prem ki paribhasha

प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) : जीवन की रोशनी

मेरे मन में एक जिज्ञासा है,
माँ प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) क्या है,
कुछ और भी बाकी है क्या इसके सिवा,
क्या प्रेम ही जीने की वजह है,
*     *       *       *       *
आ सुन मेरी बातों को गौर से,
आज नफ़रत की आंधी चल रही है चारों ओर से,
नफ़रत दिलों को बांट देती है,
ये ऐसी नुकीली कैंची है,
जो वर्षों पुराने रिश्ते को भी,
एक पल में काट देती है,
बसे-बसाए घर को बना देती तमाशा है,
मेरे मन में एक जिज्ञासा है,
माँ प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) क्या है,
कुछ और भी बाकी है क्या इसके सिवा,
क्या प्रेम ही जीने की वजह है,
* * * * *
एक पल का गुस्सा जीवन में,
सब-कुछ तहस-नहस कर देता है,
क‌ई बार अच्छे से अच्छा आदमी भी,
बिना मतलब के बहस कर लेता है,
नफ़रत बर्बाद कर देती है बसे-बसाए घर को,
एक बार दिल में घर कर जाए तो,
बडा मुश्किल होता है बाहर निकालना,
दिल मे छिपे इस डर को,
जो गुस्से को पालना सीख गया,
समझों वो इस मुश्किल को टालना सीख गया,
माँ मुझे बताओ तो जरा,
इस प्रेम में ऐसा क्या है,
मेरे मन में एक जिज्ञासा है,
माँ प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) क्या है,
कुछ और भी बाकी है क्या इसके सिवा,
क्या प्रेम ही जीने की वजह है,
* * * * *
फुलों का महकना,भंवरों का गुनगुनाना,
कोयल का कूकना,मोरों का नाचना,
ये भी प्रेम की निशानी है,
वीणा का मधुर शोर,
जो कर देता है मन को भाव-विभोर,
सात सुरों का मीठा संगीत,
कल-कल करते पानी के झरने,
ठंडे-ठंडे हवा के झोंके,
ये प्रेम की हर दिन लिखते कहानी है,
आंगन में पायल का शोर,
जब सुनाई देता है चारों ओर,
ये भी प्रेम का एक रूप है,
प्रेम को पाने के बाद ,
फिर शेष नहीं रहती जीवन में कोई अभिलाषा है,
मेरे मन में एक जिज्ञासा है,
माँ प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) क्या है,
कुछ और भी बाकी है क्या इसके सिवा,
क्या प्रेम ही जीने की वजह है,
* * * * *

प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) : रिश्तों की नाजुक डोर

 

 prem ki paribhasha
prem ki paribhasha

जहाँ घर के बड़े-बुजुर्गों को,
बड़ों से पहले छोटों को,
अपने दिल में बिठाकर रखतें हैं,
ये भी दिल में छिपे प्रेम को दर्शाता है,
जब एक बार पुकारने से,
जिस घर में सब खुश होते हैं,
एक-दुसरे से हारने से,
जिस घर में मिल-बांटकर खाते हैं,
किसी का दिल नहीं दुखाते हैँ,
ये भी प्रेम गहरे प्रेम को दिखाता है,
मीठे रिश्तों का हर मन पर गहरा असर है,
कुछ असर मीठी भाषा का है,
मेरे मन में एक जिज्ञासा है,
माँ प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) क्या है,
कुछ और भी बाकी है क्या इसके सिवा,
क्या प्रेम ही जीने की वजह है,
* * * * *
माँ लाढ-लढाना,लोरी सुनना,
ये माँ के प्रेम करने का तरीका है,
इस प्रेम के बिना जीवन में,
सब-कुछ लगता फीका है,
माँ-बच्चों का रिश्ता है प्रेम,
हर घड़ी माँ के चेहरे पर दिखता है प्रेम,
प्रेम साधना है प्रेम अराधना है,
प्रेम ही भक्ति का रूप है,
माँ की‌ ममता में प्रेम है,
उसका आंचल प्रेम है,
प्रेम भी शक्ति का ही रूप है,
जहाँ प्रेम होता है एक पल भी टिक नहीं पाती,
उस घर में निराशा है,
मेरे मन में एक जिज्ञासा है,
माँ प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha ) क्या है,
कुछ और भी बाकी है क्या इसके सिवा,
क्या प्रेम ही जीने की वजह है,
* * * * *
रुठना-मनाना भी प्रेम की माला का एक मोती है,
जब माँ बच्चे को दुख में देखकर रोती है,
वो जब बच्चों को सुलाकर सोती है,
बच्चों की सूरत देखें बिना,
जब माँ को ना आए चैन,
बच्चों को हंसता देखकर,
जब बड़-बडे हो जाए माँ के नयन,
इन सब में प्रेम ही प्रेम समाया है,
जिस ने प्रेम को समझ लिया,
फिर उसके मन में ना और कोई जिज्ञासा है,
मेरे मन में एक जिज्ञासा है,
माँ प्रेम की परिभाषा ( prem ki paribhasha )  क्या है,
कुछ और भी बाकी है क्या इसके सिवा,
क्या प्रेम ही जीने की वजह है,
* * * * *
creation -राम सैणी
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