँखों की चमक,
तुम रखना हमेशा बरकरार,
मात-पिता के कांपते हाथो में,
तुम हाथ अपने रख देना,
आदर-सत्कार जितना हो सके,
उनकी चलती हुई सांसों तक देना,
ये सुगंध बांटते हैं मरते दम तक,
फूलों के बागानों की तरह,
मात-पिता करते हैं प्यार हमें,
दीवानों की तरह,
फिर कुछ लोग क्यों करते हैं व्यहवार,
उनसे बेगानों की तरह (beganon ki tarah ),
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creater -राम सैणी